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Thursday, April 29, 2010

सपने


मैं दिन में
सपने देखता था,
क्यूँ कि
जलना होता था उन्हें,
रातों को रोशन करने के लिए |
गर रातें रोशन न होती तो
कैसे पढ़ पाती मेरी उंगलियाँ वे इबारतें ,
जो तुम्हारी आँखों ने,
मेरी पीठ पर लिखी थी |
कैसे देखा पाता वह सोंधी महक
जो, तुम आँगन के नीम पर
टांग कर चली गई थी |
इतना ही नही,
रात भर जो डाकियाँ,
दौड़ता रहता था धड़कनों की चिट्ठियां बांटने
उसे भी तो हांशियें पर उग आये
काँटों से बचाना होता था |
सिसकियाँ रेंगती थी,
खोये लम्हों को तलाश में,
उन्हें फूलों की किरचों से बचाना होता था |
लेकिन ना जाने कब चुपचाप
उम्र का हिमनद
पसरता चला गया और,
मन की सरकार ने
यादों की खेती
अवैध घोषित कर दी
बस ! तबसे मैंने
दिन में सपने देखने बंद कर दिए,
अब में रातों को
सपने देखता हूँ
और दिन में गमछे सा
कंधे पर टांक देता हूँ,
पसीना पोंछने के लिए |
*
vinay k. joshi

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8 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

विनय वाकई जादू है तुम्हारी कविता...डूबते हुए आनंद आया..बहुत-बहुत बधाई औए शुभ कामना!

Unknown का कहना है कि -

मैं दिन में
सपने देखता था,
क्यूँ कि
जलना होता था उन्हें,
रातों को रोशन करने के लिए |

सुन्दर ख्वाब विनय जी को बहुत बहुत बधाइ धन्यवाद
विमल कुमार हेडा

Razia का कहना है कि -

मन की सरकार ने
यादों की खेती
अवैध घोषित कर दी

सुन्दर बिम्ब दिया है.
बेहतरीन

Rajesh Sharma का कहना है कि -

kavita achhi hai. badhai.eisa he likhte rahen

PRAVEEN SHARMA का कहना है कि -

अब में रातों को
सपने देखता हूँ
और दिन में गमछे सा
कंधे पर टांक देता हूँ,
पसीना पोंछने के लिए

behtarin. kavita ek jaadu hai dil me utar gai पसीना पोंछने के लिए jivan ki kadavi sacchi bayan kar di.

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

ek makhmali ehsaas samete rachna hai ye...behad khas khushbu liye hai ye sapna.paseena bhi mehaq uthta hoga..jab sapna gamcha banta hoga

ritu का कहना है कि -

jalte hue sapne hi prakash dete hain.
bahot hi sundar

दिपाली "आब" का कहना है कि -

outstanding..
Kya shaandar kavita kahi hai..
Aanand aa gaya padh kar
bahuut badhai

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