सूरज की
पहली रश्मि को
न्यौतता,
बांस के
सिरे पर बंधा,
तिनकों का झाडू,
दिनान्कुरण पर
सशब्द,
गली में लहराता
एक दिन
दो नन्हे हाथों को
बोलते सुना,
"गंदा झाडू
भारी झाडू
मै ना पकडू
तिनका झाडू"
रख तर्जनी
होंटों पर
बोली माँ,
ना बेटा
झाडू नहीं
पतवार है ये
हमारी नैया
खेता है ,
मोरपंख हो
या तिनका
सब में
कान्हा
रहता है |
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
बेहतरीन भाव..सुंदर कविता...
बधाई विनय जी बढ़िया कविता लगी..
मोर पंख हो या तिनका, सबमें कान्हा रहता है । बहुत खूब । बधाई ।
विनय जी ,
आपकी कविता पढ़ते ही विनोबा जी की एक उक्ति याद आ गयी ,
मेहतर माने क्या मेहतर जाने तो महत्तर ,
विनय जी क्या खूब लिखा है अंत तो बहुत अच्छा है सब में कान्हा रहता है
बधाई
रचना
ताजा हवा के एक झोंके समान कविता, एक जिज्ञासा जगाती है।
रख तर्जनी
होंटों पर
बोली माँ,
ना बेटा
झाडू नहीं
पतवार है ये
हमारी नैया
खेता है ,
मोरपंख हो
या तिनका
सब में
कान्हा
रहता है |
बेहतर और बिलकुल जिवंत रचना
"मोरपंख हो
या तिनका
सब में
कान्हा
रहता है | "
एक सबक़ है आप कि रचना में
बधाई स्वीकारें
--'मोरपंख हो या तिनका
सबमें कान्हा रहता है।'
--आप जिस कंजूसी से शब्दों के मोती चुनते हैं
और जिस सफाई से पूरा दर्शन उड़ेल देते हैं
उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाय वह कम है।
विनय,
शीर्षक आम है और कविता भी खास नहीं है |
कविता और शीर्षक के मध्य जो कविता है वह कमाल की है | एक बार तुमने ही ने कही लिखा था " कविता शब्दों में नहीं होती कविता तो दो शब्दों के बीच रिक्त स्थान में होती है "
tumhari अपनी बात सार्थक करती एक पूर्ण कविता है साधुवाद
शुभम,
बुद्धिसागर
एक भावपूर्ण कविता जिसको आपने कई जगह पर शब्दों से कवितामई बना दिया.
बांस के
सिरे पर बंधा,
तिनकों का झाडू
इसी तरह
रख तर्जनी
होंटों पर
बोली माँ,
ना बेटा
झाडू नहीं
पतवार है ये
हमारी नैया
खेता है ,
मोरपंख हो
या तिनका
सब में
कान्हा
रहता है |
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