फटाफट (25 नई पोस्ट):

Sunday, May 16, 2010

जमूरे की दुनिया और औरत का संतुलन


विद्वान कहते हैं कि मानव सभ्यता का लगभग समस्त इतिहास और साहित्य पुरूषों ने लिखे, पुरुषों ने रचे, इसलिए औरत का अतीत पुरुष की समझने की हद तक हम तक पहुँच पाया। और इतना ही नहीं पुरुष द्वारा महसूसा स्त्री का सच अपनी सारी विकरालता के साथ नहीं संग्रहित हो पाया, क्योंकि पुरुष ने उतना ही बताया जितने से उसकी सत्ता में कोई विक्षोभ न हो। 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध और 21 वीं सदी की शुरुआत में स्त्रियों के हाथ मे क़लम आई और धीरे-धीरे आधी दुनिया का वास्तविक सुख-दुःख हमारे समक्ष आने लगा। कवयित्री शशि सहगल की कुछ ऐसी ही कविताएँ हम आज लेकर उपस्थित हैं जो स्त्री को स्त्री होकर देखती हैं-


1॰ शादी


शशि सहगल
Shashi Sehgal
जन्‍मः 2 अक्‍तूबर, 1944, लाहौर (पाकिस्‍तान)
पहचानः कवि, आलोचक, अनुवादक
शिक्षाः एमए, एम लिट्‌, पीएच-डी (हिन्दी), दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय
कार्यक्षेत्रः रीडर, हिन्दी-विभाग, माता सुंदरी कॉलेज, दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय राउज़ एवेन्‍यू, नई दिल्‍ली-110002
प्रकाशित रचनाएँ‍-
काव्‍यः
 कविता लिखने की कोशिश में, पराग प्रकाशन, नई दिल्‍ली
 टुकड़ा-टुकड़ा वक़्‍त, किताबघर प्रकाशन, नई दिल्‍ली
 मौन से संवाद, नवराज प्रकाशन, नई दिल्‍ली
काव्‍यानुवादः
 मेरी साँईयाँ जियो (भाई वीर सिंह), साहित्‍य अकादमी, नई दिल्‍ली
 पब्‍बी (प्रभजोत कौर), साहित्‍य अकादमी, नई दिल्‍ली
संपादनः
 काव्‍य परिमल, किताबघर प्रकाशन, नई दिल्‍ली
आलोचना
 नई कविता में मूल्‍यबोध, अभिनव प्रकाशन, नई दिल्‍ली
 साहित्‍य विधाएँ, किताबघर प्रकाशन, नई दिल्‍ली
 रीतिमुक्‍त कवि घनानंद, किताबघर प्रकाशन, नई दिल्‍ली
 अन्‍वेषकः एक मॉडर्न क्‍लासिक, आर्य प्रकाशन मंडल, नई दिल्‍ली
सहयोगी लेखनः
 नवें दशक की कविता-यात्रा,
 पुनर्संभवा,
 बीसवीं सदी की महिला कविता
 अब तक (कहानी-संग्रह)
पताः एफ-101 राजौरी गार्डन, नई दिल्‍ली-110027
दूरभाष: 9868500565
लड़की बहुत खुश है
शादी है उसकी अगले हफ़्ते
घर में गहमागहमी
रात में गाना-बजाना
मोहल्‍ले की औरतें और भाभियाँ
रोज़ रात को सुहाग गाती है।
बाबुल ब्‍याहना मुझे उस घर में
जहाँ काली-भूरी हों साठ भैंसें
जमाऊँगी दही, निकालूँगी मक्‍खन
होंगी पाँचों उँगलियाँ घी में
और लड़की
हौले से भैंसों को सहलाने लगती है।

भाभियाँ फिर गाती हैं
बाबुल ब्‍याहना मुझे उस घर में
जहाँ पिता हो राजा दशरथ
माता कौशल्‍या रानी होवे
और लड़की
दशरथ-कौशल्‍या के पैर छूती महसूसती है
माता कौशल्‍या ममता से भर
उसे सीने से लगाये खड़ी है
कोमल सतरंगी सपनों में खोयी
वह, सबसे अव्‍वल कुलवधू बन गई है

जी होता है
झिंझोड़ कर जगा दूँ उसे
और कहूँ, आँखें खोल
ये सुहाग के गीत सुनने और
गाने तक ही भले हैं।
साठ भैंसों को पालती तेरी काया
तीस में ही साठ की हो जायेगी
और राजा दशरथ
अपने किसी लाभ के लिए
सह लेंगे पुत्र-विछोह।
माता-कौशल्‍या! तेरी आदर्श सास
राम के डर से
कभी भी साथ नहीं देगी तेरा
जब-जब राम परीक्षा लेगा तेरी
उसकी ममता राम को ही सही समझेगी
राजमाता का अभिमान
सदा राम का ही साथ देगा।

लक्ष्‍मण को वीर समझती तेरी सोच
मुँह के बल गिरेगी
जब गाभिन भाभी को अकेली
सुनसान जंगल में छोड़ आयेगा।

ऐ लड़की,
क्‍यों माँगती है सपनों का इन्‍द्रजाल
रात में बुने
मकड़ी के जाले पर पड़ी
इन्‍द्रधनुषी ओस जैसा।


2॰ संतुलन


ससुराल की
जिस दहलीज़ पर
कल, मेरे पिता ने कदम रखा था
वहाँ आज तुम खड़े हो
कल
वहीं आ कर
खड़ा हो जायगा तुम्‍हारा दामाद।
सोचती हूँ
क्‍या फ़र्क़ पड़ता है
पीढ़ियों के बदल जाने से

पिता की ऐंठन
जली रस्‍सी-सी
पड़ी है तुम्‍हारे सामने
आत्‍मविश्‍वास के पिरामिड-से
सीधे तने हुए
खड़े हो मेरे सामने।

विरासत में पाई
इन सभी चीज़ों को
और अधिक माँज कर
जब खड़ा हो जायेगा हमारा दामाद
तब
संतुलन का व्‍यर्थ प्रयास करती
तराज़ू के काँटे-सी
झुकती रहूँगी मैं
कभी इधर, कभी उधर


3॰ जमूरा


लड़का-लड़की मिलते हैं
मिलन बदलता जाता है नज़दीकियों में
और नज़दीकियाँ
रिश्‍ता बनाने को होती हैं आतुर
इसी आतुरता में
ख़ुद को समझदार समझती लड़की
प्‍यार से
पुकारती है उसे जमूरा
लड़का मुहब्‍बत में
तैयार है जमूरा बनने को
वह पूछती है
जमूरे! प्‍यार करेगा?
करेगा, बहुत करेगा
पैसा लायेगा
बहुत लायेगा
किसी और की तरफ़ देखेगा?
आँख फोड़ देना हुज़ूर
फिर मुझे कैसे देखेगा?
मन की आँखों से मालिक!
और लड़की
जमूरे की हो जाती है।

खेल चलता रहता है वैसे ही
बस जमूरा बदल जाता है
अब लड़की की बारी है
खेल दिखलायेगी?
दिखाऊँगी
प्‍यार करेगी
बहुत सारा
बच्‍चे पैदा करेगी?
जितने तू चाहे
मैं दूसरी के पास जाऊँगा, लड़ेगी?
हाँ लड़ूँगी
क्‍या बोला, लड़ेगी?
ठीक है
मैं तो जाऊँगा -
पर तू- दूसरे के पास नहीं जायेगी
मैं तो जाऊँगा
तू ज़हर खायेगी।


4॰ औरत


तस्‍वीर देखते
नहीं आता समझ
कौन किसे पीस रहा है?
चक्‍की को औरत
या औरत को चक्‍की!
रंग-बिरंगे परिधान
छनछनाती चूड़ियाँ
नहीं छिपा पातीं
भीतर की मायूसी
मत पीसो चक्‍की
छोड़ दो पीसना
पिसने से
ऐसे ही बच सकती हो तुम

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

10 कविताप्रेमियों का कहना है :

M VERMA का कहना है कि -

ऐ लड़की,
क्‍यों माँगती है सपनों का इन्‍द्रजाल
रात में बुने
मकड़ी के जाले पर पड़ी
इन्‍द्रधनुषी ओस जैसा।
नारी संत्रास की मानो कहानी लिख दी आपने. बहुत त्रासद है आज भी नारी की स्थिति. नगरों में बेशक हम धूप का चश्मा लगाई और मोबाईल पर बात करती नारी को देखकर स्वयं को तसल्ली दे लें.

manu का कहना है कि -

antim do rachnaaye bahut achchhi lagin...



khaaskar..
jamooraa....


chakki peesti aurat ne bhi man ko chhuaa...

तेजेन्द्र शर्मा का कहना है कि -

Shashi jee

Your poems are really true to life.
Congrats.

Tejendra Sharma

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

साठ भैंसों को पालती तेरी काया
तीस में ही साठ की हो जायेगी
और राजा दशरथ
अपने किसी लाभ के लिए
सह लेंगे पुत्र-विछोह।
माता-कौशल्‍या! तेरी आदर्श सास
राम के डर से
कभी भी साथ नहीं देगी तेरा
जब-जब राम परीक्षा लेगा तेरी
उसकी ममता राम को ही सही समझेगी
राजमाता का अभिमान
सदा राम का ही साथ देगा।

लक्ष्‍मण को वीर समझती तेरी सोच
मुँह के बल गिरेगी
जब गाभिन भाभी को अकेली
सुनसान जंगल में छोड़ आयेगा।

aurat ke dard ko bakhubi ukera hai.

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

पिता की ऐंठन
जली रस्‍सी-सी
पड़ी है तुम्‍हारे सामने
आत्‍मविश्‍वास के पिरामिड-से
सीधे तने हुए
खड़े हो मेरे सामने।
ऐंठन hee sabhee samasyao ki jad hai.

Dr. S.B. Gupta Gupta का कहना है कि -

-----क्या यह एक सत्य नहीं है कि आज तक समस्त शास्त्र, ग्रन्थ, नीति-नियम-निर्देश -शास्त्र , काव्य आदि, जिनका आप किसी भी बात में, तर्क में, व्याख्या, व्यवहार के लिये स्तरीय-प्रमाण की भान्ति प्रस्तुत करसकेन --सब पुरुषो ने ही लिखे हैं ---अखिर क्या बात थी व है कि स्त्रियों ने एसे महान ग्रन्थ नहीं लिखे न लिखरहीं हैं????????????

---शशि जी की कवितायें तो अच्च्ही व समयानुकूल हैं, भावुकता से पूर्ण चित्रण----परन्तु समुचित समाधान क्या है , यह वर्णन कहां है? हम क्या करें? क्या होना चाहिये. क्या चक्की पीसना ( या प्रतीक में--औरत द्वारा घर का कार्य छोड देना ही समाधान है.

rajkumar singh का कहना है कि -

सत्य का मनोवैज्ञानिक और सामाजिक धरातल पर यथार्थ की अनुभूति देती रचना.

Anand G.Sharma आनंद जी.शर्मा का कहना है कि -

मर्मभेदी कवितायेँ - मर्माहत हुआ - आपकी लेखनी को नमन

Dr. S.B. Gupta Gupta का कहना है कि -

क्या सत्य व यथार्थ वर्णन एवं मर्माहत ( अर्थात अभीतक आप मर्माहत नहीं थे,समस्या से अवगत भी नहीं थे यह कविता का गुणात्मक /सकारात्मक पक्ष है ); होने से समस्या का समाधन होरहा है

neera का कहना है कि -

सभी रचनाएं सशक्त और सुंदर!!

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)