मेरे क्षेत्र में
भूख से कोई मर नहीं सकता
मीडिया के आरोपों से सांसद महोदय तैश में थे
मानो घर के आगे उन्होंने लंगर खोल रखा हो।
आंकडे "नेताईयत " की आत्मा हैं
मगर कम्बखत परमात्मा तो वही नंगा है
जो मर कर जी का जंजाल हो गया है...
नेता जी गुरगुराये, माईकों के बीच मुस्कुराये
पिछले साल सौ में से सैंतालीस मौतें मलेरिया से
तिरालिस डाईरिया से, चार कैंसर से, छ: निमोनिया से..
सरकारी आँकडों की गवाही है
कीटाणुओं तक के पेट भरे हैं
आदमी की क्या दुहाई है?
सरकारी योजनाओं में हर हाँथ कमाई है,
निकम्मे हैं, इसी लिये नंगाई है..
फसले झुलसती हैं, मुआवजा मिलता है
दुर्घटना, बीमारी या बेरोजगारी सबके हैं भत्ते
थुलथुल गालों के बीच मूँछें मुस्कुरायीं
भूख से कोई मर नहीं सकता
मीडिया के आरोपों से सांसद महोदय तैश में थे
मानो घर के आगे उन्होंने लंगर खोल रखा हो।
आंकडे "नेताईयत " की आत्मा हैं
मगर कम्बखत परमात्मा तो वही नंगा है
जो मर कर जी का जंजाल हो गया है...
नेता जी गुरगुराये, माईकों के बीच मुस्कुराये
पिछले साल सौ में से सैंतालीस मौतें मलेरिया से
तिरालिस डाईरिया से, चार कैंसर से, छ: निमोनिया से..
सरकारी आँकडों की गवाही है
कीटाणुओं तक के पेट भरे हैं
आदमी की क्या दुहाई है?
सरकारी योजनाओं में हर हाँथ कमाई है,
निकम्मे हैं, इसी लिये नंगाई है..
फसले झुलसती हैं, मुआवजा मिलता है
दुर्घटना, बीमारी या बेरोजगारी सबके हैं भत्ते
थुलथुल गालों के बीच मूँछें मुस्कुरायीं
सवाल मौन हो गये, गौण हो गये...
और दूर उस गाँव में जो मौत बबाल हो गयी थी
उसके तन की दुर्गंध फैलने लगी थी
उसके भैंस की खाल सी
काली, मोटी, सिकुडी चमडी
जैसे पानी की बूँद देखे, बीती हों सदियाँ..
जाँच करने वाले डाक्टर
नाक में रूमाल रख कर, विश्लेषण में मग्न थे
पुलिसिये लट्ठ लिये खाली बर्तन ठोक रहे थे
मौत जब सनसनीखेज हो जाये
और दूर उस गाँव में जो मौत बबाल हो गयी थी
उसके तन की दुर्गंध फैलने लगी थी
उसके भैंस की खाल सी
काली, मोटी, सिकुडी चमडी
जैसे पानी की बूँद देखे, बीती हों सदियाँ..
जाँच करने वाले डाक्टर
नाक में रूमाल रख कर, विश्लेषण में मग्न थे
पुलिसिये लट्ठ लिये खाली बर्तन ठोक रहे थे
मौत जब सनसनीखेज हो जाये
कितनों की परेशानी बन जाती है..
अचानक कुछ आँखों में चमक सा
घर के एक कोने में, पत्ते के दोने में
आधा खाया हुआ प्याज, थोडा नमक था....।
मौत भूख से नहीं हुई है
पेट की बीमारी है
जाँच पूरी है, रिपोर्ट सरकारी है...
*** राजीव रंजन प्रसाद
30.04.2007
अचानक कुछ आँखों में चमक सा
घर के एक कोने में, पत्ते के दोने में
आधा खाया हुआ प्याज, थोडा नमक था....।
मौत भूख से नहीं हुई है
पेट की बीमारी है
जाँच पूरी है, रिपोर्ट सरकारी है...
*** राजीव रंजन प्रसाद
30.04.2007
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
20 कविताप्रेमियों का कहना है :
तीखा व्यंग्य है राजीव जी, अच्छे शब्द भी चुने हैं. व्यंग्य भाव अंत तक आते आते कम हो जाता है और करुणा पूरी कविता पर हावी हो जाती है.
कुछ पंक्तियां बेहद अच्छी लगी-
आंकडे "नेताईयत " की आत्मा हैं
मगर कम्बखत परमात्मा तो वही नंगा है
जो मर कर जी का जंजाल हो गया है...
सवाल मौन हो गये, गौण हो गये...
वैसे मेरा व्यक्तिगत विचार है कि जब आप तुकांत कवितायें लिखते हैं तो बहुत मधुर प्रतीत होते हैं और मेरा मन हमेशा वैसी ही कविताओं की प्रतीक्षा करता है.
लेकिन यह कविता भी अपने आप में संपूर्ण है और जिस भाव के लिए आरंभ की गई, उसके साथ पूरा न्याय करती है.आप हर ढंग की कविता में माहिर तो हैं ही, तो अधिक कहना सूरज को दीपक दिखाने जैसा होगा..
आज अपनी व्यस्तताओं के बाद काफी दिनों बाद आपकी कविता पढ़ने का अवसर मिला।
व्यवस्था पर अच्छा व्यंगात्मक प्रहार है। चुनाव के दौर मे एक अच्छी कविता है।
बहुत ही तीखा, आत्मा को झिन्झोडने वाला सत्य है जिसे आपने अपने सटीक शब्दो में बांध कर कविता के रूप में प्रस्तुत किया है....
बधायी स्वीकारें
sundar rachana hai ...
सवाल मौन हो गये, गौण हो गये...
padh ke bas yahi laga ...ki kya kahu isko padh ke ....
Rajiv ji!
apka kavita padhi....bahat hi achha hai...if u dont mind i want 2 say u one thing..aaj kal apki kavita main rajniti ki kuchh jyada hi jhalak dekhne ko mil rahi hai...mere kehne ka matlab ye nahin ki aap rajniti ke upar mat likhiye...dirty politics k upar likhiye...lekin apki kavita ke madhyam se dusron ko nayi disha mil sake uss par bhi prayatn kare..apki ki agli rachna ki intezar main..
vinay kumar
गिरिभाई, इसमें वो मजा नही आया. यह कविता अच्छी तो है, पर मै जानता हुँ आप इससे अच्छी लिख सकते हैं
और दूर उस गाँव में जो मौत बबाल हो गयी थी
उसके तन की दुर्गंध फैलने लगी थी
उसके भैंस की खाल सी
काली, मोटी, सिकुडी चमडी
जैसे पानी की बूँद देखे, बीती हों सदियाँ..
जाँच करने वाले डाक्टर
नाक में रूमाल रख कर, विश्लेषण में मग्न थे
पुलिसिये लट्ठ लिये खाली बर्तन ठोक रहे थे
मौत जब सनसनीखेज हो जाये
कितनों की परेशानी बन जाती है..
अचानक कुछ आँखों में चमक सा
घर के एक कोने में, पत्ते के दोने में
आधा खाया हुआ प्याज, थोडा नमक था....।
व्यंग्य और करुणा क अच्छा samanvay है..
राजीव जी,अच्छी कविता है।
लिखते रहीए
"आंकडे "नेताईयत " की आत्मा हैं"
.
"कीटाणुओं तक के पेट भरे हैं
आदमी की क्या दुहाई है?"
.
.
तीखा प्रहार
समसामयिक लेखन का सुन्दर नमूना
संवेदनशील विषयों पर आप हमेशा ही न्याय करते हैं
बहुत प्रश्न उठाये हैं आपने,उत्तर के प्रतीक्षा मुझे भी है
हार्दिक बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
kavita apni har badhti pankti ke saath gambhir hoti chali jaa rahi hai.ant kaa chitran kaafi maarik,karun aur hriday sparshi hai, jo saari kavita ko ek naya rukh deta hai.
sashakt panktiyaan:-
अचानक कुछ आँखों में चमक सा
घर के एक कोने में, पत्ते के दोने में
आधा खाया हुआ प्याज, थोडा नमक था....।
मौत भूख से नहीं हुई है
पेट की बीमारी है
जाँच पूरी है, रिपोर्ट सरकारी है...
Im glad to have you as my Guruji :)
राजीव जी,बहुत ही जबर्दस्त व्यंग्य किया है सम्पूर्ण कविता मे आज की व्यवस्था पर करारा प्रहार है,..
हमारे देश मे ना जाने कितने केस यूँहि दब जाते है नेताओ की भेंट चढ़ जाते है,..नेता-अभिनेता में कुछ खा़स फ़र्क नही होत्ता है जब चुनाव का समय आता है तभी नेता को गरीब जनता की याद आती है वरना तो कितने लोग मरे क्यूँ मरे नेता को इससे कोई सरोकार नही होता। और मेरे खयाल से यदि देश से बेकारी,बेरोजगारी,गरीबी खतम हो जायेगी तो नेता अपने वोट कैसे बढ़ायेंगे,..ये गरीब ही तो नेताओ की असली ताकत है वे कभी भी देश से गरीबी कैसे खतम कर सकते है,..
हाँ,..देश की भोली-भाली जनता को महामारी,बेकारी
या फ़िर निक्कमेपन का जामा पहना कर पराधीन अवश्य कर रहे है,...
सुनीता(शानू)
rajiv ji, abhi Cafe mein hoon isliye jyada nahi kah sakta .
Mujhe aapki rachana bahut achchhi lagi.achchha vyangya hai.
badhai sweekarein.
rajeevji, your poem is grt. a politically inspired one...was good amount of satire that you have used..nice combination of little bit of humour and satire...though the last lines bring out the real catharsis...
अचानक कुछ आँखों में चमक सा
घर के एक कोने में, पत्ते के दोने में
आधा खाया हुआ प्याज, थोडा नमक था....।
मौत भूख से नहीं हुई है
पेट की बीमारी है
जाँच पूरी है, रिपोर्ट सरकारी है...
रचना को पढ़कर पता नहीं क्यों हँसी सी आ गयी;
लेकिन अगले ही पल लगा कि ये मैं खुद पर ही हँस रहा था।
बेहद सटीक चित्रण किया है।
॰ कुछतो करना पड़ेगा।
राजीव जी,
आपकी इस व्यंग्य कविता पर मैं अधिकतम टिप्पणियों की उम्मीद कर रहा था, मगर पता नहीं क्यों लोगों की टिप्पणियाँ नहीं आईं।
आपके कुछ प्रहारों में तो इतनी धार है कि कलेज़ा छलनी हो जाता है, उल्लेख करना चाहूँगा।
मगर कम्बखत परमात्मा तो वही नंगा है
जो मर कर जी का जंजाल हो गया है...
कीटाणुओं तक के पेट भरे हैं
आदमी की क्या दुहाई है?
सरकारी योजनाओं में हर हाथ कमाई है,
निकम्मे हैं, इसी लिये नंगाई है..
अचानक कुछ आँखों में चमक सा
घर के एक कोने में, पत्ते के दोने में
आधा खाया हुआ प्याज, थोडा नमक था....।
फिर भी राजीव जी कहना चाहूँगा, (एक बार मैंने एक कविता में लिखा था)-
आलोचनाओं की सूई किसे चुभोते हो
ये तो नेता हैं गधों सी इनकी खाल है।
very nice Rajeev ji!
kuch panktiyan seedhe dil ko chhoo leti hain.
कीटाणुओं तक के पेट भरे हैं
आदमी की क्या दुहाई है?
सरकारी योजनाओं में हर हाथ कमाई है,
निकम्मे हैं, इसी लिये नंगाई है..
अचानक कुछ आँखों में चमक सा
घर के एक कोने में, पत्ते के दोने में
आधा खाया हुआ प्याज, थोडा नमक था....।
...]
मौत भूख से नहीं हुई है
पेट की बीमारी है
जाँच पूरी है, रिपोर्ट सरकारी है...
bahut behtareen!
सवाल मौन हो गये, गौण हो गये...
कीटाणुओं तक के पेट भरे हैं...
अचानक कुछ आँखों में चमक सा....
जीवन् का कटु सत्य आप्की इस रचनासे झलक रहा है.
रचनाके अन्तमे आधे प्याज और् नमकने झिन्झोडकर् रख दिया.
धन्यवाद् !!
राजीवजी,
आपने कविता के माध्यम से एक बार फिर नकारा हो चुके सरकारी तंत्र पर अच्छा प्रहार किया है...
मौत भूख से नहीं हुई है
पेट की बीमारी है
जाँच पूरी है, रिपोर्ट सरकारी है...
कविता की ये अंतिम पंक्तियाँ सत्य है, वर्तमान में ऐसा ही हो रहा है। आपकी कुछ और पंक्तियाँ भी काफि प्रभावी लगी, जैसे -
आंकडे "नेताईयत " की आत्मा हैं
.
.
कीटाणुओं तक के पेट भरे हैं
आदमी की क्या दुहाई है?
.
.
थुलथुल गालों के बीच मूँछें मुस्कुरायीं
सवाल मौन हो गये, गौण हो गये...
.
.
अचानक कुछ आँखों में चमक सा
घर के एक कोने में, पत्ते के दोने में
आधा खाया हुआ प्याज, थोडा नमक था....।
aapaka gussa aapki kavita ko dhaar deta hai aur prashansha karne par bhi badheya karata hai..ek baar phir achchhi kavita.
व्यवस्था पर एक तीक्ष्ण व्यंग्य। शब्दों की धार पैनी है।
राजीव जी, कविता बेहद सुंदर है। व्यंग्य और करुणा का इतना सुंदर संयोग कम ही देखने में आता है। बधाई।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)