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दोहा गाथा सनातन - दोहा गोष्ठी : ६ दोहा दीप जलाइए


दोहा दीप जलाइए, मन में भरे उजास.
मावस भी पूनम बन, फागुन भी मधुमास.

बौर आम के देखकर, बौराया है आम.
बौरा गौरा ने वरा, खास- बताओ नाम?

लाल न लेकिन लाल है, ताल बिना दे ताल.
जलता है या फूलता, बूझे कौन सवाल?

लाल हरे पीले वसन, धरे धरा हसीन.
नील गगन हँसता, लगे- पवन वसन बिन दीन.

सरसों के पीले किए, जब से भू ने हाथ.
हँसते-रोते हैं नयन, उठता-झुकता माथ.


उक्त दोहों के भाव एवं अर्थ समझिये. दोहा कैसे कम शब्दों में अधिक कहता है- इसे समझिये. अब आप की बात, आप के साथ

सपन चाँद का दिखाते, बन हुए हैं सूर.
दीप बुझाते देश का, क्यों कर आप हुजूर?

बिसर गया था भूत में, आया दोहा याद.
छोटा पाठ पढाइये, है गुरु से फरियाद.

गुरु ने पकड़े कान तो, हुआ अकल पर वार.
बिना मोल गुरु दे रहे, ज्ञान बड़ा उपकार..

हल्का होने के लिए, सब कुछ छोड़ा यार.
देशी बीडी छोड़ कर, थामा हाथ सिगार.

कृपया, शंका का हमें, समाधान बतलाएं.
छंद श्लोक दोहा नहीं, एक- फर्क समझाएं.

पढने पिछले पाठ हैं, बात रखेंगे ध्यान.
अगले पाठों में तपन, साथ रहे श्रीमान.

नम्र निवेदन शिष्य का, गुरु दें दोहा-ज्ञान.
बनें रहें पथ प्रदर्शक, गुरु का हृयदा महान.

'बुरा न मिलिया कोय' तथा 'मुझसा बुरा न होय' में क्रमशः १+२+१+१+१+२+२+१ = ११ तथा १+१+२+१+२+१+२+१=११ मात्राएँ हैं. पूजा जी ने 'न' के स्थान पर 'ना' लिख कर मात्रा गिनी इसलिए १ मात्रा बढ़ गयी.

चलते-चलते एक वादा और पूरा करुँ-

'बेतखल्लुस' नये रंग का, नया हो यह साल.
नफरतों की जंग न हो, सब रहें खुशहाल.

अपने-अपनी पंक्तियाँ तो आप पहचान ही लेंगे. परिवर्तन पर ध्यान दें. आप हर शब्द जानते हैं, आवश्यकता केवल यह है कि उन्हें पदभार (मात्रा) तथा लय के अनुरूप आगे-पीछे चुन कर रखना है. यह कला आते आते आयेगी. कलम मंजने तक लगातार दोहा लिखें...लिखते रहें...ग़लत होते-होते धीरे-धीरे दोहा सही होने लगेगा.

सरसुति के भंडार की, बड़ी अपूरब बात.
ज्यों खर्चो त्यों-त्यों बढे, बिन खर्चे घट जात.

करत-करत अभ्यास के, जडमति होत सुजान.
रसरी आवत-जात ते, सिल पर पडत निसान.