अगर फूल कहे कि मैं उदास हूँ,
तो कौन मानेगा?
लेकिन यक़ीन जानिये,
आज फूल उदास है।
पर, जो उदास हो, वह फूल ही किस बात का?
ज़रूर कुछ ख़ास बात होगी।
आज फूल अपने दिल की बात
किसी से कहना चाह रहा है।
पर सुनेगा कौन?
अगर कोई सुनने वाला न हो तो
क्या कोई अपने दिल की बात ही नहीं कहता?
आज कोई सुने, न सुने
उसको तो अपनी बात कहना ही है।
दरअसल उसे एक सवाल पूछना है।
शायद 'आप' से या शायद अपने आप से।
उसे सवाल उतना ही ज़रूरी लगता है
जितना कि उसका फूल होना।
ऐसा नहीं है कि वह प्रकृति के झँझावातों से
लड़ते-लड़ते थक गया है।
उसमें अभी भी वो ताब है कि
वह लड़ सकता है तूफानों से।
झेल सकता है भयंकर गर्मी, कठिन सर्दी, मुश्किल बारिश।
वह कर सकता है, सामना तमाम तरह के अभावों का
चाहे वह पानी का हो,
ख़ाद का हो
या कोई और।
पर बहुत असमंजस में हैं वह
आज खड़ा है वह एक दोराहे पर।
उसे करना है एक बड़ा फैसला
जो बदल सकता है उसके जीवन की धारा।
जिस दोराहे पर वह खड़ा है
उसके एक ओर है
वह बाग़वाँ जिसने उसे तैयार किया
और तैयार करने में उसने अपना काफी कुछ,
बल्कि लगभग सब कुछ ही तो दाँव पर लगा दिया।
दिन-रात देखभाल की।
ख़ाद दिया।
पानी दिया।
निराई-गुड़ाई की।
मतलब, वह सब कुछ जो वह फूल के वास्ते कर सकता था,
किया।
तो दूसरे छोर पर हैं दुनिया के लोग।
बाग के बाहर की दुनिया के लोग।
जो उस फूल को बड़ी उम्मीदों से देख रहे हैं।
लेकिन, दुनिया का फूल पर क्या हक़ बनता है?
उसे तैयार तो माली ने किया।
माली ही ने तो उसके लिए अपना खून-पसीना
एक किया।
लेकिन दुनिया का भी हक़ क्यों नहीं बनता फूल पर?
आख़िर जिस माली ने उसे तैयार किया
वह भी रहता तो दुनिया में ही है।
इसी हवा में साँस लेता है।
इसी आकाश तले सोता है।
इसी धरती का अन्न खाता है।
आख़िर वह माली
जिसने फूल को तैयार किया,
किसी न किसी रूप में दुनिया का कर्ज़दार है।
उस माली पर भी तो दुनिया का हक़ हुआ।
तो फिर,
फूल पर क्यों नहीं?
"कैसे कहेगा बाग़वाँ ग़ुल सिर्फ है मेरा।
आख़िर में उसका बाग़ कोई टापू तो नहीं है।।"
कवि- पंकज तिवारी
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
पंकज जी, गद्यगीत के क्षेत्र में आपका प्रयास अच्छा लगा। पर इसमें किसी केन्द्रीय विचार का अभाव दृष्टिगत होता है। फूल की उदासी या किंकर्तव्यविमूढ़ता का कारण तो समझ आता है, पर इसके माध्यम से आप जो कहना चाहते हैं, उस में संशय रह जाता है। ऐसा लगता जैसे कहीं कुछ अधूरा रह गया हो। आशा है कि भविष्य में आपके और भी अच्छे गद्यगीत पढ़ने को मिलते रहेंगे।
मूकता की पुकार जन जन के कानों तक पहुंचाने का उत्तम प्रयास है .. फूल की तरह माली भी मूक है क्योकि फूल उस की भाषा नही जानता...फिर भी दोनो का एक दूसरे से घहरा रिस्ता है....दुनिया तो खुदगर्ज है....यहां चाहे फूल को सजा देती है और कभी कभी पांव तले कुचल भी देती है बिना ये सोचे की माली ने इसके लिये कितना पसीना बहाया होगा
मुक सवाल मुक जवाब के साथ, जिसका जवाब न माली दे सकता है ना दुनिया के लोग... अच्ची प्रस्तुति हुई है... बधाई :)
पंकज जी
आप बहुत गंभीर सोच वाले कवि हैं|आपकी कविता में बहुत से गंभीर प्रश्न हैं| मेरा मानना है कि वे कवितायें ही कालजयी होती हैं जिनमें उठाये गये प्रश्नों का उत्तर युगों के पास भी नहीं होता| मेरे पास आपके प्रश्न का उत्तर तो नहीं किन्तु आपके लिये "प्रसंशा" अवश्य है| आपकी इन पंक्तियों नें बेहद प्रभावित किया:
"अगर फूल कहे कि मैं उदास हूँ,
तो कौन मानेगा?"
"अगर कोई सुनने वाला न हो तो
क्या कोई अपने दिल की बात ही नहीं कहता?"
"उसे सवाल उतना ही ज़रूरी लगता है
जितना कि उसका फूल होना।"
"लेकिन, दुनिया का फूल पर क्या हक़ बनता है?"
"लेकिन दुनिया का भी हक़ क्यों नहीं बनता फूल पर?"
"उस माली पर भी तो दुनिया का हक़ हुआ।
तो फिर,
फूल पर क्यों नहीं?"
वैसे नीचे लिखी पंक्तियाँ लगता है आपनें एक ही कविता दो बार लिखी हों:
"कैसे कहेगा बाग़वाँ ग़ुल सिर्फ है मेरा।
आख़िर में उसका बाग़ कोई टापू तो नहीं है।।"
आपने मुझे सोच में डाल दिया, उत्तम विचार है
kaafi ghambir soch main daal deti hai aapki kavita...iska jawaab kya ho sakta hai.....nahi anumaan laga saki....dil ko choone wali panktiyaan:-
उसे सवाल उतना ही ज़रूरी लगता है
जितना कि उसका फूल होना।
"कैसे कहेगा बाग़वाँ ग़ुल सिर्फ है मेरा।
आख़िर में उसका बाग़ कोई टापू तो नहीं है।।"
badhaai sweekaren
पंकज जी
अद्भुत
फूल के माध्यम से कितने गंभीर प्रश्न दिये हैं आपने
बहुत सुन्दर कृति
हृदय से बधाई
सस्नेह
गौरव
आपकी इस कविता को समर्पित एक हाइकु -
मानेगा कौन?
किसे बताएँ हाल?
फूल उदास
बहुत सुन्दर! किन्तु मैं तो कहूँगी वह माली ही क्या जो फूल पर अपना अधिकार जमाए ! माली माली इसीलिए है क्योंकि उसने फूल को उगाया, उसकी देखभाल की, उसे बड़ा किया । याने फूल ने ही उसे माली बनाया, अतः एक तरह से देखें तो माली फूल का कर्जदार है न कि फूल माली का । माली का काम है फूल की देखभाल सो उसने की । अब फूल की इच्छा वह जो चाहे अपने जीवन के साथ करे। शायद आप यहाँ मनुष्य की बात कर रहे हैं । तो यदि यह मनुष्य रूपी फूल अपने जीवन के निर्णय स्वयं करे, हाँ, माली को भी याद रखते हुए तो कुछ गलत न होगा ।
घुघूती बासूती
ghughutibasuti.blogspot.com
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