आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सभी कुछ न कुछ कर रहे हैं। सरकारें स्त्रियों की स्थिति पर आँसू बहा रही हैं। आयोग स्त्री-उत्पीड़न के खिलाफ़ नये सिरे से लड़ाई लड़ने की गुहार लगा रहे हैं। समाचार-पत्र शबाना आज़मी, शोभा डे, सुभाषिनी अली आदि से अतिथि-सम्पादन करा रहे हैं। व्यवसायी यह मानना शुरू कर रहे हैं कि स्त्रियाँ ही हमेशा से अर्थ-उद्यमों की संचालिका रही हैं, इसलिए स्वामित्व भी इंदिरा नूई, कल्पना मोरपारिया, नैना लाल किदवई को सौंपा जा रहा है। उल्लेखनीय है कि विगत् वर्ष की साहित्य-सेनसेशन भी एक महिला, किरन देसाई थीं। एक जमाने में महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान जैसी कुछ ही कवयित्रियाँ ऐसी थीं जिनकी आवाजें दुनिया ने सुनी थी, मगर अब जब से सूचना माध्यमों में क्रांतियाँ हुई हैं, गृहिणी कहलाने वाली महिलाएँ भी साहित्यकारों को मैनेज़ करने लगी हैं। पूर्णिमा वर्मन, मनीषा कुलश्रेष्ठ आदि नामों को तो गैर हिन्दी-प्रयोक्ता भी जानते हैं। वैसे अंतरजाल के कामकाज़ तो वैश्विक हैं, फिर भी हिन्दी की पहुँच सीमित लोगों तक ही है। और ऐसे में हिन्द-युग्म की पहुँच! अंकों में कहेंगे तो उत्साह भी ठंडा पड़ सकता है। लेकिन क्या हुआ, बड़ी-बड़ी सोसाइटियों ने इतना कुछ किया है तो हम भी कुछ करना चाहते हैं। तमाम लोगों ने महिलाओं को कमान आज, चंद दिनों या कुछ महीनों के लिए दे रखी होगी, पर हम अपनी महत्वकांक्षी सामूहिक कविता-लेखन 'काव्य-पल्लवन' की बागडोर हमेशा के लिए अनुपमा चौहान को सौंप रहे हैं। मात्र शुभकामनाएँ देकर हम संतुष्ट नहीं होना चाहते हैं, बल्कि कुछ कर सकने के प्रयास में विश्वास रखते हैं।
इस माह से हिन्द-युग्म अंतरजालीय कविता की समृद्धि के लिए अनूठी शुरूआत कर रहा है। सदस्य कवियों की सृजनशीलता और सृजनधर्मिता को परिमार्जित करने के लिए सामूहिक काव्य-लेखन 'काव्य-पल्लवन' का आगाज़ कर रहा है। कवियों की रचनाधर्मिता का मूल्यांकन खुद पाठक करेंगे। आशा है इस माध्यम से अंतरजालीय खण्डकाव्य की नींव पड़ेगी।
किसी सुगठित एवम् सुंगुंफित विचार, उक्ति अथवा भाव को क्रमशः खोलने या विस्तार देने को 'पल्लवन' कहते हैं। यह संक्षेपण की बिल्कुल उल्टी प्रक्रिया है। फिर भी यह तुलना बहुत सटीक नहीं कही जा सकती है। क्योंकि जैसा कि पल्लवन का शाब्दिक अर्थ ही है फलना-फूलना, पनपना-बीज या कली से क्रमशः विकसित रूप लेकर रूपाकार लेना अथवा रस-गंध धारण करना, एक नैसर्गिक, किंतु नितान्त अनिर्दिष्ट-सी क्रिया है। पल्लवन में विचार या भाव की विकसन-क्रिया प्रदत्त वातावरण में नहीं होती, बल्कि उसे अपनी कल्पना एवम् संज्ञान से इस तरह निर्मित करना होता है कि नैसर्गिक सी लगने वाली परम्परित अर्थ-प्रक्रिया में खलल न पड़े।
चूँकि हम विषय-विस्तार का माध्यम कविता को बनाने वाले हैं, इसलिए इसका नाम दिया है 'काव्य-पल्लवन'। इस माध्यम से हम सदस्य-ब्लॉगरों की रचनाधर्मिता को प्रबल और सुंदर ढंग से परख पायेंगे। यह कार्य निम्न चरणों से होकर, कवयित्री अनुपमा चौहान के संयोजन में अपना अभिष्ट पायेगा-
१) अनुपमा जी प्रत्येक माह किसी एक सक्रिय सदस्य को कोई विषय चुनने को कहेंगी जिसे वह कवि किसी भी अन्य सदस्य को मेल करेगा। विषय चुनाव करते वक़्त कवि यह ध्यान रखेगा कि विषय सामयिक हो।
२) अगला सदस्य २-३ दिनों के भीतर, उस विषय पर लयबद्ध/लयमुक्त कविता (गीत, ग़ज़ल, नज़्म आदि किसी भी रूप में) लिखकर किसी भी अन्य सदस्य को मेल करेगा।
३) यह प्रक्रिया सभी सदस्यों द्वारा सम्पादित की जायेगी।
४) अंतिम कविता वह कवि लिखेगा जिसने उस माह के 'काव्य-पल्लवन' का विषय चुना हो।
५) विषय के आरंभक की यह जिम्मेदारी होगी कि वो सभी कवियों की रचनाओं को उनके नामों के साथ, माह के अंतिम मंगलवार तक अनुपमा जी को भेज दे।
६) माह के अंतिम गुरुवार को अनुपमा जी द्वारा सम्पूर्ण कविता हिन्द-युग्म के मुख्य-पृष्ठ पर प्रकाशित कर दी जायेगी। (पोस्ट का शीर्षक "काव्य-पल्लवन- 'उस माह का नाम' " के रूप में होना चाहिए।)
नियंत्रक- अनुपमा चौहान
अब हम भी कहेंगे -अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आप सभी को 'हिन्द-युग्म' परिवार की शुभकामनाएँ!!!
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
anupamajee ko
abhinanadan anupamajee ko
बहुत सुन्दर प्रयास, मेरा सहयोग रहेगा।
सबसे पहले तो आज महिला दिवस की याद दिलाने के लिये अनुपमा जी को धन्यवाद। (दरअसल मुझे इससे पहले याद ही नहीं था कि आज महिला-दिवस है।) हिन्द-युग्म की यह नई कोशिश बहुत अच्छी लगी। उम्मीद है कि इस तरह से हम पाठकों को कुछ अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगी। इस नवीन कार्य योजना की पहली संयोजक बनने पर अनुपमा जी को बधाई।
बहुत अच्छा प्रयास ...सुंदर रचना पढ़ने को मिलेगी
अनुमपा जी को बधाई
यह प्रयास कहां पढा जा सकता है...? यहां तो कोई लिन्क है नहीं, सहयता करें प्रभू,,,,,
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