अप्रैल 2011 की युनिकवि प्रतियोगिता के परिणाम आ गये हैं, जिन्हे ले कर हम आपके समक्ष उपस्थित हैं। पिछले कुछ माहों मे निर्णय आने मे होने वाले विलम्ब की वजह से परिणाम प्रकाशित करने की अवधि मे थोड़ा व्यतिक्रम होता गया है, जिसे हम दुरुस्त करने की कोशिश कर रहे हैं। अप्रैल माह के आयोजन के द्वारा प्रतियोगिता ने अपने बावन महीनों का पड़ाव पार कर लिया है। प्रतिभागियों का जोश और पाठकों का नियमित प्रोत्साहन इस प्रतियोगिता की महत्वपूर्ण उपलब्धि रही है।
अप्रैल माह की प्रतियोगिता के लिये हमारे पास कुल 38 जायज प्रविष्टियाँ आयीं, जिनको दो चरणों मे परखा गया। पहले चरण मे चार निर्णायक तय किये गये, इन निर्णायकों द्वारा दिये गये अंकों के आधार पर 21 कविताओं को दूसरे यानी अंतिम चरण के निर्णय के लिए भेजा गया। अंतिम चरण में 2 निर्णयक थे, जिनके द्वारा दिये गये अंकों और पुराने औसत अंकों के औसत के आधार पर कविताओं का अंतिम वरीयता क्रम निर्धारित किया गया। हालाँकि इस बार निर्णायकों को यह भी लगा कि कविताओं का सामूहिक स्तर पिछले माहों की तुलना मे कुछ कमतर रहा है। इसलिये हमने शीर्ष की सिर्फ़ सात कविताओं को प्रकाशित करने का निर्णय किया है। कविता अपने मन के भावों को अभिव्यक्त करने के माध्यम के अलावा शब्दों के हथौड़े से सामाजिक-सांस्कृतिक-वैचारिक जड़ता की दीवारों को तोड़ने और हमारी सोच की हदों को और विस्तृत करने का औजार भी होती है। एक अच्छी कविता कहलाये जाने के लिये उसमे कथ्य/शिल्प स्तर पर मौलिकता का समावेश होना जरूरी शर्त होता है। जो कविताएँ प्रचिलित लीक को चुनौती दे कर मौलिकता की इस कसौटी पर खरी उतरती हुई अपने समय के सच को शब्दों की रोशनी मे लाने की हिम्मत करती हैं, वही कविताएं कालातीत हो पाती हैं और अपने वक्त का दस्तावेज बन जाती हैं। आशा है कि हमारे उत्साही प्रतिभागी हर बार अपनी अभिव्यक्ति की सीमाओं को चुनौती देते हुए हर रचना के संग परिपक्वता के नये मुकाम पार करते रहेंगे। शीर्ष की तीनों कविताओं के बीच इस बार ज्यादा फ़र्क नही रहा है मगर सारे निर्णायकों की पसंद के आधार पर पंकज रामेंदु अप्रैल माह के लिये हिंद-युग्म के यूनिकवि घोषित हुए हैं।
युनिकवि: पंकज रामेंदु
पंकज रामेंदु का जुड़ाव हिंद-युग्म से काफ़ी पुराना रहा हैं मगर इधर एक लंबे अंतराल के बाद उनकी हिंद-युग्म पर वापसी हुई है। उनकी पिछली कविता 2008 मे हिंद-युग्म पर प्रकाशित हुई थी। हमारे पुराने पाठक संभवतः उनसे परिचित होंगे मगर नये पाठकों के लिये हम एक बार पुनः उनका परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं।
पंकज का जन्म मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 29 मई 1980 को हुआ। इनको पढ़ने का शौक बचपन से है, इनके पिताजी भी कवि हैं, इसलिए साहित्यिक गतिविधयों को इनके घर में अहमियत मिलती है। लिखने का शौक स्नातक की कक्षा में आनेपर लगा या यूँ कहिए की इन्हें आभास हुआ कि ये लिख भी सकते हैं। माइक्रोबॉयलजी में परास्नातक करने के बाद एक बहुराष्ट्रीय कंपनी मे कुछ दिनों तक काम किया, लेकिन लेखक मन वहाँ नहीं ठहरा, तो नौकरी छोड़ी और पत्रकारिता में स्नात्तकोत्तर करने के लिए माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय जा पहुँचे। डिग्री के दौरान ही ई टीवी न्यूज़ में रहे। एक साल बाद दिल्ली पहुँचे और यहाँ जनमत न्यूज़ चैनल में स्क्रिप्ट लेखक की हैसियत से काम करने लगे। वर्तमान में स्क्रिप्ट लेखक हैं और लघु फ़िल्में, डाक्यूमेंट्री तथा अन्य कार्यक्रमों के लिए स्क्रिप्ट लिखते हैं। कई लेख जनसत्ता, हंस, दैनिक भास्कर और भोपाल के अखबारों में प्रकाशित।
पंकज की प्रस्तुत कविता जो इस बार की यूनिकविता चयनित हुई है, साहित्य के एक बेहद महत्वपूर्ण मगर उपेक्षित नाम भुवनेश्वर को याद करने के बहाने वर्तमान हिंदी साहित्य के परिदृश्य पर गहरा कटाक्ष करती है। हम अपने पाठकों को बताते चलें कि भुवनेश्वर का जन्म 1910 मे शाहजहाँपुर (उ प्र) मे हुआ था। अपने कुछ नाटकों और कहानियों के बल पर परिपक्वता के मामले मे वो अपने समय के साहित्य से कहीं आगे निकल गये थे। उनकी सबसे प्रसिद्ध कहानी ’भेड़िये’ हंस मे सर्वप्रथम 1938 मे प्रकाशित हुई थी, जिसे कई आलोचक हिंदी की पहली आधुनिक कहानी मानते हैं। मगर अपने बेहद स्वाभिमानी और तल्ख स्वभाव के चलते वो तत्कालीन साहित्य के राजपथ से निर्वासित और समकालीन साहित्यकारों मे सर्वथा उपेक्षित ही रहे। उनकी मृत्यु 1955 मे गहरी गुमनामी और फ़ाकाकशी के दौर मे हुई। गत 2010 भुवनेश्वर की जन्मशती का वर्ष था।
युनिकविता: पीड़ा (भुवनेश्वर के बहाने)
वो लिखता था,
लिखता क्या था आतंक,
आंतक उनके लिए
जो मान बैठे थे खुद को खुदा,
शब्दों का ब्रह्मा,
जो ये मानते थे कि वो जानते हैं,
जो ये मानते थे कोई नहीं जानता,
जो ये मानते थे जानना भी उन्हे आता है,
जो ये मानते थे कलम उनके बाप की है,
जो ये मानते थे लिखना उन्हें आता है,
वे आतंकित हो गये थे,
नये शब्दों के चयन से
एक असुरक्षा घिर गई थी उनके मन में
उसकी लेखनी में आम सा कुछ था,
कुछ साधारण सा लगने वाला
जिसे हर कोई समझ जाता था
जो हर एक की बात थी,
उसमें कुछ आधुनिकता थी
कुछ ऐसा जो अब तक नहीं लिखा गया था
या जिसे लिखने की हिम्मत नहीं जुटा सका था कोई।
वो भय बन गया था अचानक
उसे सब समझते थे जिसे हम आम कहते हैं
औऱ जिसे नासमझ भी कहा जाता है
वो उनकी बोली उनकी भाषा की बात थी
उसने वो बात भी कही या लिखी
जो शायद उस दौर की सोच में नही थी।
बस आलोचनाओं के कीड़े
धीरे धीरे कुतरने लग गये उसे,
बुद्धिजीवियों के पिरान्हा रूपी समूह ने
साहित्यिक मांस को नोच डाला था
शब्दों के गोश्त को चबा-चबा कर
सब कुछ पचा गये
और सुबह की जुगाली में
दांत में फंसे हुए गोश्त के टुकड़े को
किसी पैनी चीज़ से कुरेद कर निकाल फेंका था,
वो टुकड़ा जो किसी कहानी, किसी कविता का हिस्सा था
हवा में विलीन हो गया,
सुना है वो जो आतंक था
वो सर्दी के आतंक से ठिठुर गया था।
आजकल साहित्य का मांस नोचने वाले
जिनके पुरखों ने उसके गोश्त का मज़ा चखा था
उसके शब्दों के मांस का फिर लुत्फ उठा रहे हैं,
उसके मरने पर अफसोस जता रहे हैं
उसकी याद में गोष्ठी पर गोष्ठी सजा रहे हैं,
जिसमें कहानी के किसी टुकड़े को
एकांकी के किसी कतरे को
कविता के किसी पल को याद किया जा रहा है
और उसे भी, जो कभी आतंक था
उसे भुनाया जा रहा है
कैसा अजीब है ये रवैया
तिल तिल कर मरना,
फिर एक दिन चुपचाप खामोश हो जाना,
कितना मुश्किल है
दुनिया में अमर हो पाना ।
___________________________________________
पुरस्कार और सम्मान: हिंद-युग्म की ओर से पुस्तकें तथा प्रशस्तिपत्र। प्रशस्ति-पत्र वार्षिक समारोह में प्रतिष्ठित साहित्यकारों की उपस्थिति मे प्रदान किया जायेगा। समयांतर में कविता प्रकाशित होने की सम्भावना।
इसके अतिरिक्त अप्रैल माह की शीर्ष की जिन छ: कविताओं का हम प्रकाशन करेंगे, उनके रचनाकारों का क्रम निम्नवत है-
नरेंद्र कुमार तोमर
चैन सिंह शेखावत
धर्मेंद्र कुमार सिंह
रोहित रुसिया
शामिख फ़राज़
निशीथ द्विवेदी
उपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 7 जून 2011 तक अन्यत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।
हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें। प्रतियोगिता मे भाग लेने वाले शेष कवियों के नाम निम्नांकित हैं (शीर्ष 21 के अन्य प्रतिभागियों के नाम अलग रंग से लिखित हैं)
राकेश जाज्वल्य
विशाल बाग
संगीता सेठी
आलोक उपाध्याय
शोभा रस्तोगी
सुरेंद्र अग्निहोत्री
सनी कुमार
निशा त्रिपाठी
रेणु दीपक
अनंत आलोक
गौरव कुमार ’विकल’
दीपक वर्मा
अरविंद कुमार पुरोहित
विजय विगमल
शील निगम
कमल जोशी पथिक
सीमा स्मृति मलहोत्रा
गंगेश ठाकुर
प्रवीण कुमार
यानुचार्या मौर्य यानु
मेयनुर खत्री
जोमयिर जिनि
वंदना सिंह
अनिल चड्डा
स्नेह सोनकर पीयुष
बलराम मीना दाऊ
दीपक कुमार
डॉ गौरव गर्ग
अनुपम चौबे
विभोर गुप्ता
एकनाथ उत्तम तेलतुंबडे
विशेष: इस बार किसी पाठक को यूनिपाठक सम्मान हेतु योग्य नही पाया गया है। हमारा अपने पाठकों से अनुरोध है कि अपनी रचनात्मक और निष्पक्ष प्रतिक्रियाओं से रचनाकारों का मार्गदर्शन करें।
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
निःशब्द कर देने वाली रचना है। शीर्ष पर रहने के हर तरह से योग्य है ये कविता। पंकज जी को बहुत बहुत बधाई।
आजकल साहित्य का मांस नोचने वाले
जिनके पुरखों ने उसके गोश्त का मज़ा चखा था
उसके शब्दों के मांस का फिर लुत्फ उठा रहे हैं,
उसके मरने पर अफसोस जता रहे हैं
उसकी याद में गोष्ठी पर गोष्ठी सजा रहे हैं,
जिसमें कहानी के किसी टुकड़े को
एकांकी के किसी कतरे को
कविता के किसी पल को याद किया जा रहा है
और उसे भी, जो कभी आतंक था
pankaj ji unikavi pratiyogita me dusre bar chaynit hone par badhai. bhuvnesver ji ke bahane kavita me aapne chichale sahetya par karari chot ki hai.yah samay ke lihaj se jaruri hai. bahut barhiya.
भुवनेश्वर के बहाने, साधे कई निशाने।
..अच्छा लगा पढ़कर। यूनिकवि को बधाई
पंकज जी को बहुत बहुत बधाई।
kitna kuchh kah diya hai is kavita ne ...magar afsos .. vo jo chale gaye is duniya se ..beshak amar ho jaate hain vo ...magar unke hisse kee peeda ..kya koi kabhi share kar pata hai ...
bhai wah kya chunchun kar nishane sadhe hain .aapki kavita me darad bhi utan ahi hai .
sahi kaha aapne amr hona bahut kathin hai .
aap ko pratham sthan ki badhai
rachana
bahut- bahut badhai Pankaj bhaiya .yah link hindi academy ko jarur bhejani chahiye kam se kam uske nirnaayak mandal ko to jarur .taki vo jan saken ki chunane ya radd karne ki unake jaisi kshamta kisi me bhi nahi hai nahin hai sahas ki umda rachana ko koi sire se khariz karde siwa unake ...............
Priya pankaj
April 2011 ki uni kavi pratiyogita ke parinam dekhe.Tumarre Unikavi ghoshit hone ke liye hardik badhai.Tumari kavita ko Mummi ne bhi pada,unki or se bhi badhai. Bhuvneshwar ko to mainse nahi parha kintu tumhari kavita achchi lagi.Logo ke kaments padkar bhi achcha laga. Pratibha ki tippani bahut pasand aai. Ram Charan Verma"Rajesh", Daddy.
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