बूढ़े जब छड़ी बगल में दबाकर
लौट रहे होते हैं मॉर्निंग वाक से,
तब अक्सर फंदी होती हैं बूढ़ी औरतें
अपने रचे-बसे संसार के विस्तार में।
जब वे चाय की चुस्की के साथ
बांचते है अखबार की सुर्खियाँ ,
बूढ़ी औरतें अपनी झुकी कमर के साथ
सुबह की धूप के लिए बाँध रही होती हैं
मलमल अपनी अचार के मर्तबानों पर।
जब 'वे' च्वनप्राश के साथ ले रहे होते हैं
बादाम के पांच दाने और थोडा सा दूध,
बूढ़ी औरतें बना रहीं होती हैं अपने पोतों
की फरमाइश पर दाल के पराठे।
जब ' वे' नाश्ते के बाद फरमा रहे होते हैं आराम
बूढ़ी औरतें अपने घुटने के दर्द के साथ
ऊँची चौकी पर बैठ कर रही होती हैं
दुर्गा सप्तशती का पाठ।
जब 'वे' हो रहे होते हैं संसार से विरक्त
बूढ़ी औरतें झुर्रियों वाली पोपली मुस्कान के साथ
कर रही होती हैं नयी पीढ़ी का आह्वान.
---स्मिता मिश्रा
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
बूढ़े जब छड़ी बगल में दबाकर
लौट रहे होते हैं मॉर्निंग वाक से,
तब अक्सर फंसी होती हैं बूढ़ी औरतें
अपने रचे-बसे संसार के विस्तार में।
.....
जब 'वे' हो रहे होते हैं संसार से विरक्त
बूढ़ी औरतें झुर्रियों वाली पोपली मुस्कान के साथ
कर रही होती हैं नयी पीढ़ी का आह्वान.
बिलकुल सही - सजीव चित्रण - हमको (बूढों को) सीख लेनी चाहिए - स्मिता जी बधाई, कितनी सलीके से आपने बड़ी बात कह दी.
कितना अलग और बढ़िया बात कही आपने कविता में एक बिल्कुल एक नई कहानी कहती हुई आगे बढ़ती है..
बूढ़ी औरतों के जीवन की कहानी ..बेहद खूबसूरत प्रस्तुति....बढ़िया रचना..बधाई
क्या बात है ..एक दम सही कहा आपने..और एकदम नये तरीके से...
बहुत उम्दा
क्या बात है..आज अचानक आपकी कविता से दादी की याद आ गयी..हां ऐसी ही तो थी मेरी दादी...काश आज वे जिन्दा होतीं...घर-घर की कहानी है यह स्मिता जी...इतनी प्यारी रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई !
जब 'वे' हो रहे होते हैं संसार से विरक्त
बूढ़ी औरतें झुर्रियों वाली पोपली मुस्कान के साथ
कर रही होती हैं नयी पीढ़ी का आह्वान.
यही तो फर्क है. नयी पीढी का आह्वान पोपली मुस्कान जिस संजीदगी से करती है और कोई नहीं.
बूढी औरतें कर रही होती हैं नयी पीढी का आह्वान ।
स्मिता जी ने बहुत ही चतुराई से न सिर्फ एक बूढी के शानदार चित्रण के साथ-साथ नई पीढी को भी सचेत करने की कोशिश की है। बहुत ही गहराई के साथ किया गया यह अध्ययन कवि की सूझ-बूझ को भी दर्शाता है। स्मिताजी ने बहुत ही खूबसुरती से औरत की एक अवस्था को सजीव रूप दिया है। स्मिता जी को बहुत-बहुत बधाई।
किशोर कुमार जैन गुवाहाटी असम
कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।
bahut bahut bahut achaa..saadaa..siidhaa...aur shudh nirikhan ...likhtii rahiye...main aapko follow kar raha hoon...Big badhaii.
बहुत सुंडर है ये कविता। छवि सी उंकेरती। स्मिता मिश्रा को बधाई।
बहुत सुन्दर
आभार ..........
संवेदनशील एवं मार्मिक रचना के लिए हार्दिक बधाई।
bahut hi marmik rachna smita ji
बूढी औरतो का अपने परिवार के साथ लगाव को अच्छी तरह से वर्णित किया बहुत अच्छा लगा
धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
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