सोच कर आई थी कभी न आऊँगी तेरे दर पर
आज फिर हाथ खाली है और दुआ है लब पर....
वो ही मेरी जान, मेरी रूह,
मेरा गुरूर,मेरी आबरू
नहीं देख सकती उसे तडपते हुये
मेरी मोहब्बत में दफ्न लुटते हुये
रफ्ता रफ्ता मीलों लम्बा सफर
और उस पर तन्हा उसकी रह्गुज़र
मेरे दामन को उसके अश्कों से भर
नासूर हुए जख्मों के दर्द की दवा तू कर
आज फिर हाथ खाली है और दुआ है लब पर.....
सुना है सारी रात शमाँ जला कर
सहेजता है हर बीता लम्हा
बन कर यादगार लम्हा
पिघलता वो लम्हा-लम्हा
या पाक खुदा मुझे तू माफ कर
उसी के सज़दे में झुकता है अब ये सर
मेरे खून की आखिरी बूँद भी कर निसार
इज़्तिराब उसके सौंप मुझे कर फिगार
आज फिर हाथ खाली है और दुआ है लब पर....
करवट वो लेता नहीं नींद में
कहीं मेरे ख्वाब न हो जायें काफिर
अधसोया अधजागा मेरा दिलबर
रहता है अपने ही घर में जैसे मुसाफिर
चलता है वो साथ मेरे साया बन कर
पाया है करार बस उसमें सिमट कर
उसके अबसारों को मेरी रोशनी अदा कर
फिर चाहे तो बन्द मेरी ज़ुबाँ कर
आज फिर हाथ खाली है और दुआ है लब पर....
तबस्सुम उसके होठों पर
तिशनगी उसकी बाहों में
ज़ुम्बिश उसकी धडकनों मे
ज़ीनत उसकी वफाओं में
मैं ज़िन्दा हूँ ये उसकी तासीर
मेरे जमीन आसमाँ उसकी खातिर
इस बार बहारों का रहे वो असर
उसके तसव्वुर में हो गुजर-बसर
आज फिर हाथ खाली है और दुआ है लब पर....
ये वादियाँ उसकी बाहें
वो शोखियाँ उसकी अदायें
रेशा रेशा हर टुकडा
खामोश सतह पर उसकी यादें
दम मेरा निकले पहले उसके दम पर
आगाज़ हो रुक्सती का उसमें पनप कर
जब ठंडी हवायें चलें मेरी कब्र पर
नाम मेरा उसके साथ लिखना अब्र पर
आज फिर हाथ खाली है और दुआ है लब पर....
________अनुपमा चौहान
इज़्तिराब= चिन्तायें
फिगार= घायल
अबसारों= आखें
तबस्सुम= मुस्कुरहट
तिशनगी =प्यास
ज़ुम्बिश= गति
ज़ीनत= सुन्दरता
तासीर= प्रभाव
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
20 कविताप्रेमियों का कहना है :
खुबसुरत नज़्म है अनु.
खासकर ये पक्तियां नज़्म की कोमल भावनाओ को मखमली बनाती है
"करवट वो लेता नहीं नींद में
कहीं मेरे ख्वाब न हो जायें काफिर"
"सुना है सारी रात शमाँ जला कर
सहेजता है हर बीता लम्हा"
हा एक सुझाव है की उर्दू के कठीन शब्दों के स्थान पर सरल हिन्दी शब्दों का प्रयोग करो तो सभी पाठक नज़्म का पूर्ण आनंद उठा पायेंगे
दुआएँ सुबह की तरह ताजी होती हैं हर हरकत में
उसके होने की तासीर होती है…बंदगी ही तो एक मात्र
भावुकता है स्नेह की…पता नहीं वो क्या सोंचे
पर हम उसकी राह तकते रहते हैं…॥
उर्दू प्रयोग सुंदर है… शिथिल भावनाएँ…प्रखरता की ओर
उन्मुख है और सत्य की ओर तक रही हैं।
अत्यंत सुंदर्…बधाई।
अच्छी दुआ है, पसंद आई
बहुत खूबसूरत जमीन तलाशी है आपने नज़्म कहने के लिये, अनुपमा जी। अब तक ज्यादातर शायर महबूब की बाहरी खूबसूरती ही बयाँ करते रहे हैं, पर आपने माशूका के लिये महबूब के प्यार, समर्पण और वफा को नज़्म में ढाला है। और सोने पर सुहागा ये कि ये सब आपने माशूका के माध्यम से ज़ाहिर किया है। कहीं कहीं शब्दों के कम ज्यादा होने से नज़्म की संगीतात्मकता में कुछ अवरोध ज़रूर आता है, पर थोड़ी कोशिश से ये कमी दूर हो सकती है। इसी तरह लिखती रहिये। यकीनी तौर पर अदबी पाठकों को आपकी और भी निखरी हुई ग़ज़लें और नज़्में पढ़ने का मौका मिलना चाहिये। इस खूबसूरत नज़्म के लिये मुबारकबाद।
Last three lines are really heart touching
प्रेमी के कष्टों की अभिव्यक्ति प्रेयसी के अंतर्मन से अनुगंजित हो रही है इन पंक्तियों में
"रफ्ता रफ्ता मीलों लम्बा सफर
और उस पर तन्हा उसकी रह्गुज़र"
कवयित्री सम्भवतः बताना चाह रही है कि प्रेम की पूर्णता यही है कि दोनों बराबर तड़पें-
"सुना है सारी रात शमाँ जला कर
सहेजता है हर बीता लम्हा
बन कर यादगार लम्हा"
भावों का अद्भुत संयोजन-
"मेरे खून की आखिरी बूँद भी कर निसार
इज़्तिराब उसके सौंप मुझे कर फिगार"
दुआ की पराकाष्ठा-
"उसके अबसारों को मेरी रोशनी अदा कर"
इन पंक्तियों गज़ब का प्रवाह है-
"तबस्सुम उसके होठों पर
तिशनगी उसकी बाहों में
ज़ुम्बिश उसकी धडकनों मे
ज़ीनत उसकी वफाओं में
मैं ज़िन्दा हूँ ये उसकी तासीर
मेरे जमीन आसमाँ उसकी खातिर"
कहा जा सकता है हिन्द-ग़ज़ल का भविष्य अनुपमा जी की लेखनी से सुरक्षित है।
बहुत खूब लिखा है आप ने
बचपन मे एक उर्दू नजम पढी थी...
"लब पर आती दुआ बन के तमन्ना मेरी
जिन्दगी शम्मा की सूरत हो खुदाया मेरी"
उस वक्त इस का मतलब नही समझ पाया था.. अब समझ आता है..
दुआ और तमन्ना के सिवा आदमी के पास कुछ नही.
[b]या पाक खुदा मुझे तू माफ कर
उसी के सज़दे में झुकता है अब ये सर[/b]
अनुपमा जी बहुत सुन्दर दिल को छुने वाली गज़ल और उस पर ये पंक्तिया तो दिल मे जगह बना गयी... बहुत खुब
अब कैसे सजदा हो खुदा का,
कि हर तरफ मेर महबुब ही दिखता है।
ये कसुर नही मेरे दिल का,
असर उसकी मुहब्बत का है।
एक के बाद एक खूबसूरत ग़ज़ल का पान करवाने के बाद, सुन्दर नज़्म की प्रस्तुती लाजवाब है।
आपकी इस नज़्म की जो सबसे बड़ी खूबी दिखी वो यह कि यह पूर्णतया लयबद्ध है। हिन्दी-उर्दु शब्दों का मिश्रण बहुत ही खूबसूरत तरिके से किया गया है।
करवट वो लेता नहीं नींद में
कहीं मेरे ख्वाब न हो जायें काफिर
अधसोया अधजागा मेरा दिलबर
रहता है अपने ही घर में जैसे मुसाफिर
दिल की बैचेनी का लाजवाब चित्रण किया है। बधाई!!!
अतिशय भावुकता से ओतप्रोत कविता .
कविता नें मन के अनेको तंतु छुवे.." आज फिर हाथ खाली है और दुआ है लब पर" असाधारण पंक्ति है|भावाभिव्यक्ति में उर्दू का प्रयोग सूफियाना आनंद दे रहा है|
निम्न पंक्तियाँ आपको अनुपम कवयित्रि सिद्ध करती हैं:
"रफ्ता रफ्ता मीलों लम्बा सफर"
"सुना है सारी रात शमाँ जला कर
सहेजता है हर बीता लम्हा"
"मेरे खून की आखिरी बूँद भी कर निसार
इज़्तिराब उसके सौंप मुझे कर फिगार"
(यद्यपि यहाँ पर उर्दू थोडी सी प्रवाह में चुभन पैदा कर रहा है, चूंकि अर्थ असाधारण हैं इस लिये इस चुभन से शिकायत नहीं)
"करवट वो लेता नहीं नींद में
कहीं मेरे ख्वाब न हो जायें काफिर"
"अधसोया अधजागा मेरा दिलबर"
"रेशा रेशा हर टुकडा
खामोश सतह पर उसकी यादें"
"दम मेरा निकले पहले उसके दम पर"
"जब ठंडी हवायें चलें मेरी कब्र पर
नाम मेरा उसके साथ लिखना अब्र पर"
बहुत ही सुन्दर, भावुकता से ओत-प्रोत रचना|
*** राजीव रंजन प्रसाद एवं रितु रंजन
करवट वो लेता नहीं नींद में
कहीं मेरे ख्वाब न हो जायें काफिर
अधसोया अधजागा मेरा दिलबर
रहता है अपने ही घर में जैसे मुसाफिर
चलता है वो साथ मेरे साया बन कर
पाया है करार बस उसमें सिमट कर
उसके अबसारों को मेरी रोशनी अदा कर
फिर चाहे तो बन्द मेरी ज़ुबाँ कर
आज फिर हाथ खाली है और दुआ है लब पर....सबने इतना कह दिया की मैं क्या कहूं..बस ये अल्फ़ाज़ दिल में उतर गये
Hey Sweetheart .... It's awesome.... You have started writing pretty well these days. Though I gotconfused with certain thoughts and was lost in the midst, I enjoyed it throughly.
Word of Advice : Make it simple. Read Dushyant Kumar, Basheer badr, Nida fazli for reference.
Luv
Ashutosh
कविता का भाव अच्छा लगा
अच्छी रचना के लिये बधाई।
दुआ
बहुत गहरे भाव,डूबने के बाद बाहर आने की इच्छा ही नही होती
"सुना है सारी रात शमाँ जला कर
सहेजता है हर बीता लम्हा
बन कर यादगार लम्हा"
कितनी पीडा..
"नहीं देख सकती उसे तडपते हुये
मेरी मोहब्बत में दफ्न लुटते हुये
रफ्ता रफ्ता मीलों लम्बा सफर
और उस पर तन्हा उसकी रह्गुज़र"
"उसके अबसारों को मेरी रोशनी अदा कर"
दुआ का तो चित्र ही खींच दिया है आपने
जब ठंडी हवायें चलें मेरी कब्र पर
नाम मेरा उसके साथ लिखना अब्र पर
आज फिर हाथ खाली है और दुआ है लब पर....
बहुत आनन्द आया.....
बहुत सुन्दर
शुभकामनायें
सस्नेह
गौरव
Bahut hi sundar likha hai.
Badhaayi ho aapko
Manmohan
"करवट वो लेता नहीं नींद में
कहीं मेरे ख्वाब न हो जायें काफिर
अधसोया अधजागा मेरा दिलबर
रहता है अपने ही घर में जैसे मुसाफिर"
बहुत हीं बढिया गज़ल लिखी है आपने। इतने सारे फ़नकारों ने इसके सम्मान में इतनी सारी बातें लिख डाली हैं , अब मेरे लिए कुछ बचा हीं नहीं है।
यूँ हीं लिखते रहिये।
तबस्सुम उसके होठों पर
तिशनगी उसकी बाहों में
ज़ुम्बिश उसकी धडकनों मे
ज़ीनत उसकी वफाओं में
मैं ज़िन्दा हूँ ये उसकी तासीर
मेरे जमीन आसमाँ उसकी खातिर
bahut hi sundar ghazal hai..ek ek line dil ko chu gayi...
wah .. javab nahi ..
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)