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Tuesday, February 13, 2007

केवल संज्ञान है



सिर्फ एक खबर है
अंजान सफर है
दर्द का घर है
यह दुनिया

सुबह सवेरे बाग किनारे
इक मरियल नौकर
मोटे बाघिल कुत्ते को
बेमन से सैर कराता है
सर्दियों में आधी रात को
जब सोई होती है सारी दुनिया
नुक्कड के ढाबे का छोटू
ठंठे पानी ओर मिट्टी राख से
घिस घिस कर, अधभूखे पेट
ढेर से जुठे बर्तन चमकाता है
कोयले की बोरियां हैं
उसका बिस्तर और रज़ाई
और आस पास के
जूठन पर पलते
दो चार कुत्ते
साथ में सो कर उसके
देते हैं उसको गर्मायी
लेटे लेटे खुली आंख से
देखता है वो कितने सपने
दुनिया की इस भरी भीड में
ढूंढता है वो कुछ खोये अपने
तारों से भरे आकाश में
अपना सितारा ढूंढता है
गोल मोल सी
इस दुनिया में जाने क्यूं
एक किनारा ढूंढता है
दूर खूमारी होने से पहले
फिर उसको उठ जाना है
मालिक के आने से पहले
चुलहा उसे जलाना है
यूहीं प्यास को पीते पीते
अरमानों पर लगा पलीते
उसको जीते जाना है
हर दिन यही दोहराना है
रोज दोपहरी एक दरोगा
इसी ढाबे पर बिन पैसे दिये
दावत रोज उडाता है
क्या वो नही जानता
बाल रोज़गार का
क्या विधान है
और क्या कोई जानता है
रोजगार छुट जाने पर
इस बाल की रोटी का क्या
प्रावधान है
जटिल प्रश्न है
नही विज्ञान है
एक प्रयत्न है
केवल संज्ञान है


सिर्फ एक खबर है
अंजान सफर है
दर्द का घर है
यह दुनिया

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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

सुन्दर चित्रण:

"सुबह सवेरे बाग किनारे
इक मरियल नौकर
मोटे बाघिल कुत्ते को
बेमन से सैर कराता है"

".. अधभूखे पेट
ढेर से जुठे बर्तन चमकाता है"
कोयले की बोरियां हैं

"और ...दो चार कुत्ते
साथ में सो कर उसके
देते हैं उसको गर्मायी"

स्पर्श करती हुई पंक्तियाँ:

:..इस दुनिया में जाने क्यूं
एक किनारा ढूंढता है"
"हर दिन यही दोहराना है"
"..और क्या कोई जानता है
रोजगार छुट जाने पर
इस बाल की रोटी का क्या
प्रावधान है
जटिल प्रश्न है
नही विज्ञान है
एक प्रयत्न है
केवल संज्ञान है"

कविता मन के हर तंतु छूती है| संभवतः यह प्रश्न आपसे हो सकता है कि कविता में समाधान नहीं, किंतु मेरा मानना है कि कविता का कार्य सवाल खडे करना है..उत्तर तो तलाशे जाने हैं| अत्यधिक सुन्दर रचना के लिये बधाई|

Anonymous का कहना है कि -

मोहिन्दरजी,

हिन्द-युग्म पर आपका हार्दिक स्वागत है।

रोजगार छुट जाने पर
इस बाल की रोटी का क्या
प्रावधान है
जटिल प्रश्न है
नही विज्ञान है
एक प्रयत्न है
केवल संज्ञान है"


आपने इन प्रश्नों के माध्यम से अच्छा मुद्दा उठाया है, मैं भी राजीवजी से सहमत हूँ, हर कविता में कवि समाधान भी दे, यह जरूरी नहीं मगर हाँ, यदि समाधान दिया जा सके तो सोने पे सुहागा।

अत्यधिक मार्मिक रचना के लिये बधाई, इसका समाधान खोजा जाना विकसित भारत के लिए बहुत आवश्यक है।

Anonymous का कहना है कि -

Mohinderji

It is extremely beautiful, soul-searching and touching piece. I am amazed by the sensitivity with which you have looked into the child labourer's bland and futureless life.

I am seeing you with new eyes now.

anshu mahajan

रंजू भाटिया का कहना है कि -

इस दुनिया में जाने क्यूं
एक किनारा ढूंढता है"
"हर दिन यही दोहराना है"
"..और क्या कोई जानता है

bahut khoob mohinder ji ..bahut hi vichar karne waali lines hain...ek aur acchi rachana padaane ke liye shukriya !!


ranju

Anonymous का कहना है कि -

Humen yeh bhet dene ke liye shukriya....bahut sundar prastuti....aur kya kahu meri fav. lines sabhi ne likh di hain...so aapko bhadhaai deti hu

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

'हिन्दी-युग्म' पर आपका स्वागत है।

हममें से प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति बाल मजदूरी देख कर परेशाँ होता है।

खिलखिलाने वाले बचपन को जूठे-बरतन रगड़ते देखकर उद्वेलित होता है।

मगर आपने सही ही कहा है कि यह तो सोचो कि क्या समाधान है?

आखिर उसका भी तो पेट है! एक छोटा पेट ४-५ बड़े पेटों को पेट भर रहा है।

ghughutibasuti का कहना है कि -

अच्छी रचना है । अच्छे व अहम् प्रश्न उठाएँ हैं आपने । बच्चों के साथ होते अन्याय व बाल श्रम कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनके उत्तर पाना अति कठिन हैं । हम इसके लिए स्वयं को , अपने समाज को दोषी मान सकते हैं । हम दोषी हैं भी । किन्तु कभी आपने यह सोचा है कि कई बार इन बच्चों के माता पिता भी दोषी होते हैं । मैंने ऐसा होते देखा है । पिता को काम देने की लाख कोशिश करो किन्तु वह नहीं करेगा, वह बैठ कर बीड़ी फूँकेगा और बच्चों को काम पर भेजेगा । माँ परिवार नियोजन की पहल करती है तो पति उसे पीटेगा । ऐसे में किसे दोषी ठहराएँ ? शायद प्रकृति को जो हर जानवर को तब माता पिता बनाती है जब वह अपने बच्चौं के लालन पालन मेँ सक्षम हों किन्तु मनुष्य को बिना किस दक्षता कुशलता के यह सम्मान दे देती है ।
दोष चाहे जिसका भी हो किसी भी बालक से उसका बचपन नहीं छीनना चाहिए । ऐसी गम्भीर समस्या पर ध्यान खींचने के लिए धन्यवाद ।
घुघूती बासूती
ghughutibasuti.blogspot.com

Dr.Bhawna Kunwar का कहना है कि -

दिल को छू लेने वाली रचना है ये। सच कहा 'बाल-श्रम' बहुत गलत है कहीं मजबूरी कराती है कहीं परिवार वाले जैसा कि miredmirage ji ने लिखा है। परन्तु जैसे भी हो 'बाल-श्रम' नहीं होना चाहिये। आपने रचना का अच्छा विषय चुना।

Udan Tashtari का कहना है कि -

विषय बहुत गहरे और हृदय स्पर्शी लाते हैं आप. बहुत भाया. शब्दों के संचयन और एक माला में पिरोने की कला से आप बखुबी वाकिफ हैं , यह देखकर हर्ष होता है. लिखते रहें, यही शुभकामना है हमारे जैसे पाठकों की.

Laxmi का कहना है कि -

यथार्थ का सुन्दर चित्रण है। अभी तक हुए विकास ने इन बिचारों की ज़िन्दगी सुधारने के लिये कुछ नहीं किया।

Mohinder56 का कहना है कि -

हिन्द-युग्म पर यह मेरी पहली रचना थी, जिसे आप सब का प्यार व प्रोतसाहन मिला.......मेरी कोशिश रहेगी कि मै अपनी सबसे अच्छी रचनायें ही हिन्द-युग्म के माध्यम से आप सब के समक्ष रखूं...अपना प्यार बनाये रखिये.

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