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Friday, January 07, 2011

खिलखिलाये


शोक में, उल्लास में
दो बूंद आँसू झिलमिलाये
देखकर प्यासे सुमन पगला गये और खिलखिलाये
*
साज़िश थी इक ,
सूर्य को बन्दी बनाने के लिये
जंजीर में की कैद किरणे
तमस लाने के लिये
नादान मेढक हुये आगे, राह इंगित कर रहे
कौशिशों में जूगनुओं ने चमक़ दी और पर हिलाये
देखकर नन्हे शिशु पगला गये और खिलखिलाये
*
बादलों के पार
बेचैनी भरी मदहोंश चितवन
देख सुन्दर सृष्टि को ना
रोक पाई दिल की धड़कन
भाव व्याकुल हो तड़ित सा काँप जाता तन बदन
मधुर आमन्त्रण दिये, निशब्द होठों को हिलाये
देखकर रूठे सनम पगला गये और खिलखिलाये
*
नृत्य काली रात में था
शरारत के मोड़ पर
सुर बिखरता , फैल जाता
ताल लय को तोड़ कर
छू गया अंतस
प्रणय का गीत मुखरित हो उठा
थम गई साँसे उलझ कर जाम लब से यों पिलाये
देखकर प्यासे चषक पगला गये और खिलखिलाए

-हरिहर झा

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9 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

शैलेशजी चोर हे ,,,,
अचा धंधा चला रख हे ,,,,,,

प्रवीण पाण्डेय का कहना है कि -

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्त है यह खिलखिलाना।

रंजना का कहना है कि -

वाह...बहुत बहुत सुन्दर...

भावों को खूबसूरती से बिम्बों और शब्दों का जामा पहना सजीव कर पन्ने पर उतार दिया है आपने...

नया सवेरा का कहना है कि -

... bahut badhiyaa !!

rachana का कहना है कि -

बाद्लों के पार
बेचैनी भरी मदहोंश चितवन
देख सुन्दर सृष्टि क्यों ना
रोक पाई दिल की धड़कन
भाव व्याकुल हो तड़ित सा काँप जाता तन बदन
मधुर आमन्त्रण दिये, निशब्द होठों को हिलाये
देखकर रूठे सनम पगला गये और खिलखिलाये
bahut sunder
badhai
saader
rachana

हरिहर झा का कहना है कि -

शैलेशजी, कुछ चल रहा है! Anonymously आलोचना या निन्दा तो की जा सकती है पर बेतुके आरोप का क्या मतलब है !

‘सज्जन’ धर्मेन्द्र का कहना है कि -

सुंदर रचना हरिहर जी, बधाई

Vinaykant Joshi का कहना है कि -

बहुत दिनों के बाद सुन्दर कविता के साथ आपसे मिलना अच्छा लगा
बधाई,
सादर, विनय के जोशी

सदा का कहना है कि -

बहुत खूब ।

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