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Saturday, December 05, 2009

बूढ़ी औरतें


बूढ़े जब छड़ी बगल में दबाकर
लौट रहे होते हैं मॉर्निंग वाक से,
तब अक्सर फंदी होती हैं बूढ़ी औरतें
अपने रचे-बसे संसार के विस्तार में।

जब वे चाय की चुस्की के साथ
बांचते है अखबार की सुर्खियाँ ,
बूढ़ी औरतें अपनी झुकी कमर के साथ
सुबह की धूप के लिए बाँध रही होती हैं
मलमल अपनी अचार के मर्तबानों पर।

जब 'वे' च्वनप्राश के साथ ले रहे होते हैं
बादाम के पांच दाने और थोडा सा दूध,
बूढ़ी औरतें बना रहीं होती हैं अपने पोतों
की फरमाइश पर दाल के पराठे।

जब ' वे' नाश्ते के बाद फरमा रहे होते हैं आराम
बूढ़ी औरतें अपने घुटने के दर्द के साथ
ऊँची चौकी पर बैठ कर रही होती हैं
दुर्गा सप्तशती का पाठ।

जब 'वे' हो रहे होते हैं संसार से विरक्त
बूढ़ी औरतें झुर्रियों वाली पोपली मुस्कान के साथ
कर रही होती हैं नयी पीढ़ी का आह्वान.

---स्मिता मिश्रा

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

बूढ़े जब छड़ी बगल में दबाकर
लौट रहे होते हैं मॉर्निंग वाक से,
तब अक्सर फंसी होती हैं बूढ़ी औरतें
अपने रचे-बसे संसार के विस्तार में।
.....
जब 'वे' हो रहे होते हैं संसार से विरक्त
बूढ़ी औरतें झुर्रियों वाली पोपली मुस्कान के साथ
कर रही होती हैं नयी पीढ़ी का आह्वान.

बिलकुल सही - सजीव चित्रण - हमको (बूढों को) सीख लेनी चाहिए - स्मिता जी बधाई, कितनी सलीके से आपने बड़ी बात कह दी.

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

कितना अलग और बढ़िया बात कही आपने कविता में एक बिल्कुल एक नई कहानी कहती हुई आगे बढ़ती है..
बूढ़ी औरतों के जीवन की कहानी ..बेहद खूबसूरत प्रस्तुति....बढ़िया रचना..बधाई

अपूर्व का कहना है कि -

क्या बात है ..एक दम सही कहा आपने..और एकदम नये तरीके से...
बहुत उम्दा

Anonymous का कहना है कि -

क्या बात है..आज अचानक आपकी कविता से दादी की याद आ गयी..हां ऐसी ही तो थी मेरी दादी...काश आज वे जिन्दा होतीं...घर-घर की कहानी है यह स्मिता जी...इतनी प्यारी रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई !

M VERMA का कहना है कि -

जब 'वे' हो रहे होते हैं संसार से विरक्त
बूढ़ी औरतें झुर्रियों वाली पोपली मुस्कान के साथ
कर रही होती हैं नयी पीढ़ी का आह्वान.
यही तो फर्क है. नयी पीढी का आह्वान पोपली मुस्कान जिस संजीदगी से करती है और कोई नहीं.

Kishore Kumar Jain का कहना है कि -

बूढी औरतें कर रही होती हैं नयी पीढी का आह्वान ।
स्मिता जी ने बहुत ही चतुराई से न सिर्फ एक बूढी के शानदार चित्रण के साथ-साथ नई पीढी को भी सचेत करने की कोशिश की है। बहुत ही गहराई के साथ किया गया यह अध्ययन कवि की सूझ-बूझ को भी दर्शाता है। स्मिताजी ने बहुत ही खूबसुरती से औरत की एक अवस्था को सजीव रूप दिया है। स्मिता जी को बहुत-बहुत बधाई।
किशोर कुमार जैन गुवाहाटी असम

मनोज कुमार का कहना है कि -

कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।

Safarchand का कहना है कि -

bahut bahut bahut achaa..saadaa..siidhaa...aur shudh nirikhan ...likhtii rahiye...main aapko follow kar raha hoon...Big badhaii.

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी का कहना है कि -

बहुत सुंडर है ये कविता। छवि सी उंकेरती। स्मिता मिश्रा को बधाई।

Pushpendra Singh "Pushp" का कहना है कि -

बहुत सुन्दर
आभार ..........

प्रमोद कुमार तिवारी का कहना है कि -

संवेदनशील एवं मार्मिक रचना के लिए हार्दिक बधाई।

satyarafi का कहना है कि -

bahut hi marmik rachna smita ji

Anonymous का कहना है कि -

बूढी औरतो का अपने परिवार के साथ लगाव को अच्छी तरह से वर्णित किया बहुत अच्छा लगा
धन्यवाद
विमल कुमार हेडा

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