यह चर्चा मैं बहुत दिनों से करने की सोच रहा था, परन्तु अवसर नहीं मिल पा रहा था। कल चिट्ठाचर्चा में उड़न तश्तरी ने 'हिन्द-युग्म' से कॉपी न हो पाने बात उठाकर मुझे मौका दे दिया। समीर भाई अपनी पोस्ट में राजीव रंजन प्रसाद का गीत 'सागर से पूछो दरिया कहाँ है' की वाहवाही तो कर रहे हैं, परन्तु नकल पर गिरिराज भाई ने ताला लगा रखा है, यह कहकर वे पाठकों के समक्ष गीत की चंद पंक्तियों का नज़ारा नहीं पेश कर पा रहे हैं।
चूँकि हिन्दी चिट्ठों की संख्या प्रतिदिन बढ़ रही है। पाठकों को नारद हररोज़ ५० से अधिक नये पोस्ट दिखा रहा है। पाठक कम समय भी खर्च करना चाहता है और हिन्दी चिट्ठों में जो-जो बेहतर हैं उन्हें पढ़ भी लेना चाहता है। यदि वह सभी चिट्ठों पर बारी-बारी से हिट करके यह पता करेगा कि कौन-कौन बढ़िया हैं? किसे-किसे पढ़ना चाहिए? तो शायद दो दिनों में या तो चिट्ठाचर्चाकार बन जायेगा या चिट्ठापठन का मैदान छोड़कर भाग जायेगा।
मगर जो एक बार पढ़कर फँस गया, हम उसे जाने भी नहीं देना चाहते हैं। इसीलिए चिट्ठाचर्चा की शुरुआत कर दी है। चिट्ठाचर्चाकारों ने यह तय किया है कि वे एक दिन के सभी चिट्ठों की ईमानदार समालोचना करेंगे।
समझने के लिए पारम्परिक रूप से चल रही पुस्तक-समीक्षा और फ़िल्म-समीक्षा का उदाहरण लिया जा सकता है। सामन्य पाठक/दर्शक समीक्षकों की उँगुलियाँ पकड़कर फ़िल्मों/किताबों को हिट करने में अपना बहुमूल्य योगदान देता है। यानी समीक्षक की क्षमताएँ पाठक से अधिक होनी चाहिएँ। उसकी यह कोशिश होनी चाहिए कि वह पाठक या दर्शक को यह बता सके कि बेहतर क्या है? किसी स्टारडम के चक्कर में न पड़े। पूर्वाग्रह का रोगी न हो। ये सारी शर्तें चिट्ठाचर्चाकारों पर भी समान रूप से लागू होती हैं।
वो ऐसा न करे कि दो-चार चिट्ठों की समीक्षा करके बाकियों के संग्रह का बस एक लिंक दे दे। अपने को केवल इस कारण से न बचाये कि अमुक चिट्ठे से तो कॉपी होता ही नहीं, यार! टाइप कौन करे?
अरे भैया! जब टाइप करने से बचना चाहते थे तो चिट्ठाचर्चाकार क्यों बने थे? समयाभाव की डफली बजाकर मात्र लिंक देकर काम चलाओगे तो उभरते चिट्ठाकार तो अंकुरण से पूर्व ही झुलस जायेंगे। कोई बहाना नहीं चलेगा। चिट्ठाचर्चा का जब इतना महत्व है तो उसके संचालकों की जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है। चिट्ठाचर्चाकारों की पठनियता का सीमांकन नहीं होना चाहिए। यह बात तो होती ही है कि अच्छे लेखक सदैव ही अच्छे पाठक नहीं होते हैं, शायद इसीलिए अधिकतर चिट्ठाचर्चाकार अच्छे पाठक नहीं हैं। फिर चिट्ठाचर्चा वाले अपना यह मंच सुधी पाठकों के लिए क्यों नहीं खोलते हैं? अब यह मत कहना! भाई! कोई आए तो सही! हम चिट्ठावालों के पास कोई नहीं आयेगा, बेड़ा हमने उठाया है तो हमें ही सम्पर्क साधना होगा।
यहाँ तो वही वाली बात हो गयी कि समीक्षक स्वयम् को ही कटघरे में खड़ा कर लिया। अपनी क्षमता पर प्रश्नचिह्न लगा लिया है। किसी पोस्ट की प्रसंशा करते समय यह मत सोचो कि एहसान कर रहे हो, बल्कि यह सोचो की अपना काम कर रहे हो। घटिया, उबाऊँ, अप्रासंगिक पोस्टों की निंदा करते समय अश्रद्धा का डर न रखो बल्कि यह सोचो कि तुम नहीं सीखाओगे तो इसकी शैली हमेशा यही बनी रहेगी।
दूसरी प्रमुख बात मैं ब्लॉग-तकनीक के जानकारों से करना चाहता हूँ। जबकि चिट्ठाचर्चा का हमारे लिए इतना महत्व है, ऐसी स्थिति में हम यह कभी नहीं चाहेंगे कि 'हिन्द-युग्म' के कविताओं की बानगी चिट्ठाचर्चा पर न देखने को मिले। हर कोई सफल होना चाहता है। हम अपने घर पर ताला अपने हितैषियों के डर से थोड़े लगाते हैं! बल्कि उनलोगों के लिए, जो चोर तो हैं लेकिन दिन-दहाड़े चोरी में विश्वास नहीं करते। ऐसे चोर हैं जो साँप भी मारना चाहते हैं और लाठी भी नहीं तोड़ना चाहते हैं। ऑरकुट पर इस तरह के चोरों की संख्या बहुत है। ऐसे लोग कम से कम हमारे माल की नकल अवैधानिक तरीके से नहीं उतार पा रहे हैं।
हिन्दी-चिट्ठाकार सदैव से आपस में मित्र भाव रखते हुए आगे बढ़ते आए हैं। सभी को याद होगा कि हमलोगों में से बहुतों ने कुछ महीनों पहले चिट्ठाचोरी की हाय-तौबा मचाई थी। हिन्द-युग्म की भी बहुत सी कविताएँ चोरी हुईं। हम अपने ताले की कुँजी भी आपको दे सकते हैं। ब्लॉगविद् यह जानते ही होंगे यह तरीका केवल कम चालाक चोरों को भरमा पायेगा। जिन्हें जुगाड़ पता है वे इसे भी चुरा लेंगे।
ऐसे में ब्लॉगपंडितों को यह नहीं लगता कि कोई ऐसी तकनीक विकसित की जाय जिससे चिट्ठाचर्चाकारों को भी सुविधा हो जाये और किसी भी तरह हमारा माल चोरी न हो? क्या दुनिया के हर भाषा के ब्लॉग चोरी हो रहे हैं? यदि हाँ, तो कब तक हमें आपलोग कोई नायाब टूल दे देंगे? क्या तब तक अपने-अपने ब्लॉग से यह कमज़ोर ताला भी हटा लें? और यदि नहीं, तो फिर उस तकनीक को हिन्दी-ब्लॉग तक पहुँचने में कितना समय लगेगा?
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
21 कविताप्रेमियों का कहना है :
आपको अपनी बात कहने का व विरोध दर्शाने का अधिकार है, मगर चिट्ठाचर्चाकार की क्षमता व नियत पर उँगली न उठाएं.
ताली दोनो हाथो से बजती है.
जिसे चोरी करनी होगी व दुबारा टंकण भी कर लेगा.
भाई, मेरे ख़्याल से अभी तक कोई ऐसी तकनीक नहीं बनी जिससे ऑनलाइन सामग्री की चोरी रोकी जा सके। चुराने वाले कुछ भी चुरा सकते हैं। मेरा सुझाव है कि आप अपना यह ताला खोल दें ताकि चिट्ठाचर्चाकारों को सुविधा हो।
अक्तूबर, 2006 की एक पोस्ट चिट्ठा चर्चा के मानदंड (http://srijanshilpi.com/?p=59) में जो बातें मैंने कही थीं, आपकी इस पोस्ट में भी कुछ-कुछ वही भाव प्रतिध्वनित हो रहा है।
यह जरूर है कि सामग्री की चोरी से बचने के लिए आपलोगों के द्वारा किया गया जरूरी उपाय चिट्ठा चर्चाकारों की मेहनत बढ़ा देगा। कुछ बातें ध्यान में रखी जानी चाहिए कि चिट्ठा चर्चाकारों के पास पोस्टों की समीक्षा या समालोचना के लिए पर्याप्त अवकाश नहीं होता। हम उनसे इतनी प्रतिबद्धता और समयदान की अपेक्षा नहीं कर सकते। कविताओं के मामले में अनूप जी ने प्रियंकर जी से विशेष रूप से चिट्ठा चर्चा में योगदान करने का अनुरोध किया है। आप भी इस काम में उनके साथ हाथ बंटा सकते हैं।
चिट्ठा चर्चा में निरन्तर सुधार आ रहा है, हालांकि मैं भी इस बात से सहमत हूँ कि किसी समीक्षक से जितने सचेत, निष्पक्ष, न्यायपूर्ण और सहृदय होने की उम्मीद की जाती है, उस कसौटी पर हमारे कुछ चर्चाकार साथी पूरी तरह खरे नहीं उतरते। लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि धीरे-धीरे और भी कुशल एवं अनुभवी साथी चिट्ठा चर्चा में अपना योगदान देने के लिए आगे आएंगे और मौजूदा चिट्ठा चर्चाकार भी अनुभव के साथ-साथ परिपक्व और परफेक्ट होते जाएंगे।
आप विरोध जताइए, चिट्ठाकार की क्षमता और नियति पर अंगुली मत उठाइए।
आप लोगों मे से कुछ लोग सादर आमंत्रित है चर्चा करने के लिए। बताइए कौन आ रहा है?
पाठ नकल नहीं हो पाने की जो युक्ति आपने लगाई है वह सिर्फ इंटनरेट एक्सप्लोरर पर ही काम करती है, ऑपेरा पर बिलकुल काम नहीं करती तथा फ़ॉयरफ़ॉक्स पर आंशिक काम करती है. इंटरनेट एक्सप्लोरर पर भी पेज सेव एज कर या पेज सोर्स देख कर वहाँ से पाठ की नकल आसानी से की जा सकती है. अतः एक तरह से यह फ़ालतू और बेमतलब ही है.
रहा सवाल चिट्ठाचर्चाकारों की क्षमताओं पर प्रश्नचिह्न लगाने का, तो मेरे विचार में चिट्ठाचर्चा कोई ऐसा मंच नहीं है जहाँ क्षमताएं नापने का कोई पैमाना हो. और न ही वह ऐसा स्थल है जो चिट्ठों के भी पैमाने तय करता है. वह महज एक चिट्ठा स्थल ही है - बिना पूर्वाग्रह के पढ़ें व आनंद लें. हर चिट्ठाचर्चाकार अपनी शैली व पसंदगी के हिसाब से चर्चा करता है. आपको लगता है कि आप भी चर्चा कर सकते हैं तो स्वागत है आपका.
मैने कभी नही माना कि चिठ्ठाचर्चा चिठ्ठों की समीक्षा करता है। चिठ्ठाचर्चा का काम केवल चिठ्ठों को एक कहानी या कविता के माध्यम से प्रस्तुतिकरण करना होता है।
जहॉं तक ताला लगाने की बात है, तो मै भी सहमत नही हूँ। किसी भरे समाज मे कोई वस्तु रख कर चोर से बचाने की बात समझ मे नही आती है। अगर हम इन्टर नेट पर अपनी रचना डाल रहे है तो कहॉं तक इसे छिपाते घूमेगें।
इन्टरनेट काजल की कोठरी है, इसमे हम बैठे है तो काले होने के डर से बचना होगा।
यही मै सभी से कहूँगा कि चोरी चोरी हल्ला मचाना बन्द करें। अगर अपने लेख और कविता की इतनी सुरक्षा की आवश्यकता है तो इसे इन्टरनेट पर न डाल कर किताब के रूप मे प्रस्तुतिकरण करे। मात्र आपने ब्लाग पर कापी राईट लिख देने से कापी राइट नही हो जाता है। कापी राईट प्राप्त करने के लिये वकायदा शुल्क जमा करना होता है।
शैलेश जी मै आपसे ही नही सभी लेखको से कह रहा हूँ, जो लिखते है। और जिन्हे चोरी का डर हो वे न ही लिखे तो बेहतर होगा। लिखे तो बे खौफ हो कर
शैलेशजी, हमें न अपनी क्षमता के बारे में गलतफहमी है न ही आपकी अपेक्षाऒं पर एतराज। आपकी अपनी समझ है, हमारी नीयत के बारे में जैसा आप ठीक समझें वैसी धारणा बनाने के लिये सर्वथा स्वतंत्र हैं।
लेकिन अगर आप जानना चाहे तो कुछ बातें अर्ज करना चाहूंगा।
१. चिट्ठाचर्चा की समीक्षा का कोई दावा नहीं रहा कभी। एक दिन में पचास चिट्ठे लिखे जाते हैं। कुछ दिन में पांच सौ लिखे जायेंगे। इतने चिट्ठों की समीक्षा अगले दिन कोई अकेला व्यक्ति फिलहाल नहीं कर सकता।
२. अगर चिट्ठाचर्चा कभी फिर पढ़ें हों सबसे दायें कोने पर ऊपर देखें। वहां शायद आपको चिट्ठाचर्चा का 'ध्येयवाक्य' दिखे। इसमें लिखा है-
दुनिया की किसी भी भाषा के चिट्ठे की चर्चा का प्रयास। इस प्रस्तुति में हमारी कोशिश होगी कि विभिन्न भाषाओं की चुनिंदा प्रविष्टियों का ज़िक्र करें। हमारा मकसद चर्चा करना है न कि समीक्षा करना। हमारी बौद्धिक क्षमता इतनी नहीं है कि हम इतने चिट्ठों की, अगले दिन, समीक्षा कर सकें।
३. हमने कोई समीक्षा करने का बीड़ा नहीं उठाया है। चर्चा करने का हमारा प्रयास रहता है, वह हम करते हैं।
४.हमें समीक्षक होने की कोई गलतफहमी नहीं है। हमारी क्षमतायें सीमित हैं। तमाम ब्लागर हम लोगों से ज्यादा गुणी हैं, ज्ञानी हैं। हम उनके लिखे की समीक्षा करने के काबिल नहीं हैं। हां, अच्छा महसूस करके चर्चा करने का मन करता है तो कर देते हैं।
५.चर्चा में हम अपनी तरफ़ से पूरी इमानदारी बरतने का प्रयास करते हैं। लिंक के अलावा उद्धरण भी देने का प्रयास करते हैं। अब अगर कापी करने तकलीफ़ होगी तो स्वाभविक रूप से उसके छूट्ने की या कम होने की संभावना है। बाकी चर्चाकार की पसंद-नापसंद को कोई कैसे रोक सकता है। कविराज ने एक दिन चर्चा की तो कवि-प्रधान रहे। यह स्वाभाविक बात है।
६. जितने भी चर्चाकार हैं वे सब कामकाज से फुर्सत निकालकर तब चर्चा करते हैं। कोई भी पूर्णकालिक ब्लागर नहीं है। एक पोस्ट लिखने स तीनगुना समय लगता है चर्चा में। मैं जब लिखता हूं तो करीब तीन-चार घंटे लगते हैं। इतने में चर्चा मुश्किल से हो पाती है। समीक्षा संभव नहीं है।
७. आपने मना किया है कि हम यह न कहने लगें कि आओ करो चर्चा। लेकिन फिर भी कहता, अनुरोध करता हूं शैलेश आप हमारे साथ जुड़े और हमें चर्चा करने की तमीज सिखायें ताकि हम समीक्षा तो नहीं लेकिन अपनी चर्चा करने का स्तर सुधार सकें।
यह मैंने अपनी और अपने साथियों की स्थिति स्पष्ट करने के लिये लिखा। टिप्पणी लंबी हो जाने का अफसोस है लेकिन पोस्ट लिखने से बच जाने की खुशी भी है। आशा है इसे अन्यथा न लेंगे।
बाकि बातें तो जो हैं सो हैं, लेकिन ये कॉपी से बचाने की कोशिश बेकार है। किसी भी आर एस एस रीडर में इम्पोर्ट कर सब कॉपी पेस्ट हो सकता है।
अब कल ही बड़ा सोच समझ कर, और मन से चिट्ठा लिखा था मैंने, चिट्ठाचर्चा में नहीं आया तो सबको पकड़ कर पढ़वाया,लेकिन असंतोष नहीं है। वैसे मेरे चिट्ठे का लिंक ये रहा http://hindi-mishranurag.blogspot.com/2007/03/blog-post_7021.html
थैंकू
@संजय बेंगाणी
श्रीमान्! हमें मालूम है कि हम सभी चिट्ठाकार कोई तोप नहीं हैं मगर हाँ जितना दे रहे हैं उससे अधिक क्षमता हमारे भीतर है। मैं तो एक सामान्य पाठक की भाँति यह बता रहा हूँ कि जितना है उससे बेहतर आपलोग कर सकते हैं। यदि आपलोग मुझे अपने चिट्ठाकार परिवार का सदस्य समझते हैं तो फिर मेरी प्रतिक्रिया पर यह आक्रोश ठीक नहीं।
हाँ, मैंने कहा तो कि यह ताला कम शातिर चोरों के लिए। कड़े पहरे के बावज़ूद महत्वपूर्ण स्थलों पर आतंकवादी हमले हो ही जाते हैं, इसका मतलब यह नहीं कि सुरक्षा हटा ली जाय।
@प्रतीक
हाँ प्रतीक जी, आज आप ब्लॉगविदों की सूचना से मुझे यही समझ में आ रहा है कि हमें यह ताला हटा ही लेना चाहिए क्योंकि चिट्ठाचर्चा में हम अपनी भी चर्चा करवाना चाहते हैं।
@ सृजन शिल्पी
जी मैंने आपका यह लेख पढ़ा था। हम अनूप शुक्ला जी या अन्य साथियों की आलोचना नहीं कर रहे हैं और न हीं चिट्ठाचर्चा में उनके योगदान व प्रयास को कम आँक रहे हैं। मेरी इस चिंता से साफ़ जाहिर है कि चिट्ठाचर्चा का हम उभरते ब्लॉगरों के लिए कितना अधिक महत्व है।
मैं भी इस बात से सहमत हूँ कि चिट्ठाचर्चा में लगातार सुधार आ रहा है, मगर हम और बेहतर देखना चाहते हैं।
@ जितेन्द्र चौधरी
किसी को बिना परखे मत बुला लीजिए। आप तो बहुत पहले से ब्लॉग लेखकों और पाठकों पर नज़र रखे हुए हैं, आपको पता होगा कि यह काम बेहतर ढंग से कौन कर सकता है? उससे सम्पर्क स्थापित कीजिए। हम तो अपना ही ब्लॉग पूरा नहीं पढ़ पाते, चिट्ठाचर्चा क्या करेंगे?
@ रवि रतलामी
हाँ, मैंने भी इसका परीक्षण किया है कि यह तरीका मात्र आईई पर ही काम करता है। मगर मैंने यह साफ़-साफ़ लिखा है कि इससे चोरी को आंशिक रूप से ही रोका जा सकता है। आज गिरिराज भाई अनुपस्थित हैं, कल जैसे ही वे आयेंगे उनके चर्चा करके यह ताला हटा लिया जायेगा।
@ महाशक्ति
हाँ, समीक्षा की जगह प्रस्तुतिकरण चिट्ठाचर्चा की सच्चाई हो सकती है।
आपने जिस उदाहरण के साथ अपनी बात कही है उसके साथ-साथ एक सवाल का कृपया उत्तर दें-
जैसा कि आपने सुना होगा कि भारत में लड़कियों को घर से निकलने पर यह खतरा बना होता है कि पता नहीं आज वह सही-सलामत वापस आयेगी कि नहीं। मतलब जो लोग उनकी सलामती चाहते हैं उन्हें उनको बाहर ही नहीं निकलने देना चाहिए? या तो सलामती के बारे में सोचना बंद कर दें। कि बेहतर यह होगा कि कुछ कानून बनायें और बूरी नीयत वालों को सज़ा दें?
लेखक या कवि के लिए उनकी रचनाएँ अपने बच्चों की तरह होती हैं क्योंकि वह उसका सृजक होता है, ऐसे में वो उनकी पूरी सुरक्षा चाहेगा। हाँ, दुनिया की डर से उसे वह गर स्कूल-कॉलेज़ नहीं भेजेगा तो फिर विकास कैसे होगा? सृजनात्मकता की सफलता इसमें है कि वह पाठकों तक पहुँचे और हर लेखक सभी माध्यमों का प्रयोग करके सफल होना चाहता है। चूँकि अंतरजाल का माध्यम सबसे सरल है इसलिए वह यहाँ शुरू हो जाता है।
@ अनूप शुक्ला
आप उपर्युक्त की मेरी प्रतिउत्तर देखें तो आपको पता चलेगा कि हमें आपकी क्षमताओं पर ऐतराज़ नहीं है बल्कि और सुंदर प्रस्तुतिकरण का निवेदन अवश्य है।
हाँ, अब तो आपको लग रहा होगा कि आपके चिट्ठाचर्चा को हम चर्चा से अधिक एक समीक्षक के नज़रिये से देखने लगे हैं। शायद इसमें हमारी ही गलती है कि हमें धोखा हुआ है मगर हमारा यह भ्रम विश्वास में बदल जाये तो मज़ा आ जाये।
नहीं! अनूप जी! एक सामान्य व्यक्ति प्रशासनिक अधिकारियों के अकर्मिक होने पर अगर आक्रोश दिखाए तो उस अधिकारी द्वारा यह कहा जाना कि तुम ही आकर देख लो उसकी सही सिद्ध नहीं करता। हमारी चिंता करने का यह मतलब नहीं है कि हमारे पास आपलोगों से अधिक क्षमताएँ हैं, बल्कि आपलोगों से बेहतरी का निवेदन करने आये हैं।
@ अनुराग मिश्रा
हम यह समझ चुके हैं। बहुत जल्द कुछ न कुछ करने वाले हैं।
शैलेश जी,
आपने जैसा लिखा और जो सोच कर लिखा वैसा सोचना स्वभाविक है कि चिट्ठाचर्चा में युग्म का ज़िक्र क्यों नहीं हुआ जब की आप एक पुराने सदस्य हैं।
किन्तु बिन्दु यहाँ विश्राम नहीं करता। चिट्ठाचर्चा करने वाले, भी हमारी तरह के लोग हैं जोकि भिन्न भिन्न कारणो से शायद आपके ब्लौग के बारे में ना लिख सके हों।
१. पहला यह कि चिट्ठाचर्चा वालों कि रुचि किस प्रराक के चिट्ठो को पर अप्नी प्रतिक्रिया करने की करती है, उस पर आप हम या और कोई प्रशन नहीं उठा सकता, यह एक व्यक्तिगत मामला है। जैसे, मै सभी लेख नही पढ़ता और ना ही प्रतिक्रिया या अपनी प्रतिक्रिया की करता हूँ।
२, दूसरा यह, की हमें उन्माद में यह नहीं भूलजाना चाहिये, कि सभी के जीवन में समय की कमी है, और अपने जीवन में से हम सभी लोग समय निकाल कर जो मन पसंद का काम हो वही करना चाहेंगे। ऐसे में, समय के अभाव के कारण भी ऐसा हो सकता है, की आप के ऊपर ध्यान नहीं गया हो। और गया भी हो, तो लोगों ने किसी और काम को अधिक प्राईयोरटी दी हो। जैसा की हम भी शायद करते हैं। अब आपका यह प्रश्न भी हो सकता है, की हमेशा आप के साथ ही ऐसा क्यों, सो मुझे यह लगता है की बाकी सारी बातें व्यर्थ है, हम लोग आप तौर पर जीवन में जिन से किसी भी कारण से अपने आप को नज़दीक समझते है, शायद हम उन की ही बात को सबसे पहले सुनना और पढ़ना चाहते हैं। दूसरे नम्बर आता है, "मन और मशतिष्क के लिये आलू का झोल" :) मतलब जिस की बात मन को छू जाये, हम तुरन्त उस पर विचार करते हैं। इस का यह अर्थ बिल्कुल ना निकालें की आपके ब्लौग पर वह सब नही है, जिसको पढ़ कर लोगो के मन में कोई विचार ही उतपन्न ना हो। बस यह समझ लीजीये यह भी एक व्यक्तिगत ममला है। कयोंकि चिट्ठाचर्चा बस एक अनऔपचरिक संगठन है, सो इस पर भी कुछ नही कहा जा सकता।
३. तीसरी और सबसे महत्व की बात यह भी है कि ... "समीक्षा" करना, सरल नहीं है। हाँ "औपचरिकता" वश कोई आप को टग कर दे, या आप के आप को "बहुत अच्छा" की टिप्पणी" कर दे वह तो सम्भव है, पर जिस प्रकार का सामान आप के ब्लौग पर है, उसको समझ कर विवेचना कर्ना समीक्षा करना बहुत ही अलग है। इस में अद्धयन और मनन की भी तो ज़रूरत है। यह बात आप भी मानते होंगे। और इस के इलावा, हमें सभी की क्षमताओं को सामान नही मान लेना चाहिये।
मेरे कोई भी बात ना तो आप के विरुद्ध है और ना ही चिट्ठाचर्चा करने वालों के पक्ष में। यह मेरे निशपक्ष विचार हैं।
तुम छोटे हो मुझसे, मेरे विचार भी तुमसे बहुत मिलते है और भी कई कारणों से मुझे तुम प्रिय भी हो। तुमहारा काम और तुमहारी भावना हिन्दी के प्रति सराहनीय है, इस में कोई दो राय नहीं और इस विशय पर उम पर कोई उन्गली नहीं उठा सकता। और जीवन में चिट्ठाचर्चा में एक महत्व पूर्ण चर्चा का विषय बनने से भी बढ़े और अधीक कारण हैं .. तुम्हे और अभी कई सोपान चढ़ने है।
बात हुई कविता की चोरी की उस पर भी काफ़ी कुछ कहा सुना जा चुका है, और आप उन सब बातों से संतुष्ट भी है, सो उस में आगे कुछ कहने को नहीं बचता।
चिट्ठाचर्चा की ओर से आप का विरोध करने के लिये ही सही, बहुत सी टिप्पणीयाँ आई हैं, जो की यह दर्शाता है, कि आप का चिट्ठा निरंतर पढ़ा जा रहा है।
आप स्वस्थ व सुखी रहें।
अंत में एक और बात: संकृत में :-
अरसिकेशू कवितानिवेदनम:। श्रिअसी मा लिख: मा लिख: मा लिख:॥
( मतलब कवि भगवान से कहता है ... "हे प्रभू ! अ-रसिक व्यक्ति के समी मुझे कविता पढ़नी पढ़े .. ऐसा मेरे भाग्य में मत लिखना मत लिखना मत लिखना )
स-स्नेह
रिपुदमन पचौरी
बेशक स्वराज हमें सिखाता है कि जो चाहें जैसे चाहें कह सकते हैं,किन्तु स्वराज ये नहीं कहता कि हर बात सुन लें.
निःसंदेह चिट्ठाचर्चाकारों को पूरा हक बनता है कि वो किसी भी पसंदीदा विषय को लेकर चर्चा करें..उन्हें यह हक दिया भी गया...किन्तु जब हम अपनी बात करना चाह रहे हैं तो इतना आक्रामक क्यूँ हो गये भाई? हमें तो आज ही पता चला इतनी टिप्पणियाँ देखकर कि इतने चिट्ठाचर्चाकार आते हैं "हिन्द-युग्म" पर.चिट्ठाचर्चाकारों से नम्र निवेदन है की शैलेश जी को ना घसीटें चिट्ठाचर्चा के लिये यदि ऐसा हुआ तो "हिन्द-युग्म" कि नइया कौन संभालेगा...हाँ हम चिट्ठाचर्चाकारों को आमन्त्रित करते हैं कि वो हमारे फोरम पर आकर चर्चा करें(कौपी की समस्या ही समाप्त हो जायेगी)...अब बताइये कितने तैयार हैं?
देखिये ना समस्या का हल भी मौजूद है टिप्पणियों मैं..कैसे तोडा जाये ताला, कि चर्चा हो सके...
जहाँ एक चिट्ठे "सागर से पूछो- दरिया कहाँ है" पर इतनी मेहनत की गई, थोडी मेहनत चिट्ठा "कैसे तोडा जाये हिन्द-युग्म का ताला" पर चर्चा कर ही सकते हैं .गिरिराज जी,शैलेश जी को क्यूँ दोष देते हैं उन्होंने किसी एक के लिये नहीं किया है ये.कविता कौपी कैसे करें, चर्चा के लिये इस बात से तो सभी चर्चाकार वाकिफ हैं(टिप्पणियों से साफ ज़ाहिर है).जब "हिन्द-युग्म" के कर्ता-धर्ताओं ने किसी पाठकविषेश को कुछ नहीं कहा न लिखा तो "चिट्ठाचर्चा" में राजीव जी के कंधे साधकर गिरिराज जी,शैलेश जी को क्यूँ निशाना बनया गया...उंगली कहाँ से उठी ये भी देखिये...शैलेश जी ने केवल अपनी बात स्पष्ट की है.
हाँ..आप लोगों की बात गौर करने के काबिल है कि चोरी कैसे भी हो सकती है.सो शैलेश जी जो बात विद्रोह का कारण बने उसे खत्म कर ही दीजिये.ताले खोल दीजिये.बहस यहीं समाप्त करना बेहतर होगा, क्यूँकि "चिट्ठाचर्चा" और "हिन्द-युग्म" एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.
चलिये इसी बहाने "हिन्द-युग्म" चर्चा का कारण तो बना ;)
इस विषय में और अधिक कुछ न कह कर मैं रिपुदमन पचौरी और अनूप शुक्ला जी की बातों का समर्थक हूँ. वैसे एक दोहा याद आ रहा है
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय
जो घर देखा आपना, मोते बुरा न कोय
प्रिय शैलेश जी
मैं आपका अति आभारी हूँ कि भले ही चिट्ठाचर्चा के माध्यम से ही मगर आपने मेरा लिखा पढ़ने के बाद मनन योग्य समझा. उससे भी अधिक प्रसन्न इस लिये हूँ कि मेरे उदगारों ने आपको अपनी बहुत दिनों से सोची चर्चा को करने का अवसर दिया. इस हेतु मैं स्वयं का भी आभारी हूँ.
अब रही बात आपके उदगारों की, चिंता की, सोच की, दृष्टिकोण की-तो सभी लोगों के विचार आप उपर सुन चुके हैं और मेरे लिये उससे ज्यादा कुछ भी कहना उचित न होगा.
मैं आपका आभारी इसलिये भी हूँ कि आपने मेरी आँखें खोलीं एवं मेरा ज्ञानवर्धन किया. मुझे अपने इस चिट्ठाचर्चाकारी के कार्य की मांग का पता न था. मैं इसे यूँ ही मान बैठा था कि अगर टंकण न भी करना चाहो तो चल जायेगा. मुझे तो यह तक एहसास न था कि समीक्षक की परिभाषा क्या होती है? समीक्षा तो दूर की बात है.
काश, इन दायित्वों को ग्रहण करने के पूर्व आपने मुझे चेता दिया होता तो न आज आपको इतना कुछ लिखना पड़ता और मैं तो कितना सारा इतने दिनों तक लिखा बचा ले जाता. मैं तो इसे कुछ उस टाईप का मान बैठा था “जहाँ न कुछ जानने की जरुरत है और न किसी शैक्षणिक योग्यता की और फिर भी आप शिक्षा मंत्री हो सकते हैं.” आपने मार्ग दर्शन किया कि यह कार्य ऐसा नहीं है, अच्छा लगा कि आज कुछ नया सिखा. इस हेतु मैं आपका आभार व्यक्त करता हूँ.
वैसे मैने जब जब भी चिट्ठा चर्चा की है, पूर्ण प्रयास किये हैं कि कवितायें जरुर कवर की जायें. हिन्द-युग्म भी मैं हमेशा से कवर करता आ रहा हूँ (समीक्षा नहीं-सिर्फ़ कवर). जिस चिट्ठा-चर्चा का आप जिक्र कर रहे हैं, उसमें भी एक नहीं दो दो बार मैंने हिन्द-युग्म को प्रसंगित किया है. चर्चा की लम्बाई से आपने आंक भी लिया होगा कि थोड़ा बहुत टंकण का प्रयास भी किया है, लेकिन यह टंकण का प्रयास भरपूर नहीं किया, इसका मुझे खेद है एवं मैं क्षमापार्थी हूँ.
आप साहित्यकार हैं, आप कवि हैं और साथ ही आप अनेकों दिग्गज कवियों को एक मंच पर जोड़े हुये हैं, साथ ही आप हर माह उनकी लेखनी की समीक्षा और विश्लेष्ण कर पुरुस्कृत करते हैं. मुझमें इनमें से एक भी प्रतिभा नहीं, फिर भी आपने मेरे द्वारा की गई चिट्ठा-चर्चा को पढ़ा, ध्यान से पढ़ा और समझा, इसलिये मैं अति हर्षित हूँ और आपका आभार व्यक्त करने यहाँ उपस्थित हुआ हूँ.
मैं एक हल्का-फुल्का चलताऊ शौकिया लेखन करने वाला आपकी नजर में आया, बस मेरा लेखन तो सफल हो गया. मैं धन्य हो गया. मुझे धन्य करने के लिये एक बार पुनः आभार !!
अनुपमा जी,
आपसे मैं क्या कहूँ? आप तो कविता करती हैं, मनोभाव समझती हैं: बस, यह साफ कर दूँ कि मेरी लेखन शैली ही ऐसी है जैसा मैने वहाँ लिखा है, किसी की तरफ ऊँगली नहीं उठाई गई थी वरन वो सूचना मात्र थी. लेकिन निश्चित तौर पर आप हमसे ज्यादा समझतीं हैं, आप कविता लिखती है तो हर पहलू की आपको समझदारी है, हमारी क्षमतायें और समझ दोनों ही सीमित हैं, धीरे धीरे सीख रहे हैं, शायद कभी कुछ सीख पायें-आज तो बस इतना सा निवेदन है कि मेरे व्यंग्य को आप किसी के कँधे पर रख गोली चलाना न समझें. मैं गोला-बारुद, आतंकवाद से थोड़ा डरता और सहमता हूँ. यूँ भी, सिद्धांततः, अगर ऐसी जरुरत आन ही पड़ी तो अपने कँधों पर मुझे भरोसा है और किसी के कँधे पर बंदूक रख कर किसी अन्य पर गोली दागने से बेहतर मैं खुद को गोली मार लेना समझूँगा.
आप ज्ञानी हैं, चिट्ठाकारी में पारंगत हैं. आपको तो समस्या का हल भी मालूम है. आप बता भी रहीं है कि हमें इस चर्चा के बदले "हिन्द-युग्म का ताला कैसे तोड़ा जाये" पर चर्चा करनी चाहिये थी. हम नत-मस्तक हुये आपके ज्ञान के आगे. इतनी सरलता से जो बात निपट सकती है, इस ओर हमारा ध्यान ही नहीं गया. कैसे आपका आभार व्यक्त करुँ ऐसी गहन जानकारी देने के लिये. वैसे तो इस तरह का ज्ञानपूर्ण लेख सर्वज्ञ पर छापने की सुविधा है (मगर नियम क्या हैं-यह आपको देखना होगा) या आप ही किसी चिट्ठे पर लिखें तो चर्चा में भी आ जाये.
आपका आभार कि आपने मुझे पढ़ा और मेरी लेखनी का भावार्थ निकाला.
प्रिय शैलेश जी
सर्वप्रथम आपको बधाई देना चाह्ता हूँ कि आपके द्वारा उठाये गये एक बिन्दु के माध्यम से अनेक नये-नये पाठकों से परिचय हुआ
जो हिन्द्-युग्म पर पहले कभी भी नहीं दिखे, किन्तु आज न जाने क्यूँ आपके इस बिन्दु पर टिप्पणी करने को विवश हुये|
किन्तु मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है यह चर्चा पूर्णतः अनर्गल है|जो प्रश्न या चिंता उठाई गई है वह सर्वथा उचित ही है, यह तो आप सभी बन्धु मानेंगे कि
चोरी हो रही है, तो यह मान कर कि चोरी तो होगी ही कोई रोक नही सकता यह कहाँ तक उचित है कि हम न्यूनतम सुरक्षा की भी व्यवस्था न करें|और यदि कोई करे तो उसे रोकें !यह तो हास्यास्पद है|
चिट्ठाचर्चाकार व्यर्थ ही इतना उद्वेलित हैं, बस एक अनुरोध किया गया था कि एक दिन के सभी चिट्ठों की समीक्षा की जाये जो कि कभी भी नही किया गया|हमेशा ही १-२ चिट्ठों पर चर्चा करके इतिश्री कर दी जाती है...तो क्या हमारे समीक्षक अथवा चिट्ठाचर्चाकार कहीं न कहीं अन्य कवियों को हतोत्साहित नहीं कर रहे? क्षमा करियेगा किन्तु "हिन्द्-युग्म" पर अति उच्चस्तरीय, असाधारण कवितायें आई हैं और बहुत दुःख की बात है इन कविताओं पर कोई चर्चा नहीं हुयी|"मकबरा","संस्कृति-पलायन","निठारी के मासूम भूतों ने पूछा" जैसी कृतियां क्या चर्चा के लायक नही थीं?
हमारे प्रथम यूनिकवि आलोक शंकर जी की उत्कृष्ट हिन्दी मे लिखी कवितायें क्या चर्चा के लायक नहीं थीं?
गौरव सोलंकी जी की कवितायें या गज़ल पर कोई चर्चा नहीं हुई,क्यूँ?
बन्धुओं,यहाँ समीक्षक की क्षमता या नीयत पर कोई प्रश्नचिह्न नहीं है,किन्तु समीक्षकों का उत्तरदायित्व सबसे ज्यादा तो है ही और यदि उनसे यह अपेक्षा है कि वह निष्पक्ष रहें तो यह अनुचित नहीं है|
सो यह अनर्गल प्रलाप कि "ताला हटाओ,चोरी नहीं रोकी जा सकती" पर ध्यान देना ठीक बात नहीं |
और हाँ, जैसा कि तकनीकी रूप से समर्थ पाठकों, समीक्षकों, चिट्ठाचर्चाकारों से अनुरोध हुआ है कि यदि वह ऐसा कोई टूल विकसित कर सकें तो निश्चित ही यह हम सभी के लिये बहुत उपयोगी होगा|
शेष यही निवेदन है कि आपस मे आरोप-प्रत्यारोप से बचा जाये और सभी सुझाव सकारात्मक रूप में लिये जायें,और हिन्दी के लिये किये जा रहे हम सभी के प्रयासों को और समृद्ध बनाया जाये|
धन्यवाद
सस्नेह
गौरव शुक्ल
@ उडन तश्तरी जी
बस एक ही बात कहुंगी आपकी बहस बेवजह है.आपने अर्थ का अनर्थ कर दिया है.आपने जो गौर करना था उसे छोड कर सब ज्ञान प्राप्त कर लिया:-
"सो शैलेश जी जो बात विद्रोह का कारण बने उसे खत्म कर ही दीजिये.ताले खोल दीजिये.बहस यहीं समाप्त करना बेहतर होगा, क्यूँकि "चिट्ठाचर्चा" और "हिन्द-युग्म" एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.
"
@ शैलेश जी
एक बात याद रखिये 'अंधे के आगे रोना अपने नैन खोना'.
मैं चिट्ठाचर्चा और हिन्द-युग्म दोनो का सदस्य हूँ। इस नाते मैं जानता हूँ कि हिन्द-युग्म पर प्रकाशित कविताएँ कितनी सुन्दर होती है और चर्चा करने में कितनी मेहनत लगती है। यहाँ सभी अपना-अपना राग अलापते दिख रहें है मगर मुख्य बात को समझने का प्रयत्न कोई नहीं कर रहा। हिन्द-युग्म अपनी जगह सही है और चर्चाकार अपनी जगह।
प्रत्येक रचनाकार चाहेगा कि उसकी मेहनत को चुराया ना जाये क्योंकि अंतरजाल पर चोरी की घटनाएँ बढ़ रही है। कुछ मित्रों का मानना है कि यह संभव नहीं है और उनके तकनीकी ज्ञान को देखते हुए उनकी इस बात पर यकिं भी हो रहा है मगर क्या वे अपने तकनीकी ज्ञान का इस्तेमाल कर कोई ऐसी युक्ति नहीं निकाल सकते जिससे कम से कम सामान्य प्रयोक्ता, जिन्हें ज्यादा तकनीकी ज्ञान ना हो, से रचनाएँ बचाई जा सके। मेरा यह करने का मकसद मात्र इतना था कि ऑरकुट जैसी कम्यूनीटीज में जहाँ लोग स्लेक्ट-कॉपी-पेस्ट का सहारा लेकर ऐसा करते है उन्हें कम से कम थोड़ी तो मेहनत करनी पड़े :)
जहाँ तक चर्चा का सवाल यह बहुत ही मुश्किल है कि मात्र कुछ समय में 40-50 चिट्ठे पढ़कर उनकी समिक्षा की जा सके। मैं चर्चाकार होने के नाते जानता हूँ कि चर्चा में कॉपी-पेस्ट का कितना बड़ा योगदान है मगर शैलेशजी द्वारा उठाया गया एक मुद्दा विचारणीय लग रहा है और वो यह कि चिट्ठों की समालोचना करनी चाहिये, चर्चा के संबंध में मैं उनके विचारों पर अवश्य विचार करूँगा।
जहाँ तक चर्चा में आने वाले चिट्ठों का सवाल है तो वे पूर्णतया चर्चाकार/उस दिन पर निर्भर करता है। कईं बार ऐसा होता है कि आप अच्छा लिखते है मगर उस दिन अच्छा लिखने वालों की संख्या बहुत अधिक होने के कारण आपकी मात्र संक्षिप्त चर्चा ही हो पाती है मगर किसी आप मात्र यही लिखते हैं कि आज मेरा लिखने का मन नहीं है और उस दिन कम चिट्ठें हो तो इस पर भी विस्तृत चर्चा हो सकती है। बहुत कुछ उस दिन को प्रकाशित चिट्ठों की संख्या, चर्चाकार के पास समय और उसके मूड पर भी निर्भर करता है।
शैलेशजी ने एक पाठक के तौर पर जो चर्चाकार से अपेक्षाएँ की है वो जायज है और उनको एक पाठक के तौर इसका हक भी है, जो मित्रगण उनके सुझावों पर उंगली उठा रहें है वे शायद यह नहीं समझ पा रहें है कि पाठक के भी कुछ अपने अधिकार होते है। उन्होनें जो सुझाव/अपेक्षाएँ देनी थी, दे दी, अब चर्चाकार पर निर्भर करता है कि वो किन-किन पर अम्ल करता है और किन-किन पर नहीं।
हिन्द-युग्म पर यदि किसी को भी चोट पहूँची हो तो इसका सदस्य होने के नाते में क्षमा चाहूँगा, क्षमा करें।
सस्नेह,
गिरिराज जोशी "कविराज"
जिनकी आँखों में मोतियाबिन्द हैं
वे स्वयंभू आँखों के डाक्टर हो गये
परसाई मकबरे में नहीं सोये
कुछ पढ के छीटाकशी हमने पाया
वो भूत हो गये
जो मिट्ठू हैं, वो आईने से
एसे चिपके हैं
कि जैसे सच यही मसूर की दाल हो
बजता हुआ गाल भी सुन्दर संगीत है
तुम्हारा ही झंडा उँचा मेरे भाई
तुम्हीं उँट हो..
तुम्हारी ही जीत है.....
*** राजीव रंजन प्रसाद
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)