मेरी लाडो , मेरी लाडली चल बसी ,
सारे अरमान धरे के धरे रह गए!
जिनकी खातिर गई जान से लाडली
सब वो सामान धरे के धरे रह गए!!
कितनी मिन्नत से पाया था ये लक्ष्मी धन,
इक तपस्या-सी करके था पला उसे!
जितना चाहा उसे, उतना चाहा किसे,
खुद से पहले खिलाया निवाला उसे!
उसकी खातिर नयन जो सहेजे रहे,
वे स्वप्न नीर के संग ही बह गए!!
सारे अरमान धरे के धरे रह गए!!
उसको दिन रात बढ़ते हुए देख कर,
लोग कहते की बिटिया बड़ी हो ग!
कल तलक अपने घुटनों पे चलती थी जो,
वो पिता जितनी हो संग खड़ी हो गई हो गई!!
अब कलेजे का टुकड़ा पराया करो
मन से सम्बन्धी सारे यही कह गए!!
सारे अरमान धरे के धरे रह ग !!
हाथ पीले हुए शहनाई बजी,
भावरें पड़ के उसकी बिदाई हुई!
जिसको सीने से हरदम लगा कर रखा,
एक पल में वो बिटिया पराई हुई!!
उस बिदाई, जुदाई को नीयति समझ,
वक्ष पर धर शिला हँस के हम सह गए!!
सारे अरमान धरे के धरे रह गए!!
जिसकी डोली उठी चाँद दिन पहले, आज
उसकी अर्थी उठाये हुए बाप है!
टी.वी॰ फ्रिज के लिए बेटियाँ जल रहीं,
हे विधाता तेरा कैसा इन्साफ है????
यत्र नारी पूज्यन्ते तत्र रमयंते देवता
ये शब्द कहने के ही रह गए?????
सारे अरमान धरे के धरे रह गए !!
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
जिसकी डोली उठी चाँद दिन पहले,
आज उसकी अर्थी उठाये हुए बाप है!
बहुत मर्मिक रचना
सुन्दर और भावपूर्ण
मार्मिक संवादों से भरी बेहद भावपूर्ण रचना..समाज की कुछ कटु सच्चाइयों को उजागर करती प्रस्तुति...बढ़िया लगी..धन्यवाद
सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद।
विमल कुमार हेडा़
फटाफट अपनी राय दें
कविता का कारण जाने बिना फ़टाफ़ट राय नहीं दे सकते...
कवि के लिए जितना आसान फ़टाफ़ट कविता कह देना है..
उतना फ़टाफ़ट कम से कम एक भूतपूर्व " यूनी - पाठक" के लिए मुश्किल है......
अपनी सही राय देना...
sahi rai dein to kavita mein abhi kuch kaam krna baaki hai :)
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