जीवन का एक कटु पल देख कर
प्रयत्न में विराम न आये
एक चोट से घायल हो कर
राह तुम्हारी कहीं बदल ना जाये
कितनी देर ठहरेगा आवारा बादल
कब तक यह बौछार रहेगी
तूफान रहेंगे आते जाते
फिर मनचाही बयार बहेगी
आंखों में यूं आंसु भरकर
नजर न कर तू धूंधली अपनी
मुस्कानों के रथ पर चढ कर
पानी है तुझे मंजिल अपनी
कब सूखे हैं वृक्ष हरीले
पत्तों के गिर जाने से
नीड बनेंगे फिर से इन पर
बसन्त बहार के आने से
फिर से कलियां खिल आयेंगी
फिर से कोयल कूकेगी
फिर से फल आयेंगे इन पर
फिर ये डालें लद जायेंगी
पथ के क्षणिक ठहराव को
मृत्यू की तुम संज्ञा देकर
जीवन को रसहीन न करना
इस धरा पर जन्म लिया है
सबको ही है एक दिन मरना
देख ध्यान से समय को करवट लेते
जीवन नाम है परिवर्तन का
व ऋतुओं के आने जाने का
जब आन्नद का अमृत पिया है
पीडा में, न सम्बल ले, बहाने का
काल के कपाल पर कील ठोंक कर
अनवरत रख तू यात्रा जीवन की
राहें सुगम हो जायेंगी स्वंय ही
प्रकाशित हो, उज्जवल स्वर्णिम सी
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
अनुपम आशावादी कविता है:
काल के कपाल पर कील ठोंक कर
अनवरत रख तू यात्रा जीवन की
राहें सुगम हो जायेंगी स्वंय ही
प्रकाशित हो, उज्जवल स्वर्णिम सी
बधाई आपको।
*** राजीव रंजन प्रसाद
नजर न कर तू धूंधली अपनी
मुस्कानों के रथ पर चढ कर
पानी है तुझे मंजिल अपनी
कब सूखे हैं वृक्ष हरीले
पत्तों के गिर जाने से
नीड बनेंगे फिर से इन पर
बसन्त बहार के आने से
very inspirational poem
so compelled to write a comment :)...very good poem, truely of my type....behad khoobsurat. ek kavita ke liye isase achchhi vishay nahi ho sakti. aur aapne ise behad tarike se likha hai. badhai ho!!
जीवन नाम है परिवर्तन का
व ऋतुओं के आने जाने का
जब आन्नद का अमृत पिया है
पीडा में, न सम्बल ले, बहाने का
काल के कपाल पर कील ठोंक कर
अनवरत रख तू यात्रा जीवन की
राहें सुगम हो जायेंगी स्वंय ही
प्रकाशित हो, उज्जवल स्वर्णिम सी
बेहद ख़ूबसूरत लिखा है
कुछ प्रेरणा देती हुई लगी यह रचना ..
अच्छी आशावादी कविताऐ
behad khoosurat aur prerNatmak.
Beautiful, indeed !!!
सुंदर लिखा है।
कितना अद्भुत संयोग है कि प्रत्येक मंगलवार को दोनों नियमित कवियों की कविताओं का केन्द्रीय भाव लगभग एक सा होता है! कई बार तो पाठकों को यह भी लगता होगा कि ये दोनों आपस में चर्चा करके अपनी कविताएँ प्रकाशित करते होंगे। हा!हा!हा!
लोगों को जीवन की सत्यता सिखाने का कवि का प्रयत्न सुंदर है। कितनी सुंदर बात लिखी है!
मृत्यु की तुम संज्ञा देकर
जीवन को रसहीन न करना
सत्य है, ज्यादातर लोगों की ज़िंदगी इसलिए भी बेज़ान होती है क्योंकि उनको हमेशा की मृत्यु का भय सताता रहता है।
हार न मानने की प्रेरणा से भरपूर, एक सुंदर आशावादी रचना।
बड़ी हीं ऊर्जावान कविता है। कुछ करने का और जीवन में हार न मानने का संदेश देती है। श्लेश अलंकार का बड़ा हीं बढिया प्रयोग किया है आपने->
काल के कपाल पर कील ठोंक कर
अनवरत रख तू यात्रा जीवन की
राहें सुगम हो जायेंगी स्वंय ही
प्रकाशित हो, उज्जवल स्वर्णिम सी
बधाई स्वीकारें।
"जीवन नाम है परिवर्तन का"
सत्य है
बहुत सुन्दर, प्रेरणास्पद, उत्कृष्ट कविता
बधाई मोहिन्दर जी
सस्नेह
गौरव शुक्ल
कविता भली है..परिवर्तन से आशा का उदय...खैर और कोई चारा भी नहीं.....
आशावाद एक्बार फ़िर पढने को मिला पर उधारी का अशावाद पढ पध कर कान पक चुके हैं कवि...कुछ कभी अपना..कभी कहीं से मौलिक भले ही कितना भी बोझिल हो लाओ सुनाओ.....
और एक बात जो सबसे आकर्षक थी कि काल के कपाल पर लिख कर मिटाते सुना था...आपने कील ठोंक एक नया प्रतीक प्रस्तुत किया है...बधाई...
एक सम्मपूर्ण आशावादी कविता.
मृत्यू की तुम संज्ञा देकर
जीवन को रसहीन न करना
सही कहा है आपने.
A poem which gives direction of positive attitude... keep it up.. nice one.
thnxxx....for sharing such beautiful poem wid us....nice
zzzzz2018.6.2
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