मुझको जीवन दर्शन करा दो
इस गगन की सैर करा दो
मैं बेकरार हूँ उड़ने को, माँ,
आओ, मुझे भी पंख लगा दो
तेरे बदन में लेटी-लेटी,
सपनों में ही उड़ती रही हूँ
जब भी चाहा उड़ना तुमने,
सोचों में भी उड़ती रही हूँ
उड़ान तुम्हारी देखकर
मन मेरा भी व्याकुल हुआ
माँ, लगा दो पँख मुझे,
फिर ये गगन अपना हुआ
मैं जा बैठूँगी बादल पर
बिजली से मैं खेलूँगी
और छूपा कर बाहों में
अपना चांद ले आऊँगी
माँ, मेरे सपने बहुत बड़े है
जीने का एक मौका ही दे दो
नहीं बनूँगी बोझ मैं तुम पर,
खोल दो मुट्ठी, उड़ जाने दो
मुझको जीवन दर्शन करा दो
इस गगन की सैर करा दो
मैं बेकरार हूँ उड़ने को, माँ,
आओ, मुझे भी पंख लगा दो
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41 कविताप्रेमियों का कहना है :
एक बेटी की मॉं की ओर एक आशा भरी निगाहों से देखती है। कि मॉं मुझे भी पंखा लगा दों।
सच भारतीय परिवेश मे बेटी को कमतर करके आका जाता है किन्तु आज का दौर बदल रहा है।
giri isme ek garbh main ek beti sapne dekh rahi zindgi ke kuch banne ke
aur vinti karrahi hai ki mujhe jine do mujhe is duniya main aane do
aapki soch aur aapki soch ko likhne ka tarika bhaut achha laga
वाह बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति है।
bahut sundar..
माँ, मेरे सपने बहुत बड़े है
जीने का एक मौका ही दे दो
नहीं बनूँगी बोझ मैं तुम पर,
खोल दो मुट्ठी, उड़ जाने दो
wah...
bahut achhe..
मुझको जीवन दर्शन करा दो
इस गगन की सैर करा दो
मैं बेकरार हूँ उड़ने को, माँ,
आओ, मुझे भी पंख लगा दो
kaash......
maan samartha ho jaaye...
aur apane hee pratiroop ko
jeenam de sake...
aabhaar
joshi jee
badhaaee
वाह गिरि, बहुत अच्छा लिखा है । कविता बेहद पसन्द आई ।
घुघूती बासूती
acchi kavita hai . bhav aru lay se parpoorna .
kanya bhroond hatya... achchha vishaya. achchhi kavita.
गिरिराज जी,
न्याय किया है आपने इस संवेदनशील विषय के साथ।
नहीं बनूँगी बोझ मैं तुम पर,
खोल दो मुट्ठी, उड़ जाने दो
मुझको जीवन दर्शन करा दो..
बहुत खूब...
*** राजीव रंजन प्रसाद
भाव बहुत सुन्दर हैं। बधाई।
कविराज इस उड़ान के विषय में आपका क्या ख्याल है---
आसमान छूने की धुन में भरी जो उसने उड़ान
भूल गई वो अपना घर तन्हा रह गई सन्तान।
jab bhi chaha udana tumane,
socho main bhi udati rahi hun.
Great appealing thoughts !
Aapki kavita maternity hospitals mein frame karke laga dene yogya hai.
प्रेरणात्मक मनोभावों का सुन्दर चित्रण है आपकी कविता में.. बधायी स्वीकारें
मैं जा बैठूँगी बादल पर
बिजली से मैं खेलूँगी
और छूपा कर बाहों में
अपना चांद ले आऊँगी
माँ, मेरे सपने बहुत बड़े है
जीने का एक मौका ही दे दो
नहीं बनूँगी बोझ मैं तुम पर,
खोल दो मुट्ठी, उड़ जाने दो
बहुत ही सुंदर रचना है ...उड़ने की इच्छा कोख में ही पैदा होती दिखा कर
आज के बदलते समय के लिए के आशा से भरा भाव है ..
आज मेरी अंदर की पुकार तुमसे कुछ माँग रही
मुक्त कर दो मुझे उन बंधनो सो जो तोड़ते हैं मुझको
खोल दो मेरी जंजीरे जो मुझे लहू लूहान कर रही हैं
छुना चाहती हूँ मैं भी आकाश, जिसे तुमने छुआ है
एक औरत होने से मेरा जोश काम नही हुआ है
मेरे दिल में जल रहा अभी भी उमीद का कोई दिया है !!!
सुन्दर अभिव्यक्ति । साधुवाद
This is really good.
गिरिराज जी , सच्ची मे नही जानता कि टिप्पणी का अर्थ सिर्फ़ तारीफ करना ही होत है या साफ़ गोई से बचना चाहिए ? सच्ची मे नही जानता!
कविता तो आप अच्छी ही लिखते है उसमे क्या शक!
परन्तु इस कविता मे प्रवाह नही है । बिम्ब आपने सरल से सतही से ..चले, ऎसे प्रयोग कर उलझा सा दिया है पूरे सन्दर्भ को । इतना और कहूगा आप से और अच्छी कविता की आशा है. आप अब वरिश्ठ कवि है नये कवि आपका अनुकरण करना चहते है।
साधु वाद के साथ
महेन्द्र
रचना में दो खा़सियतें हैं,
एक तो ये बालिका भ्रूण-हत्या की तरफ इशारा करती है।
दूसरी ये कि एक ऐसे जीव को ज़ुबान दे रही है जो अभी बेज़बान है।
लेकिन ,रचना को थोड़ा और 'नरम' होना चाहिये था।
फिर भी ,एक अच्छे प्रयास के लिये बधाई।
तेरे बदन में लेटी-लेटी,
सपनों में ही उड़ती रही हूँ
जब भी चाहा उड़ना तुमने,
सोचों में भी उड़ती रही हूँ
माँ, मेरे सपने बहुत बड़े है
जीने का एक मौका ही दे दो
नहीं बनूँगी बोझ मैं तुम पर,
खोल दो मुट्ठी, उड़ जाने दो
excellent thoughts....aacha vishay chuna hai....prastuti bhi aachi hai....bhaav uttam hain...mubaarak ho
भईया कुछ दिनो से आप इस विषय पर गंभीर हो गये हैं, ऐसा मुझे लग रहा है।
कविता पसन्द आयी ऐसा नही कह सकती क्युँकि यह विषय मुझे वर्तमान अवस्था से कही दूर ले कर चला जाता है जो मुझे पसन्द तो नही है, पर मै उस पहलू को और नजदीक से जानने कि कोशिश मे जरूर लग जाती हूँ, और आपकी कविता मे आपके शब्दो मे वो ताकत है जिससे मै उस परिस्थिती को महसूस कर रही हूँ।
जिन्दगी के कई पहलू हैं
कोई जिन्दगी की आस मे
कोई जीवन के तलाश मे
लम्हा-लम्हा है अधूरा
अभी पूर्ण होने की प्यास है
बेटी के मन को खूब समझा है आपने!
Aaj k samaya me jab log beti ko bojh aur bete ko ghar ka chirag maan kar, betiyo ko pet me he maar rahe hai, aise me aapki ye koshish acchi hai. Mai to itna kahna chaunga k betiya bojh nahi hoti.
गंभीर भाव,प्रभावी अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर लिखा है कविराज
हार्दिक बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
निःसंदेह आपकी कविता का भावपक्ष मजबूत है, परंतु भाव का क्षितिज और विस्तारित किया जा सकता था। लगता है कि अभी आपके मन में कुछ और सवाल हैं जिन्हें आप नये-नये माध्यमों से ऐसी माँओं से पूछना चाहते हैं।
जब बात तुक की आती है; कविता में तुक रखना चाहते हैं तब शब्दों का चयन बहुत सावधानी से करना चाहिए। आपकी कुछ पंक्तियों में प्रवाह बाधित हो रहा है।
कविराज,कविता तो बेहद सुंदर और अर्थपूर्ण है,...
जैसा कि मेरे अन्य कविमित्रों ने लिखा है कि अभी आपके मन में कुछ और बाकी है,..लगता है अभी भी कुछ लिखना चाहते थे,..
आपके विचार बेहद प्रशंसनीय है,एक बेटी की अपनी माँ से प्रार्थना,जो कि अभी जन्मी नही है,एक आतुर पुकार है वो भी जीना चाहती है बहुत ही सुन्दर तरीके से वर्णन किया है,..
सुनीता(शानू)
Joshiji,
Sunder rachna hai.. bahut sunder..
kavita padh kar itne vichaar mann me gunj rahe hain ki kuch bhi likh pane me apne aap ko asamrth pa rahi hoon..
mujhe lagta hai ki jis vishay par aap sabka dhyaan aakarshit karna chahte hain usme samarth huye hain..
Main bhi ek beti hoon, aur ek beti ki maan bhi hoon, isliye beti ke bhavon ko samjh pa rahi hoon...
bas itna kehna hai ki bhrud hatya aur beiyon ko bojh manna ab kafi hadd tak kam ho gaya hai.. aur kuch hi saalon me sayad band hi ho jaye..
phir ek baar kavita bahut hi sunder hai..
likhte rahiye..
mere paas wo sabd nahi hai jinke dwara mai bayaan kar saku ki aap kitna sundar likhte hai,mai ek doctor hu ,isliye kaviyo jaisi baate nahi likh sakta,mai us laayak nahi hu par fir bhi sach aapki kavitaye pad kar yun laga ki mai us kasti ki tarah hu jo sundar neeli or badi nadi ki lahero par,baadlo se bahre mousam mai,halke se sangeet ke saath saath,swachand si idhar udhar vichran kar rahi hai,,,man ko bada sukoon mila....
काफ़ी अच्छी कविता है. वैसे तो मैं छन्दबद्ध, तुकान्त कविताएँ अधिक पसन्द करता हूँ, पर इन पँक्तियों ने मुझे प्रभावित किया:
नहीं बनूँगी बोझ मैं तुम पर,
खोल दो मुट्ठी, उड़ जाने दो
साधुवाद!
जब भी चाहा उड़ना तुमने,
सोचों में भी उड़ती रही हूँ
Naan to kavita mein ley hai or na hi vicharoon mei kari. Mein nahin manta, ke agar maan urdti hai to wo apni beti ka gala ghonte gi. Jo gala ghonte hain wo mard hein. Maan to bechari kabhi urden ki soch bhi nahin pai.
Do sujhav hein mere,
1. Manna ki aap ke dimag mein sochoon ka toophaan hai. Parantu in ko kagaz pe utaarna ik hoonar hai. Aap ne suna hoga ke 'guru bin gati nahin'. Yadi aap apni rachnaien kisi se sdharva lein to baat hi kuch aur ho gi.
Doosra, jagieye, sahar mein ghumiey thora bahut, aur vahan ka cuture samajhane ki koshish ki jiye. Duniya badal chuki hai. Aaj kal larkiyon ke pankh larkon se bhi bade aur majboot hein. Kisi bhi university mein ja kar dekho, roll of honor par adhiktar larkiyon ke hi naam hein. Behtar ho ga agar larke aapne baap se kahein,
'baap mujhe bhi larkion sa majboot aur sahansheel banna do'.
Kisi ne mujh se pehle bhi kaha hain ke kavita me bahav nahin hai. Par koshish achii hai. Vadhai
Ja'
marmik drishya utpann hua aapki kavita padhkar....nisandeh...aaj ke haalat ko ukherti shandaar achna....
badhai
divya
bhoot khoob
bhoot khoob
bahut hi sundarr
seriously girls have equal rights with them to come to this world and achieve thier dreams.and those people who kill girls bcz they consider them as a burden on them,they are wrong.this poem should be read to every person that do not like girls as their daughters.this poem is an awesomest poem describing girls emotions that i have heard in my whole life. people should read this poem.this is too cool guys. read it and enjoy it!!!
bahut bhavpurna kavita hai.saral shabdon mein gahri baat kahi hai.
अत्युत्तम प्रयास। धन्यवाद आपको इतने पवित्र विचारों और दिए गए संदेश के लिए।
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