मौज का महल ध्वस्त नहीं होता
नूरे मुन्तजिर पस्त नहीं होता
शब् धरती की अपनी करनी है
दिनकर कभी अस्त नहीं होता
ज़ुल्म कही भी हो व्यथित होता है
सुखनवर कभी व्यस्त नहीं होता
झुकता रहा सज़दे में हरबार मगर
कही सर तो कही दस्त नहीं होता
फकीरी नहीं होती हमसफ़र जिसकी
शाह होता है मगर मस्त नहीं होता
बेतरतीब अश'आर पेश है, हर कोई
वियाकरण का अभ्यस्त नहीं होता
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
14 कविताप्रेमियों का कहना है :
झुकता रहा सज़दे में हरबार मगर
कही सर तो कही दस्त नहीं होता
वाह क्या कहने विनय जी !
bhai wah!
फकीरी नहीं होती हमसफ़र जिसकी
शाह होता है मगर मस्त नहीं होता
शब् धरती की अपनी करनी है
दिनकर कभी अस्त नहीं होता
khyal bahut umda hai vajan bhi theek hai fir bhi kuchh khatak raha hai... aap dekhiye ki kya hai jo khatak raha hai
ज़ुल्म कही भी हो व्यथित होता है
सुखनवर कभी व्यस्त नहीं होता
बेतरतीब अश'आर पेश है, हर कोई
वियाकरण का अभ्यस्त नहीं होता
shayad ye do sher hain jo kuchh khatak rahe hain
शब् धरती की अपनी करनी है
दिनकर कभी अस्त नहीं होता,
फकीरी नहीं होती हमसफ़र जिसकी
शाह होता है मगर मस्त नहीं होता
Behad umda bhav..sundar rachana ..dhanywaad
ज़ुल्म कही भी हो व्यथित होता है
सुखनवर कभी व्यस्त नहीं होता
...
..
बेतरतीब अश'आर पेश है, हर कोई
वियाकरण का अभ्यस्त नहीं होता
कहना पड़ेगा .. बड़े "चतुर" शे'र !
बहुत खूब !
God bless
RC
बहुत खूब सही बातें लिखीं है .शब् धरती की अपनी करनी है
दिनकर कभी अस्त नहीं होता
फकीरी नहीं होती हमसफ़र जिसकी
शाह होता है मगर मस्त नहीं होता
खास कर ये तो बहुत ही खूब है
सादर
रचना
एक टिपण्णी "मिस" हो गयी थी, माफ़ी चाहूंगी
फकीरी नहीं होती हमसफ़र जिसकी
शाह होता है मगर मस्त नहीं होता
मुझे लगता था के यदि 'फकीरी' हमसफ़र रही हो तो शाह मस्त नहीं होगा ... 'फकीरी' हमसफ़र ना रही हो तो शाह के 'मस्त' होने के आसार अधिक होंगे .. शायद ? .. हो सकता है मैं गलत हूँ ... शेर समझना चाहूंगी ! यहाँ 'मस्त' का मतलब सिरचढा/मदमस्त शाह, या फकीर की तरह मस्तमौला ?
RC
फकीरी नहीं होती हमसफ़र जिसकी
शाह होता है मगर मस्त नहीं होता
बेतरतीब अश'आर पेश है, हर कोई
वियाकरण का अभ्यस्त नहीं होता
विनय जी लाजवाब बधाई
इस ग़ज़ल को पढ़ कर मैं वाह-वाह कर उठा।
झुकता है हर बार सज़दे में मगर
कहीं सर तो कहीं दस्त नहीं होता
------------------------------
फकीरी नहीं होती हमसफर जिसकी
शाह होता है मगर मस्त नहीं होता
-------------------------------
--वाह ! क्या शेर हैं!!
वो शेर लिखते हैं जोशी जी आज़कल
जिनका ज़लवा कभी अस्त नहीं होता
--बधाई।
शब् धरती की अपनी करनी है
दिनकर कभी अस्त नहीं होता........बहुत बढिया
रूपम जी,
आप जैसी गुणग्राही ने मेरे बेतरतीब अश'आर पर तवज्जो दी मेरी खुशकिस्मती है |
मुझे ग़ज़ल कहने का इल्म नही. इसे एक छोटी सी कविता ही कहे,
कविता शब्द बड़ा गरीब परवर है
पंछी का चहचहाना भी कविता है
तुषार से लदा पहाड़ भी कविता है
बालक की मुस्कान भी कविता है
और बिरहन का आंसू भी कविता है
ऐसे ही मेरे कुछ भावों ने शब्दों की सवारी करली
जो लिखा जा रहा है वह उसी भाव में ग्रहण नहीं होता तो लेखक की असफलता होती है ,
मुझसे कही चुक हो गयी क्षमा करे
फकीरी (निस्पृह भाव) जिसके पास नहीं वह राजा (संपन्न) हो सकता है
लेकिन मस्त (हर हाल में खुश रहने वाला ) नहीं होता
स्नेह बनाये रखे,
सादर,
विनय के जोशी
यह ताज़ा ख़्याल है-
शब् धरती की अपनी करनी है
दिनकर कभी अस्त नहीं होता
शब् धरती की अपनी करनी है
दिनकर कभी अस्त नहीं होता
फकीरी नहीं होती हमसफ़र जिसकी
शाह होता है मगर मस्त नहीं होता
इन दो शेरों ने वाह-वाह करने पर मजबूर कर दिया। बहुत खूब साहब!!! बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक
शब् धरती की अपनी करनी है
दिनकर कभी अस्त नहीं होता
yeh sher kala aur vigyaan ka samanvay hai.
ik nayee baat jo gajal mein kahi gayee hai pathak bina wah wah kiye bina rah hi nahi sakta.
badhyee
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)