सर-सर सर्राती साँय-साँय
साँसों को पूर्ण विराम मिला,
लहू से लथपथ लोहित काया
को प्रथम है अब विश्राम मिला,
सुध-बुध खोती मक्खियों को भी
मानो है इसका भान मिला,
इन अजनबियों के देश में भी
कई जीवों का पहचान मिला।
कोई गिला नहीं निष्प्राण को अब-
जहाँ शांत खड़ा हर रूह नग्न-सा।
वो चला जा रहा पथिक मग्न-सा ।
मरू से मज्जित मरे जीवट पर
दो नयन डाल चुपचाप चला,
कुछ कहा नहीं ,कुछ सुना नहीं
ले हृदय में बस आलाप चला,
इक पल,इस पल कुछ मौन हुआ,
कर गौण फिर,हर संताप चला,
होकर निर्मल इस मरघट से
बन पापमुक्त ,दे शाप चला।
बड़े सन्नाटे में शिथिल पड़,
जड़वत है खुदा का नूर भग्न-सा।
वो चला जा रहा पथिक मग्न-सा ।
किसी क्रंदन का,किसी चंदन का,
अभिनंदन का वह मुहताज नहीं,
किसी कंधे का उसे इल्म नहीं,
है ठोकर पर आगाज नहीं,
किसी नदी,नाले में वह नश्वर
खोने को तत्पर आज कहीं,
है दैव वाम,क्या देव राम,
पथ अंतिम ,इक अल्फ़ाज नहीं।
वो महीप , मही को छोड़ चला
तज रजकण को ,मानो कृतघ्न-सा।
वो चला जा रहा पथिक मग्न-सा ।
- विश्व दीपक 'तन्हा'
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
deepak bhaut ghari baat kahi hai aapne aapki spch ki ghraayi dekh kar dang rahe gayi main
aapko fir ek baar apdhna achha laga
कहीं कोई दूर कोने से आवाज दे रहा है,पर पथिक अपने मग्न भेष अपनी सुध लेता चला जा रहा है;अत्यंत सुंदर वर्णन के द्वारा संदेश में प्राण भर दिया है…Beautiful!!!
वाह, अच्छा है. बधाई तन्हा जी. :)
कविता सुन्दर है, किंतु इतनी सहजता से समझी भी नहीं जा सकती| हृदय के अलावा मष्तिष्क को भी कविता के रसपान में पर्याप्त मेहनत लगी|
"सर-सर सर्राती साँय-साँय"
ये शब्द हवा के एक दिशा में जाते प्रवाह के लिए उपयुक्त होते,ठीक है,कवि का आशय जीव की आजीवन चलती साँसें हैं पर "सर्राती" माने तेज हवा जो बगल से निकल जाय । साँसों का प्रवाह दोनों दिशाओं में होता है।
"लहू से लथपथ" और "लोहित" दोनों का अर्थ एक ही है ,सो एक पुनरावृत्ति है।
"कई जीवों का पहचान मिला।"- पहचान मिला के स्थान पर "पहचान मिली " होना चाहिये था।
"खड़ा हर रूह नग्न-सा"- मेरे विचार से रूह स्त्रीलिंग है, "मेरी रूह", "उसकी रूह" आदि ,पर यदि आपने यह जानबूझकर लिखा , तो कोई बात नहीं क्योंकि आत्मा की तरह हो सकता है उर्दू में रूह भी दोनों तरह से प्रयुक्त हो।
"मरू से"- "मरू-से"
"दो नयन डाल"- नयन? कवि का आशय मैं समझ रहा हूँ , नयन यहाँ 'नजर' के लिये प्रयुक्त है ,पर नयन का अर्थ 'आँख' और कवि का आशय है 'दृष्टि' ।
"दे शाप चला।"- का आशय मैं नहीं समझ सका ।
मृत्यु अपने आप में एक अटल सत्य है,जो कविता उसका चित्रण करे वह यथार्थ का प्रतीक है।
एक सुझाव- कविता की एक आत्मा होती है, वही कविता का स्वरूप तय करती है,आपने, अधिकांश कविता में कविता को स्वयं उसका स्वरूप तय करने दिया, यह अच्छी बात है।बाकी जगहों पर कवि की अपरिपक्वता कविता के साथ थोड़ी जबर्दस्ती करती है, पर इतना चलता है। मैंने जब कविता पढ़ी, तो कवि को मन ही मन साधुवाद दिया। फ़िर जब यहाँ प्रतिक्रिया लिखने चला तो हर पाठक ने पहले ही मेरा काम कर डाला था। तो सोचा चलो आलोचना की ही बागडोर संभालूँ। आपकी प्रतिभा सभी को ग्यात है, और आप बहुत जल्दी सीखते हैं। यह सराहनीय है।
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