पीडा, पीडा में अन्तर अगम है
एक उदर की पीडा है
निरन्तर झक कर खाने से
एक उदर की पीडा है
भूख से त्रस्त
आंतडियों के कुलबुलाने से
वो पीडा झलकाती है
लालसा लार टपकाने की
यह पीडा कहराती हो जैसे
दीप में तेल के बाद
बाती तक जल जाने से
पीडा, पीडा में अन्तर अगम है
कुछ पीडायें प्राकृतिक है
जिन को समय ने खडा किया है
परन्तु अधिकतर ऐसी हैं
जिन्हे हम ने स्वंय
पाल पोस कर बडा किया है
प्रकृति में तो देखा था
विषधर विषधर को लीलता है
यहां भी कुछ बडे मगर हैं
जो जबडा फैलाये हैं
कुछ की तौद तो फूल रही है
कुछ चेहरे कुम्हलाये हैं
पीडा, पीडा में अन्तर अगम है
जिस धरती पर
भूख गरीबी पनप रही है
वहीं लाखों टन अनाज
गोदामों में सड जाता है
गिरते को अबलम्बन कौन दे
एक राष्ट्र अपनी पताका फहराने को
मासूमों पर बम बरसाता है
पीडा, पीडा में अन्तर अगम है
हमें ही चिन्हित करना है
कौन है दोषी यदि
हर मानव के पेट में अन्न नही है
हर पांव में नही है जूता
क्यों कोई पटडी पर है लेटा
क़्यों इतने हाथ पसर रहे हैं
क्यों हैं इतने दुखियारे
किसने है सारा सुख समेटा
पीडा, पीडा में अन्तर अगम है
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत अच्छ भाव की कवीता है, बधाई. पर समस्या से आगे बढ कर समाधान की तरफ भी बढना होगा
yogesh.samdarshi@gmail.com
समसामयिक चित्र का मार्मिक प्रस्तुतिकरण्…एक-एक शब्द मन को उद्वेलित कर गये…।सोंच में व्यापकता ही इसकी सुंदरता है…।धन्यवाद!!
पीडा, पीडा में अन्तर अगम है
यह पंक्ति ही बहुत कुछ कह जाती है ..बहुत सुंदर लिखा है आपने.
भूख गरीबी पनप रही है
वहीं लाखों टन अनाज
गोदामों में सड जाता है
गिरते को अबलम्बन कौन दे
एक राष्ट्र अपनी पताका फहराने को
.....................aachi prastuti.....naye darshan....alag soch...bhadhaai
कहते है ना...
जाके पैर ना फटी बिवाई सो क्या जाने पीर पराई फिर भी रोते तो दोनो ही हैं...
समाज की दशा का मार्मिक चित्रण है.. साधुवाद ।
कुछ पीड़ायें प्राकृतिक हैं
जिन को समय ने खड़ा किया है
परन्तु अधिकतर ऐसी हैं
जिन्हें हम ने स्वयं
पाल पोस कर बड़ा किया है।
शायद परेशानी यहीं है, जहाँ मनुष्य द्वारा पाल-पोस कर बड़ा करने की बात आती है। मगर याद रहे यह लाइलाज़ नहीं है। साथ मिलकर इसका हल निकाला जा सकता है। आत्ममंथन की आवश्यकता है।
पीड़ा की सच्छी छवि को उतरा है। बधाई
सुन्दर रचना है। शब्द और भाव दोनों ही सुन्दर हैं। वास्तव में ही ज्यादातर पीड़ाएं हमारी खुद की पैदा की हुई हैं। इसलिये इन्हें दूर करने के लिये भी हमें ही आगे आना होगा।
सत्य कहा है आपमे मोहिन्दर जी..कि पीडा, पीडा में अन्तर अगम है। स्पर्श करने वाली तुलनायें। मुझे लगता है आपने समाधान भी देने का यत्न किया है:
भूख गरीबी पनप रही है
वहीं लाखों टन अनाज
गोदामों में सड जाता है
गिरते को अबलम्बन कौन दे
एक राष्ट्र अपनी पताका फहराने को
मासूमों पर बम बरसाता है
और ताल ठोक कर किया है:
हमें ही चिन्हित करना है
कौन है दोषी यदि
किसने है सारा सुख समेटा...
आप बधाई स्वीकार करें..
*** राजीव रंजन प्रसाद
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