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Thursday, October 01, 2009

एक नव-वधु का आज फिर दूसरे जहाँ में दीदार है


प्रतियोगिता की तेरहवीं कविता की रचयित्री प्रियंका चित्रांशी, 'प्रिया' नाम से कविताएँ लिखती हैं। 17 फरवरी को लखनऊ में जन्मी प्रिया एडवांस डिप्लोमा इन कंप्यूटर ऍप्लिकेशन तथा भारतीय बीमा संस्थान, मुंबई से लाईसेन्सिएट सर्टिफ़ाइड (स्नातक) वर्तमना में एम. बी.ए. की पढ़ाई कर रही हैं। कविता का शौक इन्हें कब लगा, इन्हें ठीक से याद नहीं। पर हमेशा से कविताओं ने आकर्षित किया। हमेशा पढ़ते-पढ़ते कॉपी के पीछे के पन्नों पर कुछ लिख दिया करती और कुछ नजदीकी दोस्तों को सुनाया करती थी। वो सुनते और वाह-वाह करते, उनलोगों की प्रशंसा इनके मन में अपार आनंद भर देती ......बस इसी तरह शुरूवात हुई इनके लेखन की। लिखा तो बहुत पर कभी अपनी रचनाओं का संकलन नहीं किया ... कबाड़ी के हाथों बिकी उन नोटबुक्स पर लिखी इनकी कृतियों पर किसी ने समोसे खाए होंगे, तो किसी ने भेलपुरी। वक़्त के साथ ये शौक भी दम तोड़ चुका था, इनकी लेखनी भी सृजन कर सकती हैं पूरी तरह भूल चुकी थीं ये। पर वक़्त ने फिर करवट ली, एक खूबसूरत इत्तफाक हुआ, डॉ॰ कुमार विश्वास से मुलाकात हुई ....छोटी सी मुलकात, गहरा असर डाल गई, दबा हुआ शौक अक्षरों के रूप में बाहर निकला और इनकी लेखनी को गति मिल गई। स्कूल, कॉलेज और ऑफिस में समारोहों में कविता पाठ किया हैं।

कविता- बूँद

अंजाम से बेखबर बूँद जब आसमां से चलती है
कभी ज़मी उसकी राह तकती है,
तो कभी सीप उसके आने से डरती है,
फ़ना होना तो उसका मुक्कदर है,
फिर भी जिंदगी से प्यार करती है.

गिरी एक पत्ते पे तो शबनम बनी,
शायर की नज़र पड़ी तो ग़ज़ल बनी,
सूरज ने जो रोशनी से जो जलाना चाहा
बन तारे उसने धरा को सजाना चाहा,

नन्ही सी उम्र में सूरज को चुनौती दे दी,
जाते-जाते जहाँ को निशानी दे दी,
समंदर के पानी में मोती बन वो रहती है,
किसी के आँखों में दरिया बन वो बहती है,

कलियाँ ओस चख चटक जाती है,
तितलियाँ रस पी जवां हो जाती है,
पेड़ नई कोंपले रख नहाने को तैयार है,
बादल फिर धरा को भिगोने को बेताब है।

बूँद पलकों पे आंसू सजा बाबुल से जुदा होगी फिर,
सैया संग, उमंग ले भारी मन से विदा होगी फिर,
"धरा ससुराल" बहार लिए स्वागत के लिए तैयार है,
एक नव-वधु का आज फिर दूसरे जहाँ में दीदार है


प्रथम चरण मिला स्थान- बीसवाँ


द्वितीय चरण मिला स्थान- अठारहवाँ

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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

छोटी सी मुलाकात सही में असर कर गई प्रिया जी...खूबसूरत रचना के लिए बधाई!

Manju Gupta का कहना है कि -

सकारात्मक प्रेरणाप्रद विसवास जी के कारण आप की नये साहित्यिक संसार में आप की सुंदर कविता हम तक पहुंची .बधाई .

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

कभी ज़मी उसकी राह तकती है,
तो कभी सीप उसके आने से डरती है,
.........
ज़िन्दगी की प्यास बुझती है
सीप में मोती-सी ज़िन्दगी मिलती है.......
और एक बूंद सागर बन जाती है
तुम्हारी कलम तक आकर ......

Akhilesh का कहना है कि -

yeh kavita kai falak rakti hai. yeh kewal sabdik uthal puthal nahi hai, arth hai , bhaav hai , pathniyata hai.

thodi bahut lay ke saath samsya ho sakti hai par weh kavita mein akharti nahi hai.

Behtareen prayaas ke liye badhayee.

मनोज कुमार का कहना है कि -

अच्छे शब्दों से गुंथी हुई भावपूर्ण कविता। बधाई।

शोभना चौरे का कहना है कि -

prkrti ki anupm bhet ki ki sundar vyakhya krti hui sundar kvita boond
bhut achhi lgi .
badhai

Vandana Singh का कहना है कि -

बूँद पलकों पे आंसू सजा बाबुल से जुदा होगी फिर,
सैया संग, उमंग ले भारी मन से विदा होगी फिर,
"धरा ससुराल" बहार लिए स्वागत के लिए तैयार है,
एक नव-वधु का आज फिर दूसरे जहाँ में दीदार है

वाह ! गागर में सागर भर डाला ,या सागर को गागर कर डाला
मैं किन शब्दों में कहूं तुम्हे ..तुमने सच में गजब कर डाला ...
बहुत सुंदर कविता है प्रिया...ऐसे ही लिखती रहों

प्रिया का कहना है कि -

आप सब ने जो प्रतिक्रिया के माध्यम से हमारी हौसलाअफजाई की ...उसका मन से शुक्रिया . अपने स्नेह का अमृत बस यूही बरसाते रहिये.

सस्नेह
"प्रिया "

richa का कहना है कि -

"अंजाम से बेखबर बूँद जब आसमां से चलती है
कभी ज़मी उसकी राह तकती है,
तो कभी सीप उसके आने से डरती है,
फ़ना होना तो उसका मुक्कदर है,
फिर भी जिंदगी से प्यार करती है."


बहुत ही खूबसूरत ख़्याल... मन प्रसन्न हो गया पढ़ कर... इश्वर से यही प्रार्थना है तुम्हारी ये लेखनी सदा यूँ ही कविताओं के मोती बिखेरती रहे...

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

गिरी एक पत्ते पे तो शबनम बनी,
शायर की नज़र पड़ी तो ग़ज़ल बनी,
सूरज ने जो रोशनी से जो जलाना चाहा
बन तारे उसने धरा को सजाना चाहा,.......
वाह,वाह......बहुत खूबसूरत संयोजन

Shamikh Faraz का कहना है कि -

आपने बहुत ही खूबसूरती के साथ नववधू और बूँद को relate किया. आपका अंदाज़ बहुत शानदार लगा. रचना में सुन्दर भाव है.

गिरी एक पत्ते पे तो शबनम बनी,
शायर की नज़र पड़ी तो ग़ज़ल बनी,
सूरज ने जो रोशनी से जो जलाना चाहा
बन तारे उसने धरा को सजाना चाहा

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