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Tuesday, December 08, 2009

गाली


एक बुढ़िया कांपते सुरों में
दे रही थी गाली ब्रह्मा, विष्णु, महेश को
उसकी झुर्रियों में अटके थे
शर्मीलेपन के कई कण।
‘सासू की मार’ भूल गई फुलमतिया
नए पाहुन को गरियाने का आमंत्रण पाकर
और रसिक राजा दशरथ से मोछमुंडा देवर तक
सरपट दौड़ने लगे गाली के सुर।
वंशी, बैल, पगहा, पगड़ी से लेकर
समय पर बारिश न देने वाले, सरउ भगवान तक की
मलामत करने वाला, पुराना दोस्त मुझसे कतराने लगा था
क्योंकि गाली की लाली चटक थी उसके होठों पे।
गाँव के बुजुर्गों को फीका लग रहा था खाना
दोष दे रहे थे गाँव वालों के संस्कार को।
गनेश की बहू, ऐसी तन्मयता से जोड़ रही थी
रिश्तेदारों के नए संबंध
कि बेमानी हो गयी थी
आंचल पकड़ रोते बच्चे की आवाज।

इंडिया गेट जैसे पेट वाले भसुरजी ने
गवनिहारिन को दिए, दो कड़कड़ सौ टकिया नोट।
बनारस के बिरला छात्रावास की छात्र ने
थाली पीट-पीट नाचते हुए, फागुन की एक रात में
लैंगिक संबंधों पर किया शोधकार्य
सुबह गले पर चूना चमक रहा था
विजय के प्रतीक चिह्न की तरह।
मंत्री जी चेले को बता रहे थे-
कुछ भाव गिर गया है इस साल
अस्सी की होली में कमबख्तों ने नहीं लिया मेरा नाम।
महिनों से मुँह फुलाए जावेद भाई को
कबीरा के बहाने इतना गरियाया महेश पंडित ने
कि ‘ससुरा बुढ़ौती में पगला गया है’
कहते हुए गले लगाना ही पड़ा।

सुंदर राग में जी भर पाहुनों को गरिया लेने के बाद भी
बहुत कुछ बचा रह गया था
जिसे अँचरा के खूँट में बाँध कर
घर ले गई रधिया।
और जिसे कई दिनों तक चभुलाते रहे
पोपले मुंह वाले चचिया ससुर।

मुई! जाने कैसी थी उस बच्चे की गाली
कि धू-धू जलने लगा पूरा शहर
जिसे बुझा रहे हैं लोग, एक दूसरे के ख़ून से।


--प्रमोद कुमार तिवारी

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5 कविताप्रेमियों का कहना है :

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

गाली-गाली में फर्क होता है
एक से आनंद तो दूसरे से......!

मुई! जाने कैसी थी उस बच्चे की गाली
कि धू-धू जलने लगा पूरा शहर
जिसे बुझा रहे हैं लोग, एक दूसरे के ख़ून से।
--बहुत खूब.

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

bhagwaan ko bhi nahi chhoda dadi ji ne...majedaar rachana..badhayi..prmod ji..3 din ke intzaar ke baad aayi hindyugm par badhiya rachana..

Prem का कहना है कि -

bahut khub!!! bhadesh shabdo me deshi chaunk ke saath parosi gayi chatakhedaar parantu gambhir kawitaa. Badhhai, nishchay badhai!

अभिन्न का कहना है कि -

एक बुढ़िया कांपते सुरों में
दे रही थी गाली ब्रह्मा, विष्णु, महेश को
.....
चलो किसी ने तो पंगा लिया दुनिया को बेवकूफ बनाने वालों से
...
मुई! जाने कैसी थी उस बच्चे की गाली
कि धू-धू जलने लगा पूरा शहर
जिसे बुझा रहे हैं लोग, एक दूसरे के ख़ून से।
... विचारशील कविता

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

मुई! जाने कैसी थी उस बच्चे की गाली
कि धू-धू जलने लगा पूरा शहर
जिसे बुझा रहे हैं लोग, एक दूसरे के ख़ून से।
gaali ki madhurata v katuta ka sundar chitran.

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