नाम लिया तो बदनाम हो जाऊँगा..
सो ना हीं लूँ तो है सही..
क्योंकि
उसकी लटों से फ़ँसके मैं,
उसकी लतों से हँसके मैं
गुजरा अगर जो
सामने
दुनिया के,
उसको थामने
तो जानता हूँ
पाक़-साफ़
इस जहां की
तंग-सी हर एक गली मे
इश्क़ के मैं नाम पर
दुश्नाम(गाली) हो जाऊँगा.
बदनाम हो जाऊँगा........
ग़ालिबन
यह ठीक हो कि
ज़ौक की
शायरी का शौक ले
मैं
दाग़ के हर शेर पे
ढेर होता हीं रहूँ,
मीर के तुनीर से
निकले हुए हर तीर से
ज़ख्म खाके
आशिक़ी के ज़ेर (नीचे) होता हीं रहूँ,
या कि किसी साहिर की
राह का मुसाफ़िर हो
बह चलूं और
वादियों की आड़ में
खिल रहे गुलज़ार से
उड़्ती इन आब-ओ-हवा को
लूटने को
मेड़ होता हीं रहूँ..
जो भी हो
या
जो भी हो लूँ
लेकिन मैं यह जानता हूँ
ज्योंहिं मैने
नाम लेके
एक लफ़्ज़ भी कहा
तो बाखुदा
वो लफ़्ज़ हीं कलाम हो जाएगा...
कलाम क्या..
वो एक पूरा दीवान हो जाएगा..
और फिर
मजरूह मैं
बेकार सब
सौदाईयों का हमनाम हो जाऊँगा..
बदनाम हो जाऊँगा...
इसलिए यह सोचता हूँ कि
ना हीं लूँ तो है सही..
-विश्व दीपक