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Thursday, October 29, 2009

दिनकर कभी अस्त नहीं होता


मौज का महल ध्वस्त नहीं होता
नूरे मुन्तजिर पस्त नहीं होता

शब् धरती की अपनी करनी है
दिनकर कभी अस्त नहीं होता

ज़ुल्म कही भी हो व्यथित होता है
सुखनवर कभी व्यस्त नहीं होता

झुकता रहा सज़दे में हरबार मगर
कही सर तो कही दस्त नहीं होता

फकीरी नहीं होती हमसफ़र जिसकी
शाह होता है मगर मस्त नहीं होता

बेतरतीब अश'आर पेश है, हर कोई
वियाकरण का अभ्यस्त नहीं होता

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14 कविताप्रेमियों का कहना है :

Harihar का कहना है कि -

झुकता रहा सज़दे में हरबार मगर
कही सर तो कही दस्त नहीं होता
वाह क्या कहने विनय जी !

Anonymous का कहना है कि -

bhai wah!
फकीरी नहीं होती हमसफ़र जिसकी
शाह होता है मगर मस्त नहीं होता
शब् धरती की अपनी करनी है
दिनकर कभी अस्त नहीं होता

khyal bahut umda hai vajan bhi theek hai fir bhi kuchh khatak raha hai... aap dekhiye ki kya hai jo khatak raha hai
ज़ुल्म कही भी हो व्यथित होता है
सुखनवर कभी व्यस्त नहीं होता
बेतरतीब अश'आर पेश है, हर कोई
वियाकरण का अभ्यस्त नहीं होता
shayad ye do sher hain jo kuchh khatak rahe hain

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

शब् धरती की अपनी करनी है
दिनकर कभी अस्त नहीं होता,

फकीरी नहीं होती हमसफ़र जिसकी
शाह होता है मगर मस्त नहीं होता

Behad umda bhav..sundar rachana ..dhanywaad

Pritishi का कहना है कि -

ज़ुल्म कही भी हो व्यथित होता है
सुखनवर कभी व्यस्त नहीं होता
...
..

बेतरतीब अश'आर पेश है, हर कोई
वियाकरण का अभ्यस्त नहीं होता

कहना पड़ेगा .. बड़े "चतुर" शे'र !
बहुत खूब !

God bless
RC

rachana का कहना है कि -

बहुत खूब सही बातें लिखीं है .शब् धरती की अपनी करनी है
दिनकर कभी अस्त नहीं होता
फकीरी नहीं होती हमसफ़र जिसकी
शाह होता है मगर मस्त नहीं होता
खास कर ये तो बहुत ही खूब है
सादर
रचना

Pritishi का कहना है कि -

एक टिपण्णी "मिस" हो गयी थी, माफ़ी चाहूंगी

फकीरी नहीं होती हमसफ़र जिसकी
शाह होता है मगर मस्त नहीं होता

मुझे लगता था के यदि 'फकीरी' हमसफ़र रही हो तो शाह मस्त नहीं होगा ... 'फकीरी' हमसफ़र ना रही हो तो शाह के 'मस्त' होने के आसार अधिक होंगे .. शायद ? .. हो सकता है मैं गलत हूँ ... शेर समझना चाहूंगी ! यहाँ 'मस्त' का मतलब सिरचढा/मदमस्त शाह, या फकीर की तरह मस्तमौला ?

RC

निर्मला कपिला का कहना है कि -

फकीरी नहीं होती हमसफ़र जिसकी
शाह होता है मगर मस्त नहीं होता

बेतरतीब अश'आर पेश है, हर कोई
वियाकरण का अभ्यस्त नहीं होता
विनय जी लाजवाब बधाई

मनोज कुमार का कहना है कि -

इस ग़ज़ल को पढ़ कर मैं वाह-वाह कर उठा।

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

झुकता है हर बार सज़दे में मगर
कहीं सर तो कहीं दस्त नहीं होता
------------------------------
फकीरी नहीं होती हमसफर जिसकी
शाह होता है मगर मस्त नहीं होता
-------------------------------
--वाह ! क्या शेर हैं!!

वो शेर लिखते हैं जोशी जी आज़कल
जिनका ज़लवा कभी अस्त नहीं होता
--बधाई।

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

शब् धरती की अपनी करनी है
दिनकर कभी अस्त नहीं होता........बहुत बढिया

Vinaykant Joshi का कहना है कि -

रूपम जी,
आप जैसी गुणग्राही ने मेरे बेतरतीब अश'आर पर तवज्जो दी मेरी खुशकिस्मती है |
मुझे ग़ज़ल कहने का इल्म नही. इसे एक छोटी सी कविता ही कहे,
कविता शब्द बड़ा गरीब परवर है
पंछी का चहचहाना भी कविता है
तुषार से लदा पहाड़ भी कविता है
बालक की मुस्कान भी कविता है
और बिरहन का आंसू भी कविता है
ऐसे ही मेरे कुछ भावों ने शब्दों की सवारी करली
जो लिखा जा रहा है वह उसी भाव में ग्रहण नहीं होता तो लेखक की असफलता होती है ,
मुझसे कही चुक हो गयी क्षमा करे
फकीरी (निस्पृह भाव) जिसके पास नहीं वह राजा (संपन्न) हो सकता है
लेकिन मस्त (हर हाल में खुश रहने वाला ) नहीं होता
स्नेह बनाये रखे,
सादर,
विनय के जोशी

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

यह ताज़ा ख़्याल है-

शब् धरती की अपनी करनी है
दिनकर कभी अस्त नहीं होता

विश्व दीपक का कहना है कि -

शब् धरती की अपनी करनी है
दिनकर कभी अस्त नहीं होता

फकीरी नहीं होती हमसफ़र जिसकी
शाह होता है मगर मस्त नहीं होता

इन दो शेरों ने वाह-वाह करने पर मजबूर कर दिया। बहुत खूब साहब!!! बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक

Akhilesh का कहना है कि -

शब् धरती की अपनी करनी है
दिनकर कभी अस्त नहीं होता

yeh sher kala aur vigyaan ka samanvay hai.

ik nayee baat jo gajal mein kahi gayee hai pathak bina wah wah kiye bina rah hi nahi sakta.

badhyee

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