उल्फ़त है तुमसे मुझको बेझिझक ऐ मेरे यार,
बेमुरउव्वत भी हुआ हूँ, तेरे साथ कई बार।
माना है दोष मेरा, मगर आपका भी है,
तड़पाया है मुझको मज़े से, तुमने कई बार।
तेरे सिवा कहीं भी ठहरती नहीं नज़र,
आज़माकर अपने आप को, देखा है कई बार।
वैसे तो हारना मेरे मिजाज़ में नहीं
बदला है अपने रूख को, तेरे चलते भी कई बार।
बनते हो हमसे भोले, हम मान लें कैसे?
तुमने है की शरारत, ख्वाबों में कई बार।
वैसे तो आदमी शरीफ़ मैं भी कम नहीं,
मचली है तबीयत, तेरी सोहबत में कई बार।
उल्फ़त है तुमसे मुझको बेझिझक ऐ मेरे यार,
बेमुरउव्वत भी हुआ हूँ, तेरे साथ कई बार।
कवि- पंकज तिवारी
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
अच्छी रचना है| नये मिजाज लडके के मन की बात लगती है|
बनते हो हमसे भोले, हम मान लें कैसे?
तुमने है की शरारत, ख्वाबों में कई बार।
bhaut bhaut achha likha hai pankaj ji
ye panktiyan jaise kcuh nathkath si lagi
aapko padhna achha laga
sundar rachna hai...hume pasand aai
अच्छी रचना...
achchha likha hai, pankaj bhai aapne.
अच्छी कविता है
आप भी मेर "ख्वाबों में कई बार" नजर आते है
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