दिसंबर माह की नवीं कविता की रचनाकार ऋतु वार्ष्णेय हिंद-युग्म पर प्रथम बार प्रकाशित हो रही हैं। बनारस की रहने वाली ऋतु ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी मे पी एच डी की उपाधि प्राप्त की है। ऋतु लेखन तथा अन्य साहित्यिक और शैक्षिक गतिविधियों मे काफ़ी सक्रिय रही हैं और यशपाल-साहित्य तथा लोककला से संबंधित कई शोधपत्र भी लिखे हैं। इनकी विभिन्न कविताएं व लेख तमाम राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित होती रही हैं। दो पुस्तकें भी प्रकाशित हैं। ऋतु वर्तमान मे वाराणसी मे प्रवक्ता पद पर कार्यरत हैं।
संपर्क: डी-48/76, मिसिर पोखरा
गोदौलिया, वाराणसी
पिन: 221010 (उ0प्र0)
पुरस्कृत कविता: संवेदना
माँ गीली मिट्टी है
जो पानी में सनकर
जिसमें पड़ने वाला निशान
एक छाप छोड़ देता है
कभी अधूरा कभी पूरा
जो कभी चाक पर घूमती हुई
तेरे आकार की प्रथम कड़ी है
और
मैं भी यहीं कहीं
हर पल तेरे आसपास मँडराता
हर वक्त तेरा नाम पुकारता
कभी तुझे फटकारता
गहराई और दर्द के साथ
तुझसे तेरी शिकायत करता
कभी मौन साध के
तेरे आकार की अंतिम कड़ी को
पूरा करने को
तुझे बाहर से पीटता हुआ
धाप लगाता
और
आँखों में आँसू पीता
तुझे साझा रूप देता हूँ
मैं माँ नहीं पर
तेरा पिता हूँ।
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पुरस्कार - विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।
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