फटाफट (25 नई पोस्ट):

Thursday, May 27, 2010

दीप देहरी पे मन बस जलाता रहा !!


मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में दहलीज पर,
सांतिये नेह के बस बनाता रहा
नैना तकते रहे सूनी पगडंडियाँ,
दीप देहरी पे मन बस जलाता रहा !!
तुम मिले तो लगा मन के हर कोन में,
फिर बसंती पवन का बसेरा हुआ
तुम मिले तो लगा की ग्रहण छट गया,
मन में फिर आस का इक सवेरा हुआ !
इस सवेरे के उगते हुए सूर्य पर,
अर्घ्य निज प्रेम का मैं चढाता रहा !!
दीप देहरी पे मन बस जलाता रहा !!
तुम मिले तो लगा प्रश्न हल हो गए,
वे जो मेरी तुम्हारी प्रतीक्षा में थे
तुम मिले तो लगा जैसे हट से गए,
सब वो संशय जो भावुक समीक्षा में थे !
फिर बनी प्राण , सुख, शान्ति, आधार तुम
मैं तुम्हे अंक भर मोक्ष पाता रहा !!
देहरी पे मन बस जलाता रहा !!
मौन उपमाएं हैं तुम को क्या मैं कहूं,
तुम ही पत्नी, सखा, प्रेमिका, हो प्रिये
हो मेरे गीत तुम, गीत में शब्द तुम,
तुम ही लय, भाव, तुम भूमिका हो प्रिये
मुक्त निज कंठ से, मन से हर मंच से,
तुम को गाता, तुम्ही को बुलाता रहा !!
दीप देहरी पे मन बस जलाता रहा !!

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

13 कविताप्रेमियों का कहना है :

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

khub jhala hai ye mann...badhiya prastuti ... bahut laybaddha aur samarpit geet ..

M VERMA का कहना है कि -

फिर बनी प्राण , सुख, शान्ति, आधार तुम
मैं तुम्हे अंक भर मोक्ष पाता रहा !!
बहुत खूब... सुन्दर

seema gupta का कहना है कि -

फिर बनी प्राण , सुख, शान्ति, आधार तुम
मैं तुम्हे अंक भर मोक्ष पाता रहा
" बहुत ही सुन्दर कविता"
regards

himani का कहना है कि -

behad sundar abhivyakti......jalte man ki aag ne shabdo ko bakhoobi roshni di hai

शारदा अरोरा का कहना है कि -

बहुत बढ़िया , जैसे मन के दिए टिमटिमा रहे हों , उमंग के , आशा के ।

manu का कहना है कि -

bhai..bahut bahut khoob....


pahli 4 line padhte hi majaa aa gayaa....

manu का कहना है कि -

bhai...
kamaal likhaa hai...


lay mein ksam se majaa aa gayaa....

manu का कहना है कि -

aap jo bhi koi ho..

aapka abhinandan.....

chhand mein baut bahut aanand aayaa.

Unknown का कहना है कि -

तुम मिले तो लगा मन के हर कोन में,
फिर बसंती पवन का बसेरा हुआ
तुम मिले तो लगा की ग्रहण छट गया,
मन में फिर आस का इक सवेरा हुआ !
इस सवेरे के उगते हुए सूर्य पर,
अर्घ्य निज प्रेम का मैं चढाता रहा !!
दीप देहरी पे मन बस जलाता रहा !!

बहुत ही सरल सहज एवं सुन्दर रचना आपको बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद।
विमल कुमार हेडा़

Ra का कहना है कि -

मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में दहलीज पर,
सांतिये नेह के बस बनाता रहा
नैना तकते रहे सूनी पगडंडियाँ,
दीप देहरी पे मन बस जलाता रहा !!

तुम ही पत्नी, सखा, प्रेमिका, हो प्रिये
हो मेरे गीत तुम, गीत में शब्द तुम,
तुम ही लय, भाव, तुम भूमिका हो प्रिये
मुक्त निज कंठ से, मन से हर मंच से,
तुम को गाता, तुम्ही को बुलाता रहा !!

वाह शानदार लिखा है ,,,अद्दभुत सृजन ,,सुन्दर रचना

सदा का कहना है कि -

फिर बनी प्राण , सुख, शान्ति, आधार तुम, सुन्‍दर शब्‍द रचना, गहरे भावों के साथ बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

बहुत खूब...
वाह!

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

तुम ही पत्नी, सखा, प्रेमिका, हो प्रिये
हो मेरे गीत तुम, गीत में शब्द तुम,
तुम ही लय, भाव, तुम भूमिका हो प्रिये
मुक्त निज कंठ से, मन से हर मंच से,
तुम को गाता, तुम्ही को बुलाता रहा !!
दीप देहरी पे मन बस जलाता रहा !!
उत्तम, बहुत अच्छा
काश यही भाव, जन-मन-गण में समाया होता,
देश में आतंक का नामो-निशान नहीं होता.

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)