tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post116938409581523533..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: पथिकशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-1169617667298081672007-01-24T11:17:00.000+05:302007-01-24T11:17:00.000+05:30"सर-सर सर्राती साँय-साँय"ये शब्द हवा के एक दिशा मे..."सर-सर सर्राती साँय-साँय"<BR/>ये शब्द हवा के एक दिशा में जाते प्रवाह के लिए उपयुक्त होते,ठीक है,कवि का आशय जीव की आजीवन चलती साँसें हैं पर "सर्राती" माने तेज हवा जो बगल से निकल जाय । साँसों का प्रवाह दोनों दिशाओं में होता है।<BR/>"लहू से लथपथ" और "लोहित" दोनों का अर्थ एक ही है ,सो एक पुनरावृत्ति है।<BR/>"कई जीवों का पहचान मिला।"- पहचान मिला के स्थान पर "पहचान मिली " होना चाहिये था।<BR/>"खड़ा हर रूह नग्न-सा"- मेरे विचार से रूह स्त्रीलिंग है, "मेरी रूह", "उसकी रूह" आदि ,पर यदि आपने यह जानबूझकर लिखा , तो कोई बात नहीं क्योंकि आत्मा की तरह हो सकता है उर्दू में रूह भी दोनों तरह से प्रयुक्त हो।<BR/>"मरू से"- "मरू-से"<BR/>"दो नयन डाल"- नयन? कवि का आशय मैं समझ रहा हूँ , नयन यहाँ 'नजर' के लिये प्रयुक्त है ,पर नयन का अर्थ 'आँख' और कवि का आशय है 'दृष्टि' ।<BR/>"दे शाप चला।"- का आशय मैं नहीं समझ सका ।<BR/>मृत्यु अपने आप में एक अटल सत्य है,जो कविता उसका चित्रण करे वह यथार्थ का प्रतीक है।<BR/>एक सुझाव- कविता की एक आत्मा होती है, वही कविता का स्वरूप तय करती है,आपने, अधिकांश कविता में कविता को स्वयं उसका स्वरूप तय करने दिया, यह अच्छी बात है।बाकी जगहों पर कवि की अपरिपक्वता कविता के साथ थोड़ी जबर्दस्ती करती है, पर इतना चलता है। मैंने जब कविता पढ़ी, तो कवि को मन ही मन साधुवाद दिया। फ़िर जब यहाँ प्रतिक्रिया लिखने चला तो हर पाठक ने पहले ही मेरा काम कर डाला था। तो सोचा चलो आलोचना की ही बागडोर संभालूँ। आपकी प्रतिभा सभी को ग्यात है, और आप बहुत जल्दी सीखते हैं। यह सराहनीय है।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-1169447361330304482007-01-22T11:59:00.000+05:302007-01-22T11:59:00.000+05:30कविता सुन्दर है, किंतु इतनी सहजता से समझी भी नहीं ...कविता सुन्दर है, किंतु इतनी सहजता से समझी भी नहीं जा सकती| हृदय के अलावा मष्तिष्क को भी कविता के रसपान में पर्याप्त मेहनत लगी|राजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-1169430007406832342007-01-22T07:10:00.000+05:302007-01-22T07:10:00.000+05:30वाह, अच्छा है. बधाई तन्हा जी. :)वाह, अच्छा है. बधाई तन्हा जी. :)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-1169397088244276262007-01-21T22:01:00.000+05:302007-01-21T22:01:00.000+05:30कहीं कोई दूर कोने से आवाज दे रहा है,पर पथिक अपने म...कहीं कोई दूर कोने से आवाज दे रहा है,पर पथिक अपने मग्न भेष अपनी सुध लेता चला जा रहा है;अत्यंत सुंदर वर्णन के द्वारा संदेश में प्राण भर दिया है…Beautiful!!!Anonymousnoreply@blogger.com