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Wednesday, April 25, 2007

तो कोई बात नहीं




तुम्हारे नाम के साथ जुड़ने लगा है नाम मेरा
तुम्हें नहीं है फ़िकर, तो कोई बात नहीं

तमाम शहर में रुसवाइयों का मेरी चर्चा है
तुम्हें लगी न खबर, तो कोई बात नहीं

तेरी जफ़ाओं का कब किसी से जिक्र किया मैंने
अगर कहीं सुनी है,ये बात, तो कोई बात नहीं

यही वो दिल है जहां रहे तुम बरसों अपनी मर्जी से
गर नहीं पहचानते आज ये घर, तो कोई बात नहीं

ज़र्रा-ए-ख़ाक सही, परवाज की हसरत थी दिल में,
तेज हवाओं का मिला न साथ, तो कोई बात नही

कोई पहरा, कोई ताला नहीं घर के दरवाजे पर
आदतन तुम ही न आओ, तो कोई बात नहीं

अभी बीच राह में हूँ, खत्म नहीं हुआ है सफ़र
तुम्हें बदलनी है राहे गुजर, तो कोई बात नहीं

फ़िकर = चिन्ता
जिक्र = चर्चा
रुसवाइयों = बदनामी
जफ़ाओं = बेरुखी, साथ न देना,
ज़र्रा-ए-ख़ाक = रेत या मिट्टी का कण
परवाज = उडान
हसरत = इच्छा
आदतन = आदत से मजबूर

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16 कविताप्रेमियों का कहना है :

Gaurav Shukla का कहना है कि -

"यही वो दिल है जहां रहे तुम बरसों अपनी म्रर्जी से
गर नहीं पहचानते आज ये घर, तो कोई बात नहीं"
मोहिन्दर जी, बहुत अच्छा लिखा है आपने
सुन्दर

सस्नेह
गौरव

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

मोहिन्दर जी..
गज़ल बहुत ही सुन्दर बन पडी है। "कोई बात नही" कह कर व्यथा और मनःस्थिति को सुन्दरता से उकेरा है आपने।

*** राजीव रंजन प्रसाद

गीता पंडित का कहना है कि -

यही वो दिल है जहां रहे तुम बरसों अपनी म्रर्जी से
गर नहीं पहचानते आज ये घर, तो कोई बात नहीं"
मोहिन्दर जी,
बहुत अच्छा ,
बहुत सुन्दर
सस्नेह
गीता

सुनीता शानू का कहना है कि -

बहुत ही बेहतरीन तरीके से आपने हर बात कह दी फ़िर भी यह कहते है कि कोइ बात नही,..बहुत सुंदर एक-एक शब्द मायने रखता है हर शब्द एक दूसरे से जुदा होकर भी जुड़ा हुआ है वैसे तो हर पंक्ति बेहद सुंदर है मगर जो खा़स है वो यह है,..

यही वो दिल है जहां रहे तुम बरसों अपनी म्रर्जी से
गर नहीं पहचानते आज ये घर, तो कोई बात नहीं
बहुत ही सादगी से इकरारे-मोहोबत की है आपने,..हमे देर से बताया,तो कोई बात नही,..
सुनीता(शानू)

Anonymous का कहना है कि -

waise to poori gazal hi aachi ban padi hai magar mujhe sabse aachi yeh lines lagi

"यही वो दिल है जहां रहे तुम बरसों अपनी म्रर्जी से
गर नहीं पहचानते आज ये घर, तो कोई बात नहीं"

रंजू भाटिया का कहना है कि -

तुम्हारे नाम के साथ जुडने लगा है नाम मेरा
तुम्हें नहीं है फ़िकर, तो कोई बात नहीं

वाह!! क्या बात है ...

यही वो दिल है जहां रहे तुम बरसों अपनी म्रर्जी से
गर नहीं पहचानते आज ये घर, तो कोई बात नहीं

बहुत ख़ूब ...

अभी बीच राह में हूं, खत्म नहीं हुआ है सफ़र
तुम्हें बदलनी है राहे गुजर, तो कोई बात नहीं

दिल को छू गया आपका लिखा हुआ ...

छलके तो थे मेरी आँखो से अशक़ो के बादल
भीगा नही तेरे दिल का दामन तो कोई बात नही

चले थे एक ही राहा में हम तेरे हमराही बन के
अब तुम देख के अजनबी बन जाओ तो कोई बात नही !!


ranju...

Uttam का कहना है कि -

अभी बीच राह में हूँ, खत्म नहीं हुआ है सफ़र
तुम्हें बदलनी है राहे गुजर, तो कोई बात नहीं
Mera favorite line yeh hai..

Bahut hi khoob likha hai aapne..
Hum na likh sakein aise to koi baat nahi!!!!!!!!!!!!!

Anonymous का कहना है कि -

बहुत ही सुन्दर रचना! कितनी सुन्दरता से आप अपने दिल की बात कर गये है! सचमुच मजा आ गया।

दिल खोल कर रख दिया है हमने तो,
तुम्हें पसंद ना आया, तो कोई बात नहीं

Unknown का कहना है कि -

दिल से निकली ऍक ऎसी रचना जिसका ना आदि है ना अन्त। वाह मोहिन्दर जी।

Upasthit का कहना है कि -

"दिल से निकली ऍक ऎसी रचना जिसका ना आदि है ना अन्त। वाह मोहिन्दर जी।"....वरुण की बात से इत्तिफ़ाक रखता हूं...यह एक मौलिक विधा है, जिस पर मात्र मोहिन्दर जी का ही आधिपत्य हो ऐसा नहीं है, पर आप प्रतिनिधि हैं इस विधा के...बधाई...

Kamlesh Nahata का कहना है कि -

jo samajh main aaya wah bahut accha laga . ek nivedan hai - agli baar jab bhi aap urdu shabdon ka prayog karen to unka arth bhi prastut karen. iss se samajhne main aasani hogi. Mera urdu ka gyan zara sa kaccha hai.

likhte rahiye.

ghughutibasuti का कहना है कि -

बहुत सुन्दर शब्द, बहुत सुन्दर भाव !
घुघूती बासूती

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

मोहिन्दर जी,

कल जब मैंने आपकी कविता का शीर्षक पढ़ा था तो लगा कि ज़रूर श्रीमान ने मुकेश के गीत 'तुम मुझे चाहो न चाहो कोई बात नहीं, तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी' की बखिया उधेड़ी होगी। मगर आज जब पूरी कविता पढ़ा तो हतप्रभ हुआ कि नहीं यार! यहाँ मामला तो कुछ और ही है।

एक शेर जो ख़ास तौर पर पसंद आया-

यही वो दिल है जहां रहे तुम बरसों अपनी मर्जी से
गर नहीं पहचानते आज ये घर, तो कोई बात नहीं

SahityaShilpi का कहना है कि -

ग़ज़ल के भाव अच्छे हैं, मगर बहर में अंतर होने से गजल कुछ विशेष प्रभाव नहीं छोड़ पायी। फिर भी प्रयास अच्छा है।

पंकज का कहना है कि -

रचना का मुख्य भाव बेहतर है, लेकिन कहना ही होगा कि अभी आप और मेहनत की ज़रूरत है।
सभी शे़'र बराबर साइज़ के न होने से गज़ल का मज़ा किरकिरा हो जाता है।
बुरा न मानियेगा , एक उदाहरण पेश करना चाहूँगा--

तमाम शहर में रुसवाइयों का मेरी चर्चा है
तुम्हें लगी न खबर, तो कोई बात नहीं

इन लाइनों को पठनीयता बढ़ाने के लिये ऐसे भी लिखा जा सकता था--
तमाम शहर में रुसवाइयों का चर्चा हे।
तुम्हें लगी नहीं खबर, तो कोई बात नहीं।।

Unknown का कहना है कि -
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