मार्च प्रतियोगिता की नवीं कविता के रचनाकार मनोज गुप्ता ’मनु’ हैं। हिंद-युग्म पर यह उनकी पहली कविता है। 1977 मे गुना (म.प्र.) मे जन्मे मनोज ने कम्प्यूटर से स्नातक किया है और वर्तमान मे शेयर-ब्रोकिंग व्यवसाय से संबद्ध हैं। लेखन के अलावा पेंटिंग मे भी रुचि रखने वाले मनोज की रचनाएँ दैनिक पत्रों मे प्रकाशित हो चुकी हैं और वो ब्लॉग पर भी लिखते हैं। अपने साहित्यिक रुझान के बारे मे खुद उनका कहना है कि "मेरे परिवार का कोई भी सदस्य साहित्य में रूचि नहीं रखता है। मैंने अपने जीवन की पहली कविता मेरे एक दोस्त के जोर देने पर उसकी प्रेमिका के लिए लिखी थी, उसके बाद लेखन के प्रति मेरी गहरी रूचि हुई !"
सम्पर्क: 'वात्सल्य" 7 ए, शारदाकुंज,
नरेला शंकरी, भेल
भोपाल (म.प्र.) 46202
दूरभाष: 9329783197
पुरस्कृत रचना: महंगाई का दानव
चहकते हुए पड़ोस में
मातम सा छा गया है
महंगाई का ये दानव
एक दम से आ गया है!
मांगी थी फीस उसने
चांटा दिया पिता ने,
स्कूल आज बच्चा
रोता हुआ गया है!
वो भूख से तड़पकर
मजदूर मर रहा है,
सारे जहाँ की रोटी
ये कमबख्त खा गया है!
इस बार मेरी बहना
राखी न भेजना तू ,
ससुराल में बहन को
ये ख़त रुला गया है !!
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पुरस्कार: हिंद-युग्म की ओर से पुस्तकें।
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
मंहगाई का तो हल मत पूछिए। सभी लोग बेहाल हैं।
देखिये आजकल का जमाना
मुश्किल है घर का खर्च चलाना
बाहर जब भी जाते हैं
दाम बड़े हुए पाते हैं
मंहगाई ने निकाला हमारा दिवाला
जो हाल मेरा वही हाल तुम्हारा
ये तो है घर-घर की कहानी
दाम बदना है इसकी निशानी
अच्छी कविता है |महगाई की मार से सभी परेशांन है | इसका असर रिश्तों पर भी पड़ता है | परेशांन है ||
वो भूख से तड़पकर
मजदूर मर रहा है,
सारे जहाँ की रोटी
ये कमबख्त खा गया है!
इस बार मेरी बहना
राखी न भेजना तू ,
ससुराल में बहन को
ये ख़त रुला गया है !! kavita ki yah panktiya samsamik aur vartman vyavstha par chot karti hai.aam aadmi ke man ki peda kavita di laino me chalakti hai. aam aadmi ke bhavnao ko sabd dene ke liye dhanybad
mahgai ne sbhi ki halat patli kar di hai
good poetry.........
बड़ी ही सामायिक चर्चा इस कविता के मद्धम से छेड़ी हैं आप ने....
क्या कह सकते है ....
....महगाई डायन खाए जात है
जनवादी अभिव्यकि के लिए साधुवाद
aaj ke time me garib apni mehnat ki kamai me se ek kg. dudh bhi nahi pee sakta aur jinke pass paisa h unka ye pata nahi k kanha se aata h ye paissa.kavita k davara bharsht logo par gahri chot ki h.good
वो भूख से तड़पकर
मजदूर मर रहा है,
सारे जहाँ की रोटी
ये कमबख्त खा गया है
अच्छी कविता महंगाई पर... बधाई...
महंगाई के कारन गरीब बच्चे खुद काम-धंधा करके अपना पेट पाल रहे हैं |उन्हें पढने -लिखने की फुर्सत कहा हैं |
apki kavita bahut achchi hai
bhookh se mara tha footpath par pada tha, kapade utha k dekha to pet par likha tha,'sare janha se achha hindosta hamara''
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महगाई आज की सबसे बड़ी समाया हे जहाँ एक और गरीब पिसा रहा है वही दोसरी और अमीर और जायदा अमीर बनता जा रहा है | Talented India News App
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