बरसती है जब ख्यालों की ओस,
मेरा हर रोम पायाब हुआ जाता है।
फ़िज़ा-ए-आह में एक रौनक छाती है,
बज़्म-ए-जिगर नायाब हुआ जाता है।
मेरे हाथों में दो पौध-से उग आते हैं,
अपनी लकीरों से हम किस्मत को ललचाते हैं,
बड़े रश्क से वो खुदा भी पूछ लेता है-
मेरे बंदे, यह कैसा इंकलाब हुआ जाता है।
हर हरी दूब में तस्कीन नज़र आती है,
मिट्टी भी सौंधी-सी शौकीन नज़र आती है,
हर सहर में शबा भी जब शगुफा टटोलता है-
मेरे ख्वाबों के गुलों को आदाब किया जाता है।
मुरझाए दरख्तों में भी मंजर आते हैं,
शहरे में भी कई निहाल नज़र आते हैं,
तेरे लब से जब कई चस्मे फूट पड़ते हैं-
पत्थरों का सीना भी बेताब हुआ जाता है।
माना ख्यालों में तेरे हम कम हीं आते हैं,
अपनी आँखों से पूछ जिनमें हम हलचल लाते हैं,
आज बड़ा संजीदा है , इक-इक पोर मेरे आइने का-
लगता है मेरा अक्स अब लाजवाब हुआ जाता है।
बरसती है जब ख्यालों की ओस-
मेरा हर रोम पायाब हुआ जाता है।
शब्दार्थ-
पायाब - टखने तक डूबा होना
तस्कीन -ताजापन
शगुफा - फूल
निहाल - छोटे पेड़ ( नए पेड़ )
पोर - एक-एक हिस्सा
-विश्व दीपक 'तन्हा'
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
माना ख्यालों में तेरे हम कम हीं आते हैं,
अपनी आँखों से पूछ जिनमें हम हलचल लाते हैं,
आज बड़ा संजीदा है , इक-इक पोर मेरे आइने का-
लगता है मेरा अक्स अब लाजवाब हुआ जाता है।!!
दिल को छू लेने वाली रचना है यह ....
तुझसे जुदा हो के भी तेरे दिल से कहाँ हम जुदा हो पाए हैं
एक बार अपनी पलके झुका के देख हम ही हम तेरे दिल में समाए हैं
बिखरा है मेरा वजूद आज भी कही तेरे दिल के आईने में
तेरी नज़रो के अक़्स में भी हम ही नज़र आए हैं !!
ranju ...
बडा ही सूफियाना अंदाज-ए-बयाँ है। बातें गहरी हैं और दिल को भीतर तक छूती हैं...
"ख्यालों की ओस", "रोम पायाब हुआ" फ़िज़ा-ए-"आह में एक रौनक" "हाथों में दो पौध-से उग आते" "मिट्टी भी सौंधी-सी शौकीन" "तेरे लब से जब कई चस्मे फूट पड़ते"
कई एसे बिम्ब है इस रचना में जहाँ भाव के अलावा शब्द भी मन मोह लेते हैं। कविता का अंतिम पद मन मोहक है:
माना ख्यालों में तेरे हम कम हीं आते हैं,
अपनी आँखों से पूछ जिनमें हम हलचल लाते हैं,
आज बड़ा संजीदा है , इक-इक पोर मेरे आइने का-
लगता है मेरा अक्स अब लाजवाब हुआ जाता है।
बरसती है जब ख्यालों की ओस-
मेरा हर रोम पायाब हुआ जाता है।
बहुत सुन्दर रचना, बधाई..
*** राजीव रंजन प्रसाद
मैंने तो पहली बार में कविता को हल्के में ले लिया मगर जब दुबारा पढ़ा तो मज़ा आ गया। छोटी-छोटी अंतराओं में बहुत गहरे-गहरे अफ़साने हैं।
हर हरी दूब में तस्कीन नज़र आती है,
मिट्टी भी सौंधी-सी शौकीन नज़र आती है,
मुरझाए दरख्तों में भी मंजर आते हैं,
शहरे में भी कई निहाल नज़र आते हैं,
नीचे की पंक्तियों में यह बात पुनः सिद्ध होती है कि कवि अनूठे तरीके से सोचता है-
"आज बड़ा संजीदा है , इक-इक पोर मेरे आइने का-
लगता है मेरा अक्स अब लाजवाब हुआ जाता है।"
अच्छा लगा हिन्दी उर्दू का मिलाप...सुन्दर रचना..
मेरे शब्दों में
इजहारे गम ने दोनों के दामन भिगो दिये
मेरी हंसी उडाते हुये वो भी रो दिये......
यही हाल होता है जब आग बराबर हो दोनों तरफ लगी हुयी..
वाह तन्हा जी, लाजवाब। बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल है। पढ़कर दिल को भी तस्कीन पहुँची, ठीक आपकी हरी दूब की मानिन्द।
माना ख्यालों में तेरे हम कम हीं आते हैं,
अपनी आँखों से पूछ जिनमें हम हलचल लाते हैं,
शेर पढ़कर अनायास एक और शेर याद आ गया-
मरकर भी मेरा ताल्लुक है मैखाने से
मेरे हिस्से की छलक जाती है पैमाने से।
क्यों याद आया, इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं कह पाऊँगा। हाँ, ये ज़रूर कह सकता हूँ कि बीच बीच में इस तरह की ग़ज़लें पढ़ने को मिलती रहें तो शायद हिन्द युग्म का ये खूबसूरत प्रयास ज्यादा से ज्यादा लोगों को आकर्षित करने में सफल होगा। सुन्दर ग़ज़ल के लिये बधाई।
gajab ki gazal hai tanha ji....
ise padhne mai aanaand aa gaya...it made me smile...
माना ख्यालों में तेरे हम कम हीं आते हैं,
अपनी आँखों से पूछ जिनमें हम हलचल लाते हैं,
आज बड़ा संजीदा है , इक-इक पोर मेरे आइने का-
लगता है मेरा अक्स अब लाजवाब हुआ जाता है।!!
बहुत खूब ! अच्छा लिखा है।
loved it. Do you still write for friends to impress them their girlfriends? COz I need one. Kiddin... :)
bhaut bhaut khoob tanha bhai
ki taskeen doob main hai aapki ye khyaal aur itne achhe se bayakat ki gayi rachna behad pasand aayi
कविता के साथ श्ब्दार्थ दे कर बहुत भला काम किया आपने, एक बेहतरीन रचना समझ मे भी आ गयी ।
प्रेम मे आइने के एक एक पोर का सन्जीदा होना, उसके लब से कई चस्मों का फ़ूट पड़ना, प्रतीक लाजवाब हैं, भाषा पर आपकी पकड़ तो उम्दा है ही....
"बड़े रश्क से वो खुदा भी पूछ लेता है-
मेरे बंदे, यह कैसा इंकलाब हुआ जाता है।" ..यहां पर रचना अपने उफ़ान पर है, जैसे लेखक का प्रेम....चरम है पाठक की उत्सुकता का भी और लेखन का भी....
बधाई तन्हा....
Good One !!!!!!!
Keep it up.
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