उन लम्हों मुझे कुछ याद नहीं था
अंतड़ियाँ फट कर बाहर निकल जाना चाहती थीं
उन पलों जीना कठिन था
दाँतों को भींच कर, हाँथों से पेट थाम कर
आँखें मूंद कर, बेतरतीब सी आवाजें निकाल कर
ऊपर बैठे उस परमपिता परमेश्वर से
रह रह कर गुहार कर रहा था
कि जीवन में कुछ पुण्य अगर किये हों
तो बही-खाता उलट लो
राहत दो भगवन, कैश कर दो हिसाब किताब मेरा..
अस्पताल पहुँच कर अलबत्ता दो सूईयों ने
मेरी सोच को बहुत गहरी नींद के हवाले कर दिया
सुबह होते ही कैसी-कैसी जाँच से हो कर गुजरा
नयी तकनीक से अनपढ़ मैं क्या जानूँ
इतना ही पता चला
अपने पर्स की पीठ पेट से लगने के बाद
कि पेट में पथरी है, निकलवा कर
मुस्कुरा कर लौट सकूँगा घर
" चालीस पचास हजार का मामूली खर्च है
फिर आपको क्या चिंता करना सरकारी अधिकारी हैं"
डॉक्टर ने मुझे इस नज़र से देख कर कहा
जैसे हलाल होने वाला मुर्गा मोटा ताजा हो...
बगल ही स्ट्रेचर पर
पच्चीस-तीस साल का युवक
ठीक उसी तरह कराह रहा था
जैसे बकरे की गर्दन पर आहिस्ता-आहिस्ता चलती हो छुरी
बगल में पग्गड़ लगाये खड़े उस अधेड़ की आँखों में
कुछ लहू के कतरे थे
मेरी बात काट कर वह बीच में ही बोल पड़ा
मैं ले आया हूं डाक्टर साहब, जो कुछ भी मुझसे " जुड़ा"
दस हजार हैं मेरे पास
दो चार और मैं ला पाऊँगा
कुछ करो, नहीं सुनी जाती चीखें
पुण्य समझ लो, दान समझ लो
ऊपर वाले से भी उँचे, आप मेरे सम्मुख
उसने तो दुखियों के हिस्से लिखे सारे दुख..
मैं अपने में सोच रहा था
पीड़ा तो पीड़ा है, बिल्कुल वैसी ही होगी
मुझको पल में राहत, इसको इतनी वितृष्णा
मेरी आव-भगत, उसकी आँखों में मृगतृष्णा...
" मैंने समझाया है तुमको
बार बार क्योंकर समझाऊं "
चीख पड़ा फिर तभी डाक्टर
" जाते हो या धक्के लगवाऊं"
दो घंटे से भेजा खा कर
बार बार सम्मुख तुम आ कर
मेरा कीमत में तौला पल गंवा रहे हो
अस्पताल खैराती भी हैं
सिक्योरिटि बुलवाऊं, या जा रहे हो?
मुझे दर्द फिर हुआ
मगर यह दिल के पास कहीं पर था
उस अधेड़ ने पग्गड़ हाथों में ले कर
जाते-जाते मुझको ऐसी आँखों देखा
जैसी बंजर आसमान को बारिश की आशा में देखे
मैं जानता हूँ कि यह पगड़ी
उसकी हार और त्रस्त स्वाभिमान की हद थी
लेकिन मेरे और उसके बीच,
लोकतंत्र की एक बारीक सरहद थी
दर्द बपौती नहीं किसी की
लेकिन राहत बपौती है
अस्पताल की जेबें हैं
जब भरती राहत बोती हैं
जब बुनियाद हिली हो तो
बुनियादी सुविधा क्यों होगी
मरता नहीं देश मेरे क्यों?
क्योंकर जीता जरजर रोगी?
*** राजीव रंजन प्रसाद
26.02.2007
विशेष-
कल राजीव रंजन प्रसाद जी का, अपने इलाज़ के सिलसिले में हस्पताल जाना हुआ, उसी हस्पताल का लोकतंत्र लिखा है। फिलहाल राजीव जी अस्वस्थ हैं इसीलिए उनकी यह कविता मैं प्रकाशित कर रहा हूँ।
आइए हम भगवान से प्रार्थना करें कि वो ज़ल्दी ठीक हो जायें।
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
मेरी अभी अभी रंजन जी से बात हुई है वह एडमिशन के लिये हस्पताल की और अग्रसर थे. सम्भवता कल आपरेशन तय है... हम सब की शुभकामनायें उनके साथ हैं..वह शीघ्र ही हमारे बीच होंगे.
उनकी लिखी हुई यह रचना....एक यथार्त की छवि हमारे सामने रखती है साथ ही.. एक अतिआवश्यक सेवा का एक वर्ग लाभ नही ले पाता उसका बोध भी कराती है.. एक समय सेवा भाव की मूर्त समझे जाने वाले डाक्टर आज एक दुकानदार से कम नही जो चेहरा देख कर तमाचा (खर्चा) मारते हैं... उन्हें किसी की मजबूरी से कोई सरोकार नही है
मानवता पर हावी होती पूँजीवादिता का सुन्दर चित्रण किया राजीवजी ने, समय-समय पर इस व्यवस्था पर रोष काव्य के माध्यम कवि करते रहे हैं मगर समाधान होता नहीं दिख रहा...
मेरी भी अभी अभी रंजन जी से बात हुई है, अभी कुछ जरूरी चैकअप करवाने के बाद ही तय हो पायेगा कि कल उनका ऑपरेशन कब होगा, हम सब की शुभकामनायें उनके साथ हैं..
डॉक्टर को केन्द्रित कर लिखी गई यह रचना बदलती सामाजिक व्यवस्था और मरती मानवता की व्यथा है। मानव जब तक मानव नहीं बनेगा, ऐसा ही चलता रहेगा...
राजीव जी की अभीव्यक्ति का तो वास्तव मे जवाब नही. कवि को यदि अपना दर्द भी कहना होता है तो, उसकी आह में लाखों कराहटें एक साथ सुनाई देती है, कवि वास्तव में क्रांति का झंडा लेकर चलता है कहता है -
दर्द बपौती नहीं किसी की
लेकिन राहत बपौती है
अस्पताल की जेबें हैं
जब भरती राहत बोती हैं
जब बुनियाद हिली हो तो
बुनियादी सुविधा क्यों होगी
मरता नहीं देश मेरे क्यों?
क्योंकर जीता जरजर रोगी?
ईश्वज हमारे अजीज को शीघ्र स्वस्थ करे, इसी कामना के साथ.
No comments today Rajeevji.....only a note of prayer
Looking Up towards the sky i pray...if god you u hide behind the clouds....than listen to what i say......no pains...no tears....make it a smooth one....n make him pink of health.....Im giving you one day GOD make it pass very fast...so that we can again hear u laughing loudly inside him.....amin
नग्न सत्य
क्षोभ से भर उठा
मुझे दर्द फिर हुआ
मगर यह दिल के पास कहीं पर था
उस अधेड़ ने पग्गड़ हाथों में ले कर
जाते-जाते मुझको ऐसी आँखों देखा
जैसी बंजर आसमान को बारिश की आशा में देखे
मैं जानता हूँ कि यह पगड़ी
उसकी हार और त्रस्त स्वाभिमान की हद थी
लेकिन मेरे और उसके बीच,
लोकतंत्र की एक बारीक सरहद थी
बहुत ही ख़ूबसूरत रचना लिखी है राजीव जी आपने ..एक सच को अपने लफ़्ज़ो में बहुत ही ख़ूबसूरत से ढाला है ..
आप जल्दी से ठीक हो जाए यही हम सब की दिल से दुआ है !!
अस्पतालो मे तो ये हालात हर कदम दिख जाते हैं, पर इसमे सिर्फ डॉक्टर को ही केन्द्रित नहीं करना चाहिये, अस्पताल प्रबन्धकों की अहम भुमिका होती है। हाँ डॉक्टर को कम से कम बात अच्छे से करनी चाहिये और अपने मरीज को मरीज जैसा ही देखना चाहिये ना कि अमीर और गरीब की श्रेणी मे रखकर ।
राजीव जी आप जल्दी से ठीक हो जायें ऐसी तहेदिल से कामना करती हुँ, और आप ठीक हो भी जायेंगे कविता मे ही बता दिया है आपने बस पचास हजार की तो बात है ... ही..ही..ही
:)
कविता के माध्यम से राजीव जी एक कड़वे सच को पूरी तरह जीवंत करने में सक्षम रहे हैं। इस रचना से राजीव जी की प्रतिभा पूरी तरह पाठकों के सामने आती है। उनके शीघ्र स्वस्थ होने की ईश्वर से कामना करता हूँ।
राजीव जी आप जल्दी से स्वस्थ हो ऐसी प्रभु से कामना है।
अच्छी कविता
मैं अभी-अभी एस्कार्ट हस्पताल, फरीदाबाद से वापस आया हूँ। राजीव जी का सफल ऑपरेशन हो गया है। बस स्वभाविक पीड़ा है जिसे हर व्यक्ति को सहना होता है। डॉक्टरों का मानना है कि वे सप्ताह भर में पूरी तरह से स्वस्थ हो जायेंगे। यह हम पाठकों के लिए खुशी का समाचार है। आइए राजीव रंजन प्रसाद के लिए प्रार्थना करें।
Mai acharaj main hun ki aswasth honeke bavjud samajik vyavastha par kavita ke madhyamse chitran karna koi aasan bat nahi. Ye ek dirghkalin kavihi kar sakta hai.
Rajivji jaldhi thik ho jayiye. Aapki kavitayen Samaj ke prati sajag hona sikhati hain.
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