मैं दिन में
सपने देखता था,
क्यूँ कि
जलना होता था उन्हें,
रातों को रोशन करने के लिए |
गर रातें रोशन न होती तो
कैसे पढ़ पाती मेरी उंगलियाँ वे इबारतें ,
जो तुम्हारी आँखों ने,
मेरी पीठ पर लिखी थी |
कैसे देखा पाता वह सोंधी महक
जो, तुम आँगन के नीम पर
टांग कर चली गई थी |
इतना ही नही,
रात भर जो डाकियाँ,
दौड़ता रहता था धड़कनों की चिट्ठियां बांटने
उसे भी तो हांशियें पर उग आये
काँटों से बचाना होता था |
सिसकियाँ रेंगती थी,
खोये लम्हों को तलाश में,
उन्हें फूलों की किरचों से बचाना होता था |
लेकिन ना जाने कब चुपचाप
उम्र का हिमनद
पसरता चला गया और,
मन की सरकार ने
यादों की खेती
अवैध घोषित कर दी
बस ! तबसे मैंने
दिन में सपने देखने बंद कर दिए,
अब में रातों को
सपने देखता हूँ
और दिन में गमछे सा
कंधे पर टांक देता हूँ,
पसीना पोंछने के लिए |
*
vinay k. joshi
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
विनय वाकई जादू है तुम्हारी कविता...डूबते हुए आनंद आया..बहुत-बहुत बधाई औए शुभ कामना!
मैं दिन में
सपने देखता था,
क्यूँ कि
जलना होता था उन्हें,
रातों को रोशन करने के लिए |
सुन्दर ख्वाब विनय जी को बहुत बहुत बधाइ धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
मन की सरकार ने
यादों की खेती
अवैध घोषित कर दी
सुन्दर बिम्ब दिया है.
बेहतरीन
kavita achhi hai. badhai.eisa he likhte rahen
अब में रातों को
सपने देखता हूँ
और दिन में गमछे सा
कंधे पर टांक देता हूँ,
पसीना पोंछने के लिए
behtarin. kavita ek jaadu hai dil me utar gai पसीना पोंछने के लिए jivan ki kadavi sacchi bayan kar di.
ek makhmali ehsaas samete rachna hai ye...behad khas khushbu liye hai ye sapna.paseena bhi mehaq uthta hoga..jab sapna gamcha banta hoga
jalte hue sapne hi prakash dete hain.
bahot hi sundar
outstanding..
Kya shaandar kavita kahi hai..
Aanand aa gaya padh kar
bahuut badhai
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