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Wednesday, March 07, 2007

नाता



बूँद का सावन से नाता

प्राण का जीवन से नाता

ऐसा नाता तेरा मुझसे है...


तितली का मधुबन से नाता

नीर का नयन से नाता

ऐसा नाता तेरा मुझसे है...


मैं भूमि अचल सब सहती जाऊँ

तुम गगन हो मेरे कहती जाऊँ

अंत में मुझ पर बरस कर,

मुझ ही से मिल जाओगे

रूह का तन से नाता

मूरत का पूजन से नाता

ऐसा नाता तेरा मुझसे है...


तुम मिलो न मिलो इस जन्म में

तुमको ही अर्चन करती हूँ

पूर्ण समर्पण करती हूँ

मुरली का कृष्ण से नाता

शिव का शक्ति से नाता

ऐसा नाता तेरा मुझसे है...


तेरी उपमा तेरी ही छाया हूँ

तेरी पहचान तेरी ही काया हूँ

जान लो सात जन्म मैं तेरी हूँ

मन का धडकन से नाता

चाँद का तारों से नाता

ऐसा नाता तेरा मुझसे है...


तुम सा कुछ भी नजर नहीं आता

तलाशूँ जब भी तुम्हे है आइना टकराता

तेरे चरणों में सब अर्पण करती हूँ,

पूर्ण समर्पण करती हूँ

नींद का सपनों से नाता

प्यास का अधरों से नाता

ऐसा नाता तेरा मुझसे है...


मैं कच्ची प्रेम की गगरी हूँ

बावरी सत्य वचन ही कहती

मन मेरा भी तुम सा निश्चल है

दीप का बाती से नाता

पतझड का पाती से नाता

ऐसा नाता तेरा मुझसे है...


रूप धरा जोगन का मैंने

मीरा हूँ प्रेम से न वंचित कर

तेरे नाम से जहर भी पी जाऊँगी

घुँघरू का झंकार से नाता

मौजों का सागर से नाता

ऐसा नाता तेरा मुझसे है...


मैं प्यास हूँ सदियों से प्यासी हूँ

राह तकती खडी अटारी पर

पिया मेरे अब आ जाओ

कहीं अंत समय न आ जाये

.......कहीं अंत समय न आ जाये

गति का जिया से नाता

राम का सिया से नाता

ऐसा नाता तेरा मुझसे है...
*****अनुपमा चौहान*****

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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

बूंद का सावन से
प्राण का जीवन से
तितली का मधुवन से
नीर का नयन से
रूह का तन से
मूरत का पूजन से
मुरली का कृष्ण से
शिव का शक्ति से
मन का धडकन से
चाँद का तारों से
नींद का सपनों से
प्यास का अधरों से
दीप का बाती से
पतझर का पाती से
घुंघरू का झंकार से
मौजों का सागर से
गति का जिया से
राम का सिया से
एसा कुछ नाता है
मन न समझ पाता है..
अनुपम इस काव्य से
बात सहज ही जो तुमने समझाई है
अनुपमा! बधाई है...

*** राजीव रंजन प्रसाद

Anonymous का कहना है कि -

अनुपमा जी,

बहुत ही आनंद आया। आप की कविता यूँ कहें कि .. काफ़ी वेघ वाली है...

"प्यास भी प्यासी हो सकती है, इस तरह कभी सोचा ना था".. आपकी नई सोच अच्छी लगी।

लिखती रहें...

सादर
रिपुदमन पचौरी

Mohinder56 का कहना है कि -

अनुपमा जी आपने सुन्दर उपमाओं के साथ यह रचना की है..और इन रचनाओं से बना है हम सब का नाता....बधाई

रंजू भाटिया का कहना है कि -

मैं भूमि अचल सब सहती जाऊँ
तुम गगन हो मेरे कहती जाऊँ
अंत में मुझ पर बरस कर,
मुझ ही से मिल जाओगे
रूह का तन से नाता
मूरत का पूजन से नाता
ऐसा नाता तेरा मुझसे है...

यह पंक्तिया दिल को छू गयी
बहुत ही सुंदर तरीक़े से आपने प्रेम की उँचाई की बात बता दी
सच में अनुपम कृति है यह आपकी !!

SahityaShilpi का कहना है कि -

अनुपमा जी की कविता में निरंतर निखार आता जा रहा है, जो हम सबके लिये हर्ष का विषय है। इस कविता में उन्होंने प्रिय से जो नाता जोड़ा है उसे पढ़कर अनायास महादेवी जी की कविता याद आ गई। कविता की ये पंक्तियाँ सबसे ज्यादा आकर्षित करती हैं-

मैं भूमि अचल सब सहती जाऊँ
तुम गगन हो मेरे कहती जाऊँ

इस सुन्दर रचना के लिये साधुवाद।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

तुम सा कुछ भी नजर नहीं आता
तलाशूँ जब भी तुम्हे है आइना टकराता

यह पंक्तियाँ मुझे बहुत पसंद आयीं।

अगर मैं लिखता तो ऐसे लिखता

तुम सा कुछ भी नजर नहीं आता
तलाशूँ जब तुम्हे, है आइना टकराता


वैसे राजीव जी ने ठीक कहा कि आपने बहुत ही सहज और सामान्य बात प्रभावी ढंग से समझायी है।

Gaurav Shukla का कहना है कि -

मैं भूमि अचल सब सहती जाऊँ
तुम गगन हो मेरे कहती जाऊँ
अंत में मुझ पर बरस कर,
मुझ ही से मिल जाओगे
.
.
.
.
बहुत सुन्दर भाव ,बहुत सुन्दर उपमायें
बहुत सुन्दर नाता
अद्भुत

सस्नेह
गौरव

पंकज का कहना है कि -

कविता की सबसे बड़ी विशेषता इसका सादापन है।
प्यार को बहुत ही पास से महसूस कराया है, आप ने।
साधुवाद,अनुपमा जी।

विश्व दीपक का कहना है कि -

तेरी उपमा तेरी ही छाया हूँ
तेरी पहचान तेरी ही काया हूँ

अनुपमा जिनकी उपमा होंगी , वो कैसा होगा। सीधे-सादे शब्दों से आपने अचूक बाण साधा है। बचने की कोई संभावना हीं न थी, सो बच न सका।

गति का जिया से नाता
राम का सिया से नाता
ऐसा नाता तेरा मुझसे है...

पवित्रता से कविता का हर पोर सना है। बधाई स्वीकारें।

Divine India का कहना है कि -

भावासिक्त व्यंजना…उद्गार अदम्य विश्वास का नाता…
चिराग़ और पतंगा का नाता…उद्देश्य गमन और विश्राम का नाता एक पल का दूसरे पल से नाता…
यूँ कहें तो जोड़ा है…तुमने हर सांस को जीवन के
सार से… प्रेमालिंगन और सांकेतिक दृष्टि का अच्छा मूल्यांकन!!!

Upasthit का कहना है कि -

आपने नातों की कविता, नातों के बीच कविता, नातों मे कविता, नातों से कविता, और कविता ही नहीं , प्रेम कविता इतने सारे प्रयोग एक साथ दाग दिये कि मैं चकित हूं कि कविता पढूं समझूं या उपमायें डेकोड करूं । नातों और रूपकों से लदी कविता, तुकों का बोझ सादेपन के हवाले कर, अधिक्तर स्थानॊ पर ढेर हो जाती है गति की बात आते ही, अपने सादेपन की मारी ।
उपर की श्रीमान अजय की प्रतिक्रिया "अनुपमा जी की कविता में निरंतर निखार आता जा रहा है, जो हम सबके लिये हर्ष का विषय है।" ......यदी सही-सही लिखी है तो बेशक मेरे लिये भी हर्ष का विषय है । कविता में और निखार की प्रतीक्षा रहेगी....

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