वक्त ने साथ जो दिया होता;
आप ने हाथ जो दिया होता।
आदमी हम भी काम के होते;
इक दफा 'हाँ' जो कह दिया होता।
हौसले की कमी न थी मुझमें;
इक इशारा जो मिल गया होता।
लोग कहते न निकम्मा मुझको;
काम मुझसे जो कुछ लिया होता।
मौत तो मिलती सुकून की मुझको;
साफ ग़र 'ना' ही कह दिया होता।
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
वक्त ने साथ जो दिया होता;
आप ने हाथ जो दिया होता।
हौसले की कमी न थी मुझमें;
इक इशारा जो मिल गया होता।
मौत तो मिलती सुकून की मुझको;
साफ ग़र 'ना' ही कह दिया होता।
nice lines.....keep expressing....
पंकज जी आजकल आप कुछ ज्यादा ही श्रंगारिक कविताएं लिखने लगे हैं, कोई खास वजह तो नहीं? वैसे अच्छि रचना है।
बहुत ख़ूब....
हौसले की कमी न थी मुझमें;
इक इशारा जो मिल गया होता।
मौत तो मिलती सुकून की मुझको;
साफ ग़र 'ना' ही कह दिया होता।
लोग कहते न निकम्मा मुझको;
काम मुझसे जो कुछ लिया होता।
आपकी ये लाईंनें तो मुझ पर भी पूर्णतया लागू हो रही है, बहुत खूब!
मौत तो मिलती सुकून की मुझको;
साफ ग़र 'ना' ही कह दिया होता।
सही लिखा है न खुदा ही मिला ना विसाले सनम,..न इधर के रहे ना उधर के रहे,...
अच्छी रचना है,...
सुनीता(शानू)
आपकी गज़लें गुनगुनाने पर समां बाँध देंगी, बेहद नपी तुली लगती हैं। ये पंक्तियाँ विशेष पसंद आयीं...
वक्त ने साथ जो दिया होता;
आप ने हाथ जो दिया होता।
लोग कहते न निकम्मा मुझको;
काम मुझसे जो कुछ लिया होता।
*** राजीव रंजन प्रसाद
काश तुमने न चाह्तों का मीनार बनाया होता
जो तुम्हें चाहता था, उसी को तुमने चाहा होता
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