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Sunday, November 07, 2010

प्यार की दुनिया को फिर से, देख लो इक बार तुम


सितंबर प्रतियोगिता की चौदहवीं और अंतिम कविता आलोक गौड की है। प्रतियोगिता मे नियमित प्रतिभागी रहे आलोक की यह कविता राह से भटक कर हिंसात्मक गतिविधियों मे रत देश के तमाम युवाओं को संबोधित करती है और प्रेम एवं भाईचारे के शाश्वत मूल्यों मे भरोसा करने का आह्वान करती है।

कविता

प्यार की दुनिया को फिरसे, देखलो इकबार तुम
मान जाओ, आ-भी-जाओ, मत करो इनकार तुम
उस जगह तो प्यार कोई, कर न तुमको पाएगा
फिर चले आओ वहाँ, कभी थे जहाँ इकबार तुम

प्यार की दुनिया को फिरसे, देखलो इकबार तुम

कुछ गलत और कुछ सही, ज़िन्दगी तो है यही
होगा क्या उस जीत का, ये ही गर जो ना रही  
जो नेता मरने को कहे, रहो उससे होशियार तुम
उसपार की जाने ना कोई, खुश रहो इसपार तुम

प्यार की दुनिया को फिरसे, देखलो इकबार तुम

जो भी सुलझा है जहाँ में, जंग से सुलझा नहीं
उलझा मगर ज़रूर है, तुम मानो या मानो नहीं
मारती है लकड़ी भी, गर बनाओगे हथियार तुम
नाव आगे खे ही लोगे, बनाओ उसे पतवार तुम

प्यार की दुनिया को फिरसे, देखलो इकबार तुम

कभी हारना कभी जीतना, ज़िन्दगी में आम है
हर हाल में पर मुस्कुराना, आदमी का काम है
जो करोगे सो भरोगे, ये तो जानते हो यार तुम  
प्यार का फिर ज़िन्दगी को, दे-ही-दो उपहार तुम

प्यार की दुनिया को फिरसे, देखलो इकबार तुम

मौत से ठगती है तुमको, ये तुम्हारी ज़िन्दगी
तुम देखना रूठे नहीं, तुमसे तुम्हारी ज़िन्दगी
शक्ल से तो प्यारे हो, अक्ल से समझदार तुम
खांमखां ही मौत से, खा ना जाना मार तुम

प्यार की दुनिया को फिरसे, देखलो इकबार तुम
मान जाओ आ भी जाओ, मत करो इंकार तुम
उस जगह तो प्यार कोई, कर न तुमको पाएगा
फिर चले आओ वहाँ, कभी थे जहाँ इकबार तुम

प्यार की दुनिया को फिरसे, देखलो इकबार तुम


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9 कविताप्रेमियों का कहना है :

M VERMA का कहना है कि -

कभी हारना कभी जीतना, ज़िन्दगी में आम है
हर हाल में पर मुस्कुराना, आदमी का काम है
मुस्कराना तो पडता ही है दुनियादारी जो निभानी है
सुन्दर रचना

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar का कहना है कि -

आलोक गौड़ को पहली बार पढ़ रहा हूँ।

इस कविता के माध्यम से उनका जो चित्र (कवि के रूप में) मेरे सामने उभरा है, उसके आधार पर मैं बेवाक रूप से कहना चाहूँगा कि उनके लेखन में अनेक आवश्यक किन्तु पारम्परिक संदेश हैं।

संदेशीय धरातल पर तो काफी कुछ सराहनीय है इस रचना में...लेकिन जो एक बिन्दु उनकी रचनाधर्मिता को कमज़ोर बना रहा है, वह है- सम्यक्‌ छंद-ज्ञान का अभाव! इसकी झलक प्रस्तुत रचना के हर ‘बंद’ से मिल रही है।

यदि आलोक बाबू छंद को साध लें, तो निखार आ सकता है उनके सृजन में! आशा है कि वे मेरी विनम्र राय को पूर्ण सकारात्मकता साथ लेंगे...तथास्तु!

manu का कहना है कि -

theek thaak hai...

jo bhi hai...

manu का कहना है कि -

theek thaak hai...

jo bhi hai...

निर्मला कपिला का कहना है कि -

प्यार की दुनिया को फिरसे, देखलो इकबार तुम
आलोक जी ने कविता के माध्यम से बहुत अच्छा सन्देश दिया है।घें बधाई।

महेन्‍द्र वर्मा का कहना है कि -

गीत शैली में रची गई एक अच्छी रचना।

कविता रावत का कहना है कि -

सुन्दर रचना

वाणी गीत का कहना है कि -

नफरत और हिंसा के बीच एक ऐसी अपील की बहुत आवश्यकता है ...
जिंदगी की ओर लौट आपने को प्रेरित करता खूबसूरत गीत !

सदा का कहना है कि -

कभी हारना कभी जीतना, ज़िन्दगी में आम है
हर हाल में पर मुस्कुराना, आदमी का काम है ।


बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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