देखा था सपना एक कस्बे ने...
कि वो शहर हो गया!
दौड़ता रहा वो सालों
उस सपने के पीछे
आखिर रंग लाई उसकी उर्ज़ा
रौशन हुआ वो कस्बा….
और शहर हो गया!!!
पर हाय! अब क्या हो?
शहर को भूख लगी थी
उसने निगल ली कई ज़िन्दगियां...
और बढ़ चला तरक्की के रास्ते पर
बढ़ गए सपने
बढ़ गए उन सपनों के दायरे
फिर जब लगती भूख
थमती थीं कुछ ज़िन्दगियां
कस्बा एक महानगर हो गया
और भूख एक नियम
कई गांवों ने...
कई कस्बों ने
आज फिर वही सपना देखा है!
याद रहे ! सपने क़ुर्बानी मांगते हैं
(ग्रामीण विकास को समर्पित पत्रिका ‘कुरूक्षेत्र’ में प्रकाशित कविता)
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
12 कविताप्रेमियों का कहना है :
bahut hi marmspashriy rachna :)
सपने संभावनायें हैं।
सपने कुर्बानी माँगते हैं इसमें कोई शक नहीं। सुंदर रचना
सपने क़ुर्बानी मांगते हैं"
aksar aesa hi hota hai
dhnyavad
rachana
बेहतरीन प्रस्तुति ..... !
उत्साहवर्द्धन के लिए आप सभी को धन्यवाद
bahut acchi lagi yah kavita....
aaj ki peedhi ko aisi rachnao ki zarurat hai...thank u sir
Sach hai kuch khokar panaa hai kuch paakar khona hai
jeevan ki reet yahi aana aur janaa hai.
badhiyaa........
कई गांवों ने...
कई कस्बों ने
आज फिर वही सपना देखा है!
याद रहे !
कई गांवों ने...
कई कस्बों ने
आज फिर वही सपना देखा है!
याद रहे !
बढ़ चला तरक्की के रास्ते पर
बढ़ गए सपने
बढ़ गए उन सपनों के दायरे....v true our dreams keep on increasing n finally we pay the kurbani for achieving what we desire.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)