मेरा लुट गया है सब कुछ.. मेरे पास कुछ नहीं है..
ना ही आसमां बचा है.. ना एक गज जमीं है..
सांसों की सिस्कियाँ ही.. देती हैं बस सुनाई..
मेरी मुफलिसी को देखा.. तो मौत भी ना आई..
मेरी मुफलिसी को देखा................
हुए सपने सब छलावे.. और अपने सब पराये..
रिश्ते भी ऐसे रिसते.. कोइ घाव रिसता जाये..
गमे दास्ताँ लिखी तो.. अश्को ने आ मिटाई..
मेरी मुफलिसी को देखा.. तो मौत भी ना आई..
मेरी मुफलिसी को देखा................
शमशान सी थी महफिल.. गाये जो गीत हंसकर..
कोई न देखता था.. पंजों के बल उचककर..
मिलीं तालियाँ गजब की.. गमे दास्तां सुनाई..
मेरी मुफलिसी को देखा.. तो मौत भी ना आई..
मेरी मुफलिसी को देखा................
जो थीं हंसी की बातें.. उडने लगीं हंसी में..
मैंने सुना है ऐसा.. होता है मुफलिसी में..
मेरे साथ जो हुआ तो.. हुई कौन सी बुराई..
मेरी मुफलिसी को देखा.. तो मौत भी ना आई..
मेरी मुफलिसी को देखा................
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4 कविताप्रेमियों का कहना है :
कोई न देखता था.. पंजों के बल उचककर..
मिलीं तालियाँ गजब की.. गमे दास्तां सुनाई..
bahut khoo bahut sunder
हुए सपने सब छलावे.. और अपने सब पराये..
रिश्ते भी ऐसे रिसते.. कोइ घाव रिसता जाये..
गमे दास्ताँ लिखी तो.. अश्को ने आ मिटाई..
मेरी मुफलिसी को देखा.. तो मौत भी ना आई..
मेरी मुफलिसी को देखा................
बहुत सुंदर भाव.....दिल से निकली हुई एक सुंदर रचना...हार्दिक बधाई!!!!
दर्दनाक.
इसे पढ़कर मुफलिसी के दिन याद आ ही जाते हैं.
हुए सपने सब छलावे.. और अपने सब पराये..
रिश्ते भी ऐसे रिसते.. कोइ घाव रिसता जाये..
गमे दास्ताँ लिखी तो.. अश्को ने आ मिटाई..
मेरी मुफलिसी को देखा.. तो मौत भी ना आई..
kitna theek likha hai .aap ko bahut bahut badhai
saader
rachana
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