मार्च की दसवीं कविता भी नये रचनाकार की है। रचनाकार रितेश पांडेय मूलतः इलाहाबाद से हैं और वर्तमान मे दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य विषय मे परास्नातक मे अध्ययनरत हैं। बचपन से ही कविताओं मे रुचि रखने वाले रितेश ने कालेज स्तर पर ’तरुण मित्र’ पत्रिका का संपादन भी किया है। इनकी अन्य रुचियों मे संगीत सुनना और विभिन्न भाषाओं की फ़िल्में देखना भी शामिल है। इसके अतिरिक्त रितेश सांस्कृतिक गतिविधियों मे सक्रिय भागेदारी भी करते हैं। हिंद-युग्म पर यह उनकी प्रथम कविता है।
पुरस्कृत कविता: तुम्हारा साथ
तुम्हारा साथ होता है
बसंत की तरह
जिसमे मुस्कराती हैं कलियाँ
लहलहाते हैं खेत
मचलती हैं हवायें
इठलाते है बादल और
उन्ही में से झांकता है सूरज....
तुम्हारा साथ होता है
बारिश की तरह
जो पुलकित कर देता है
तन-मन को,
एक पल के लिए
इनकी छोटी बूंदों पर
होते है हमारे सपने,
जो टूट कर, बिखरकर मिल जाते हैं
और बनाते है आशाओं की नदियाँ....
तुम्हारा साथ होता है
बचपने की तरह,
जिसकी हर किलकारी पर
उमड़ पड़ता 'माँ' का मातृत्व
देखते है कौतुहल भरे नेत्रों से
हर किसी के प्यार को...
जो थाम लेना चाहता है
नन्हीं-नन्हीं अँगुलियों से
पूरा का पूरा संसार,
घूम लेना चाहता है
लड़खड़ाते कदम से
पूरा का पूरा जहाँ
जिसकी चाँद जैसी मुख-भंगिमा पर मुग्ध हो
हिलोरे लेने लगता है
पूरा का पूरा समुद्र....
तुम्हारा साथ होता है
झरनों की तरह,
जिससे फिसलकर गिरता है वक्त
निश्च्छल, कान्त और पवित्र,
जो सिंचित करता है आत्मा को
मधुर, मलय, शीतलता
उद्धेलित कर जाती तन-मन को..........
तुम्हारा साथ होता है
भावनाओं का सम्प्रेषण,
मुश्किल होता है
जज्बातों को लफ्जों में बांधना,
कहाँ है वो
वाक्यों की सुन्दरतम वाय परिसीमा
जो शब्दों की लड़ियों से
परिभाषित कर सके
हमारे-तुम्हारे साथ को.....
_________________________
पुरस्कार: हिंद-युग्म से पुस्तकें।
पुरस्कृत कविता: तुम्हारा साथ
तुम्हारा साथ होता है
बसंत की तरह
जिसमे मुस्कराती हैं कलियाँ
लहलहाते हैं खेत
मचलती हैं हवायें
इठलाते है बादल और
उन्ही में से झांकता है सूरज....
तुम्हारा साथ होता है
बारिश की तरह
जो पुलकित कर देता है
तन-मन को,
एक पल के लिए
इनकी छोटी बूंदों पर
होते है हमारे सपने,
जो टूट कर, बिखरकर मिल जाते हैं
और बनाते है आशाओं की नदियाँ....
तुम्हारा साथ होता है
बचपने की तरह,
जिसकी हर किलकारी पर
उमड़ पड़ता 'माँ' का मातृत्व
देखते है कौतुहल भरे नेत्रों से
हर किसी के प्यार को...
जो थाम लेना चाहता है
नन्हीं-नन्हीं अँगुलियों से
पूरा का पूरा संसार,
घूम लेना चाहता है
लड़खड़ाते कदम से
पूरा का पूरा जहाँ
जिसकी चाँद जैसी मुख-भंगिमा पर मुग्ध हो
हिलोरे लेने लगता है
पूरा का पूरा समुद्र....
तुम्हारा साथ होता है
झरनों की तरह,
जिससे फिसलकर गिरता है वक्त
निश्च्छल, कान्त और पवित्र,
जो सिंचित करता है आत्मा को
मधुर, मलय, शीतलता
उद्धेलित कर जाती तन-मन को..........
तुम्हारा साथ होता है
भावनाओं का सम्प्रेषण,
मुश्किल होता है
जज्बातों को लफ्जों में बांधना,
कहाँ है वो
वाक्यों की सुन्दरतम वाय परिसीमा
जो शब्दों की लड़ियों से
परिभाषित कर सके
हमारे-तुम्हारे साथ को.....
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पुरस्कार: हिंद-युग्म से पुस्तकें।
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
तुम्हारा साथ होता है
भावनाओं का सम्प्रेषण,
मुश्किल होता है
जज्बातों को लफ्जों में बांधना,
कहाँ है वो
वाक्यों की सुन्दरतम वाय परिसीमा
जो शब्दों की लड़ियों से
परिभाषित कर सके
हमारे-तुम्हारे साथ को.....
bahut hi sundar bhaavabhivyakti
बहुत- बहुत धन्यवाद ..........
तुम्हारा साथ...sneh me doobi hui ye rachna bahut meethi hai...परिभाषित to kar hi diya aapne जज्बातों की लड़ियों से...shubhkamnayen
rashmi di
bahut bahut hi sundar rachna aapke jariye padhne ko mili hindi yugm ke in navodit kavi (ritesh ) ji ko meri taraf se hardik shubh -kamnaaye .
sach bahut hi badhiya likhte hain vo .
bahut bahut badhai v
aapko sadar naman
poonam
kya kub likha hai ......badhae
kya kub likha hai ......badhae
bahut hi pyari kavita..har shabd sneh me duba hua...subhkamnayen....:)
हेलो रितेश
हम आपकी कविता तुम्हारा साथ मैग्ज़ीन
खुशबू (डेली न्यूज़, राजस्थान पत्रिका ग्रुप ) में प्रकाशित करना चाहतें हैं. कृपया आपका एड्र्स मेल करें.
थैंक्स
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