देखे हैं डूबे हुये ख्वाबों के ज़ज़ीरे यहाँ
देखे हैं भटकते चाहतों के काफिले यहाँ...
हकीकत से हारी है दिल वालों की दुनियाँ
गम-ए-दिल की है ये हम पर मेहरबानियाँ
नहीं बस सका मेरे प्यार का आशियाँ
सुनने को तरसे हम खुशियों की शहनाइयाँ
देखे हैं डूबे हुये ख्वाबों के ज़ज़ीरे यहाँ
देखे हैं भटकते चाहतों के काफिले यहाँ...
अब तो रह गई पीछा करती कुछ परछाइयाँ
मेरे हसींन ख्यालों मे बसी कुछ निशानियाँ
जमाने की तरह बेवफा नहीं मेरी तनहाइयाँ
आज फिर लुटी है ज़िन्दगी करते मौत की नीलामियाँ
देखे हैं डूबे हुये ख्वाबों के ज़ज़ीरे यहाँ
देखे हैं भटकते चाहतों के काफिले यहाँ...
*********अनुपमा चौहान***********
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
खूबसूरत नज़्म है
वेदना को बहुत सुन्दरता से उकेरा है आपने
"देखे हैं डूबे हुये ख्वाबों के ज़ज़ीरे यहाँ
देखे हैं भटकते चाहतों के काफिले यहाँ"
सुन्दर
सस्नेह
गौरव शुक्ल
देखे हैं डूबे हुये ख्वाबों के ज़ज़ीरे यहाँ
देखे हैं भटकते चाहतों के काफिले यहाँ...
खूबसूरत नज्म। बधाई अनुपमा जी।
हकीकत से हारी है दिल वालों की दुनियाँ
गम-ए-दिल की है ये हम पर मेहरबानियाँ
नहीं बस सका मेरे प्यार का आशियाँ
सुनने को तरसे हम खुशियों की शहनाइयाँ
देखे हैं डूबे हुये ख्वाबों के ज़ज़ीरे यहाँ
देखे हैं भटकते चाहतों के काफिले यहाँ...
BAHUT KHOOB ,,,
बहुत ही खूबसूरत नज़्म!!!
सुन्दर लिखा है
बधाई,..
सुनीता
बहुत सुन्दर नज़्म है। ख्वाबों को "ज़ज़ीरे" कहना बहुत ही सुन्दर बिम्ब है। चाहतों के काफिले भटकना भी बात को गहराई प्रदान कर रहा है। कुछ अन्य पंक्तिया जो सराहनीय हैं वे हैं:
"हकीकत से हारी है दिल वालों की दुनियाँ"
"अब तो रह गई पीछा करती कुछ परछाइयाँ"
"जमाने की तरह बेवफा नहीं मेरी तनहाइयाँ"
सस्नेह।
*** राजीव रंजन प्रसाद
सुन्दर लिखा है अनुपमा जी
हकीकत से हारी है दिल वालों की दुनियाँ
गम-ए-दिल की है ये हम पर मेहरबानियाँ
नहीं बस सका मेरे प्यार का आशियाँ
सुनने को तरसे हम खुशियों की शहनाइयाँ
अनुपमा,
मैं थोड़ा अपरिचित था तुम्हारे इस अंदाज से किंतु काफी अच्छा लगा यह पढ़कर…बहुत सटीक सलीके अंदाज में प्रेम और स्नेह की अभिव्यक्ति को शब्द दिये हैं…धन्यवाद!!!
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