आज के नियमित कवियों की अनुपस्थिति का लाभ लेते हुए अप्रैल माह के प्रतियोगी कवि कुलवंत सिंह की कविता 'प्रणय गीत' का आस्वाद लेते हैं। शाम तक पाठकों को हमारे नियमित कवियों की कविताएँ भी मिल जायेंगी। 'प्रणय गीत' कविता भी तंग हाथों वाले निर्णयकर्ता से ६॰५ चुरा लाई थी। प्रथम चरण के सभी चार ज़ज़ों के अंकों के आधार पर इसका स्थान सातवाँ था और दूसरे दौर के ज़ज़ ने भी इन्हें ७॰५ अंक देकर, इस कविता को ७वें पायदान पर बनाये रखा था। परंतु तीसरे चरण के ज़ज़ का मन यह नहीं जीत सकी। लेकिन हमारा विश्वास है कि यह कविता पाठकों का मन ज़रूर जीतेगी।
प्रणय गीत
गीत प्रणय का अधर सजा दो ।
स्निग्ध मधुर प्यार छलका दो ।
शीतल अनिल अनल दहकाती
सोम कौमुदी मन बहकाती
रति यामिनी बीती जाती
प्राण प्रणय आ सेज सजा दो ।
गीत प्रणय का अधर सजा दो ।
गीत प्रणय का अधर सजा दो ।
स्निग्ध मधुर प्यार छलका दो ।
ताल नलिन छटा बिखराती
कुन्तल लट बिखरी जाती
गुंजन मधुप विषाद बढाती
प्रिय वनिता आभास दिला दो ।
गीत प्रणय का अधर सजा दो ।
गीत प्रणय का अधर सजा दो ।
स्निग्ध मधुर प्यार छलका दो ।
नंदन कानन कुसुम मधुर गंध
तारक संग शशि नभ मलंद
अनुराग मृदुल शिथिल अंग
रोम-रोम मद पान करा दो ।
गीत प्रणय का अधर सजा दो ।
गीत प्रणय का अधर सजा दो ।
स्निग्ध मधुर प्यार छलका दो ।
कवि- कुलवंत सिंह
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रूड़की से रजत शौर्य (Silver Medallist from IIT Roorkee)
संपर्क-
वैज्ञानिक अधिकारी, पदार्थ संसाधन प्रभाग
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र
ट्रांबे, मुंबई 400085
SO/F, SES, MPD, BARC, Tromaby, Mumbai-400085
ईमेल- singhkw@indiatimes.com
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
कवि कुलवन्त जी आपका प्रणय गीत बढा ही सुन्दर है,..विशेष कर कुछ पक्तियाँ पसन्द आई,..
ताल नलिन छटा बिखराती
कुन्तल लट बिखरी जाती
गुंजन मधुप विषाद बढाती
प्रिय वनिता आभास दिला दो ।
गीत प्रणय का अधर सजा दो ।
बधाई।
सुनीता(शानू)
कुलवंत सिंह जी,
आपकी कविताएँ मैं पूर्व में भी पढ़ चुका हूँ, आपकी लेख़नी शब्दों को संजीव कर देती है, मैंने आपकी प्रत्येक रचना में इस प्रकार की खूबी देखी है। "प्रणय-गीत" के तो क्या कहने! पढ़ते ही भीतर कहीं झुनझुनी सी पैदा होने लगी है।
बधाई स्वीकार करें!
बहुत ही सुंदर है प्रणय गीत....आपके लिखे शब्दो ने मन मोह लिया
नंदन कानन कुसुम मधुर गंध
तारक संग शशि नभ मलंद
अनुराग मृदुल शिथिल अंग
रोम-रोम मद पान करा दो ।
गीत प्रणय का अधर सजा दो ।
यह बहुत सुंदर लगी पक्तियाँ...
मैंने कई प्रणय गीत पढ़े हैं, वैसे हर एक कवि अपने काव्य-कर्म के दौरान इस तरह की रचनाएँ अवश्य करता है। शायद आपकी यह कविता भी उसी की कड़ी है। और यह कविता बहुत अधिक सरस है। कविता के सभी पारम्परिक तत्व इसमें विद्यमान हैं। आपकी लेखनी का ज़ादू कभी न कभी हमारे ज़ज़ों पर भी चलेगा। शुभकामनाएँ!!
रचना के भाव सुन्दर हैं, किन्तु बहाव के अभाव में प्रभाव कम हो गया है।
सुंदर श्रंगारिक रचना।
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