मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में दहलीज पर,
सांतिये नेह के बस बनाता रहा
नैना तकते रहे सूनी पगडंडियाँ,
दीप देहरी पे मन बस जलाता रहा !!
तुम मिले तो लगा मन के हर कोन में,
फिर बसंती पवन का बसेरा हुआ
तुम मिले तो लगा की ग्रहण छट गया,
मन में फिर आस का इक सवेरा हुआ !
इस सवेरे के उगते हुए सूर्य पर,
अर्घ्य निज प्रेम का मैं चढाता रहा !!
दीप देहरी पे मन बस जलाता रहा !!
तुम मिले तो लगा प्रश्न हल हो गए,
वे जो मेरी तुम्हारी प्रतीक्षा में थे
तुम मिले तो लगा जैसे हट से गए,
सब वो संशय जो भावुक समीक्षा में थे !
फिर बनी प्राण , सुख, शान्ति, आधार तुम
मैं तुम्हे अंक भर मोक्ष पाता रहा !!
देहरी पे मन बस जलाता रहा !!
मौन उपमाएं हैं तुम को क्या मैं कहूं,
तुम ही पत्नी, सखा, प्रेमिका, हो प्रिये
हो मेरे गीत तुम, गीत में शब्द तुम,
तुम ही लय, भाव, तुम भूमिका हो प्रिये
मुक्त निज कंठ से, मन से हर मंच से,
तुम को गाता, तुम्ही को बुलाता रहा !!
दीप देहरी पे मन बस जलाता रहा !!
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
khub jhala hai ye mann...badhiya prastuti ... bahut laybaddha aur samarpit geet ..
फिर बनी प्राण , सुख, शान्ति, आधार तुम
मैं तुम्हे अंक भर मोक्ष पाता रहा !!
बहुत खूब... सुन्दर
फिर बनी प्राण , सुख, शान्ति, आधार तुम
मैं तुम्हे अंक भर मोक्ष पाता रहा
" बहुत ही सुन्दर कविता"
regards
behad sundar abhivyakti......jalte man ki aag ne shabdo ko bakhoobi roshni di hai
बहुत बढ़िया , जैसे मन के दिए टिमटिमा रहे हों , उमंग के , आशा के ।
bhai..bahut bahut khoob....
pahli 4 line padhte hi majaa aa gayaa....
bhai...
kamaal likhaa hai...
lay mein ksam se majaa aa gayaa....
aap jo bhi koi ho..
aapka abhinandan.....
chhand mein baut bahut aanand aayaa.
तुम मिले तो लगा मन के हर कोन में,
फिर बसंती पवन का बसेरा हुआ
तुम मिले तो लगा की ग्रहण छट गया,
मन में फिर आस का इक सवेरा हुआ !
इस सवेरे के उगते हुए सूर्य पर,
अर्घ्य निज प्रेम का मैं चढाता रहा !!
दीप देहरी पे मन बस जलाता रहा !!
बहुत ही सरल सहज एवं सुन्दर रचना आपको बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद।
विमल कुमार हेडा़
मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में दहलीज पर,
सांतिये नेह के बस बनाता रहा
नैना तकते रहे सूनी पगडंडियाँ,
दीप देहरी पे मन बस जलाता रहा !!
तुम ही पत्नी, सखा, प्रेमिका, हो प्रिये
हो मेरे गीत तुम, गीत में शब्द तुम,
तुम ही लय, भाव, तुम भूमिका हो प्रिये
मुक्त निज कंठ से, मन से हर मंच से,
तुम को गाता, तुम्ही को बुलाता रहा !!
वाह शानदार लिखा है ,,,अद्दभुत सृजन ,,सुन्दर रचना
फिर बनी प्राण , सुख, शान्ति, आधार तुम, सुन्दर शब्द रचना, गहरे भावों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।
बहुत खूब...
वाह!
तुम ही पत्नी, सखा, प्रेमिका, हो प्रिये
हो मेरे गीत तुम, गीत में शब्द तुम,
तुम ही लय, भाव, तुम भूमिका हो प्रिये
मुक्त निज कंठ से, मन से हर मंच से,
तुम को गाता, तुम्ही को बुलाता रहा !!
दीप देहरी पे मन बस जलाता रहा !!
उत्तम, बहुत अच्छा
काश यही भाव, जन-मन-गण में समाया होता,
देश में आतंक का नामो-निशान नहीं होता.
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