हरसिंगार के फूलों से
आँगन में झरते हैं सपने
उनको समेटने में
कितना बिखरते हो तुम
नौकरी पर
अवहेलना और चुनौतियों का लावा
अंदर जज्ब करके
सुषुप्त ज्वालामुखी की तरह
शान्त सुलगते हो तुम
ममता की गुहार ,
और प्रेम की तकरार
के बीच
बेवख्त आये मेहमान की तरह
उपेक्षित होते हो तुम
अपनों में खिलते
उम्मीद के फूलों को
सीचने के लिए
श्रम की बूंदों में
पिघलते हो तुम
घर की धारा में बहते
चट्टानों से टकराते हो
पर बड़े होते बच्चों से
जब कुछ कहते हो
भिखारी के गीत की तरह
सुने जाते हो तुम
फिर भी प्रेम की चांदनी
आँगन में उतारने को
चौखट की हवा सवारने को
गुलमोहर सा
मुस्कुराते हो तुम
(कवियत्री-रचना श्रीवास्तव)
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
ये कविता जैसे उमस भरे चिपचिपे बरसाती मौसम में ठंढी पुरवाई. श्रम को पुरुषार्थ बनाती और फिर उसे हरसिंगार के फूल सी नाजुक और संग्रहण योग्य बनाती ये कविता अति सुन्दर है. बधाई और फिर फिर बधाई.
शीतल मन्द बयार काव्य की।
आम तौर पर महिलाओन की सम्वेदना के ताने बाने पर कवितायेन लिखि जाती हैं... पुरुषों के भावनात्मक पक्ष को कविता में उकेरने के लिये धन्यवाद...
आकर्षण
सुंदर कल्पना, सटीक रचना बधाई
bahut sunder kavita hai rachna ji. Rachna ki atiuttam rachna ke liye badhai.
amita
कुछ ही लेखिकाएं होती हैं..
जो पुरुषों को भी इन्सान समझती हैं...
आम तौर पर हम खुद भी नहीं समझते..तो महिलाओं की क्या कहें...
:)
बहुत ही प्यारी कविता रचना जी...
कुछ ही लेखिकाएं होती हैं..
जो पुरुषों को भी इन्सान समझती हैं...
आम तौर पर हम खुद भी नहीं समझते..तो महिलाओं की क्या कहें...
:)
बहुत ही प्यारी कविता रचना जी...
बुतों के बियाबान से काफ़िर सा गुजरता हूँ
बोझ है काँधें पर मैं सजदा नहीं कर सकता
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रचना जी
परिवार के अधेड़ मुखिया का दर्द आपने बखूबी उकेरा है बधाई
अपने से परे सोचने वाले बिरले ही होते है,
मनु जी आपकी टिपण्णी को सलाम,
विनय
aap sabhi ka hridya se dhnyavad .aap sabhi ka ye sneh meri aankhen nam kar deta hai .
bahut bahut dhnyavad
rachana
बहुत प्रभावशाली रचना है...असंख्य घावों पर
मलहम लगाती हुई..
bhikhaari kee tarh sune jaate ho ,
gulmohar saa fir bhi muskaate ho ....
sundar abhivyakti yathaarth kaa smaran karaati si .
veerubhai .
सचमुच मे कविता लिखना मुश्किल काम है। महिलाओं की व्यथ पर बहुत सारी कवितायें लिखी गयी। पुरुष और पिता पर बहुत कम। लोगों ने स्त्री-पुरुष दोनों को बानत दिया है। रचना जी ने कुछ न्याय किया है। पुरुष और स्त्री के कुछ नैसर्गिक गुण हैं, जो भगवान ने दिया हैं, वहीं उनके कुछ प्रवृतिजनक अवगुण भी मौजूद हैं। जो उनमे संतुलन बना लेता है, वह धन्य है।
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