गीता ने संदेश दिया,
अर्जुन तुम उठ जाओ।
मोह लोभ का त्याग करो,
मेरे ज्ञान को अपनाओ।।
योगेश्वर की वाणी हूँ मैं,
कृष्ण ही मुझ में समाये हैं।
मेरे विचारों से ही,
मन को शान्ति मिल पाये।।
क्यों करते हो तुम ‘का’ प्रर्दशन,
तुममें अतुलित बल है।
जब योगेश्वर है तेरे सारथी,
तब तू क्यों निश्चल है।।
कर्म तेरा कहता है,
इस कुरूक्षेत्र की भूमि पर।
अपनों का ही संहार करो
मत अपने आगे लाचार बनो।।
कौरव रूपी सेना में,
लोभ, मोह व काम के होते दर्शन।
मार के इन पापियों को,
बन्द करो इनका नर्तन।।
नहीं समय यह सोचने का,
कि कौन द्रोण कौन भीष्म है।
क्योंकि प्रकृति विधान कहती है,
नियम है गेहूं संग घुन पिसने का।।
रण क्षेत्र मे नहीं है कोई भाई,
क्योंकि सब में शत्रुता कूट-कूट के समाई।
उठाओ गांडीव करो टंकार,
एक बार मे करो संहार।।
गीता का ज्ञान स्वयं कहता है,
जो खुद प्रयास करता है।
जो इस वसुन्धरा पर रहता है,
जो मरता है वीर-गति प्राप्त करता है।।
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
महाशक्ति जी का गीता का हिन्दी में काव्यानुवाद करने का प्रयास सुन्दर है। परंतु शायद गीता को समझने में या उसे अभिव्यक्त करने में महाशक्ति भाई से कुछ गलती हुई है। गीता अपनों का संहार करने को नहीं कहती, बल्कि वह तो सिर्फ संबंधों को कर्तव्यमार्ग में अवरोध न बनने देने का उपदेश देती है। काव्य की द्रष्टि से भी कविता कहीं-कहीं शिथिल प्रतीत होती है, विशेषतः कविता के अंत में। आशा है कि आगे से महाशक्ति जी की और बेहतर कविताएं पढ़ने को मिलेंगीं।
महाश्क्ति जी..
मैं इस रचना को अच्छा प्रयास कहूँगा। कृष्ण ने अर्जुन को संदेश दिया था जो गीता है। तथापि कविता में कई सकारत्मक संदेश हैं जो गीता के माध्यम से आपने कहने की कोशिश की है। कर्म की महत्ता को इस रचना मे कुछ और स्पष्टता से समझाये, मेरा यह अनुरोध है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
अच्छा प्रयास लगा पर पता नही क्यू मन जुड़ नही पाया इस से ...
प्रमेन्द्र जी।
गीता खुद में ही ज्ञान की पुस्तक वेदों का सार है। वैसे में गीता का सार कविता के माध्यम से लिखना बहुत मुश्किल है। फिर भी आपका प्रयास अनुकरणीय है।
प्रमेन्द्र अन्यथा न लें..पर प्रयास निसन्देह अच्छा है.......घिसा पिटा है...बेहद चालू है..चलताऊ है...अफ़्सोस पाठक बहुत सुन चुके है अब ऐसी , ऐसा और नहीं......
आप बहुत ही अच्छे कवि हैं...क्योंकि आप पढते अच्छा है..पढ्कर गढ्ते भी अच्छा हैं...पर प्रयास ऐसा करें की पाठक भी आप्को पढ्कर कुछ गढ सकें....(मैं कोई कवि नहीं मेरे सुझाव बस सुझावों की तरह, किसी बाबा के सत्संगी उपदेशॊं की तरह सुन एक कान से ले दुसरे से निकाल दें....अशिषटता हुयी हो तो क्षमा करें)
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