जी करता है कि
एक प्रहार करूँ
और कर दूँ तार-तार
आसमान को
तोड़ दूँ सारी धारणाएँ, अवधारणाएँ
कि अपने क़दमों से खींच दूँ
एक पगडण्डी
इस धरा से उस गगन तक
जिससे उतर कर
स्वर्ग इस धरती पर आ सके
फोड़ दूँ पाताल
और मुक्त कर दूँ
उन आत्माओं को
जो सदियों से
कई पर्तों के नीचे दबी हैं
बाँध लूँ सूरज को
और, करूँ शुरूआत
एक नये रिश्ते की
आदमी और समय के बीच।।
कवि- मनीष वंदेमातरम्
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
मनीष जी,
हर मनुष्य के मन में यदि अधिक बार नही तो कम से कम जीवन में एक बार तो यह भाव अवश्य ही आता है जिसे आप ने अपनी कविता के माध्यम से उजागर किया है..
सत्य पर प्रकाश डालने के लिये धन्यवाद.
वाह मनीष जी, व्यवस्था से परेशान एक सामान्य मनुष्य की हताशा कभी कभी जिस आक्रोश के रूप में अभिव्यक्त होती है, उसे पूरी तरह से साकार कर दिया है आपने। शब्दों का संयोजन बेहद सुन्दर है, जो आक्रोश की मनोदशा को प्रभावी तरीके से व्यक्त करता है। इस सुन्दर रचना के लिये बधाई।
kavita achhi lagi,dhanyavaad manish jee
बाँध लूँ सूरज को
और, करूँ शुरूआत
एक नये रिश्ते की
आदमी और समय के बीच।।
सुंदर भाव और एक आशा कुछ बदलने की आपने इन पंकतियों
में पिरो दी ..
दिल में आता है की कुछ इस क़दर सब बदल जाए
सब मिट कर यह दुनिया फिर से रच जाए
जहाँ हो बस प्यार ही प्यार सब जगह
हर क़दम से हर विपदा मिट जाए
ख़ुशहाली का आलम छा जाए सब तरफ़
ज़िंदगी की हर बात अब नये रंग में ढल जाए !!
आदमी और समय के बीच एक नये रिशते की शुरुआत करने के लिये आपके आकाश-पाताल एक करने का यत्न इस रचना को एक प्रभावी रचना बनाता है।
मनीष जी, कितना अच्छा होता कि सब कुछ अपने ही बस में होता।
खैर,किसी भी कार्य के पीछे सोच ही तो महत्वपूर्न होती है।
एक जोशीली कविता के लिये साधुवाद।
वाह! मेरे चुनिन्दा विषयो मे से एक...मनीष जी आपकी कविता बहुत पसन्द आयी मै नही कहुँगी कि ऐसे ही लिखते रहिये, ऐसे ही हरगिज मत लिखियेगा बल्कि और अच्छा लिखियेगा, क्युँकि सफलता और सुन्दरता की कोई सीमा नही होती :)
शुक्रिया
गरिमा
वाह ! बहुत अच्छा ......
प्रसन्न हुआ मन
सादर
बहुत हीं सुंदर रचना।
मनुष्य और समय के बीच पल रहे होड़ को आपने अपने संघर्ष का जो रूप दिया है, वो बहुत हीं अच्छा लगा।
इस रचना के लिये बधाई।
pasand aai kavita....
aakaash paatal se takkar lene ki khoob thaani....asadharan baav
आदमी और समय के बीच एक नये रिश्ते की शुरुआत की बात करने वाला कवि अखिर चाहता क्या है?
आज से नाखुश है? बीते कल से पीडित ? आने वाले कल की बाट नहीं जोहना चाहता ? स्वर्ग के लिये इतनी तड़प और अपने पर इतना विश्वास(हां जी करता है...) कि उसके पास समाधान स्वरूप बस तोड़ फ़ोड़ ही बची है, करने को.......
"सारी धारणाएँ, अवधारणाएँ" आसमान तोड़ स्वर्ग से घसीट लाने का साहस कविता ही लिख,दिखा और कर सकती है...... बधायी एक युवा कवि की युवामन से लिखी कविता पर ।
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