खुद से उकताया हूं
तो बैठा हूं कुछ लिखने
मेरी कलम को पता है
मेरी आदत क्या है
फितूर उतरेंगे जो काग़ज़ पे
तो असर क्या होगा?
जब तलक सीने में थे
खाक़ बनाया मुझको
और कुछ ग़मो-ख़्वाब की
बातें कर लें
कोई पूछेगा जो
कहने को...कुछ तो होगा
बारहां रोएंगी...घुट-घुटकर
ये रातें मेरे बग़ैर
मैं जो न होऊंगा
तो आख़िर इन्हें जिएगा कौन?
बन गई है लहर-सी हवा में कोई
रहम कर फ़िज़ा पे...
न और सिसकियां उठा
बहुत कुछ झेलना बाक़ी है
दिल-ए-नादां तुझको
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
Bahut Badhiya..Sundar bhav se piroyi hui sundar kavita..
badhayi!!!
ये कविता है ?????
............................ इसमें तो कुछ भी नहीं है, हिंद युग्म को एक संपादक की जरूरत है
शैलेश जी कहाँ खो गए आप......... कुछ तो ध्यान दीजिये
अरुण अद्भुत
गज़ब का अंदाज़ है.
फितूर उतरेंगे जो काग़ज़ पे
तो असर क्या होगा?
जब तलक सीने में थे
खाक़ बनाया मुझको
इन लाइन ने कमल का असर छोडा
बारहां रोएंगी...घुट-घुटकर
ये रातें मेरे बग़ैर
मैं जो न होऊंगा
तो आख़िर इन्हें जिएगा कौन?
आखिरी पद्यांश अच्छा लगा ,बधाई .
बड़ी उलझन सी लगी इसे समझने में ?
और काव्य के रूप में स्वीकार करना बड़ा मुश्किल है |
अभिषेक जी से और अच्छी रचना के अपेक्षा है |
अवनीश tiw
अरी
बड़ी खूबसूरती से अपना फितूर उतारा है कागज पे आपने..भाषा मे एक प्रवाह है जो बाँधे रखता है..
बन गई है लहर-सी हवा में कोई
रहम कर फ़िज़ा पे...
न और सिसकियां उठा
बहुत कुछ झेलना बाक़ी है
दिल-ए-नादां तुझको
bahut badhiya dard ,gar n hota to to moti kaise banta ,jo aapne piroya hai .
अरुणजी - शैलेशजी को सम्पादन नहीं आता ...,,,,, ना ही वो हिन्दी में कोई बड़ी जानकारी रखते हैं,,,,
सिर्फ वेब डिजाईन करके ब्लॉग चलके सम्पादक बना दिए गए हे ....,,,,,,,,इससे बहुत कमा रहे हे
अनाम २
ख़ामख़ा...मेरे बहाने शैलेशजी को निशाना मत बनाएं...मैं वैसे भी बहुत कम लिखता हूं...इसलिए भी शायद वो बात नहीं आ पाती...और अरूणजी की बात से मैं भी पूरी तरह से सहमत हूं...लेकिन गुमनाम बनकर किसी और के कंधे पर हथियार रखकर शिकार करना ठीक नही है...वैसे ये कोशिश अच्छी है कि संगठन को बनाए कोई...अपने खून-पसीने से सींचे...और कायदा सिखाने के नाम पर आप मठाधीश बन जाएं...
संगठन सिर्फ सैलेश्जी का नहीं है ...,,,,, सबने बनाया था... एकाधिकार शैलेशजी ने कर लिया और कमाने के चक्कर में कुछ भी कर रहे हे ,,,.....
समझे मियाँ .....
अनाम २
kuch logo ne kavita ko apni tarah se pribhasit kerne ki jemmedari le li hai.
sahi hai hindi ki dasa disha aap log hi tai kariye.
itne pathak ko kavita ko sarah rahe hai ... sayad unhe kavita ki samajh na ho.
main to chatha hoon ik baar yugm par lekh aaye ki kya kavita hai kya nahi.
kavita ki aalochana katya/silp /pathniyata par kare , ikdam sire se kharij karna teek nahi.
kavita mein bhaav hai badhayee.
heyeeeee I am totally agree with ANAM 2
इस रचना का भाव-पक्ष बेहद प्रभावित करता है। कुछ लोगों ने इसे जिस तरह से सिरे से खारिज़ किया है, उससे जाहिर होता है कि उन लोगों को बस अपनी तरह की रचनाएँ अच्छी लगती है। मैं "अखिलेश" जी की बात से इत्तेफ़ाक़ रखता हूँ कि कोई भी रचना पूर्णत: खराब नहीं होती, कुछ न कुछ अच्छा तो होता हीं है। आप अगर उस बात की प्रशंसा नहीं कर सकते, तो कृप्या इस तरह टिप्पणी तो न किया करें।
एक बात और..... इस कविता का शिल्प इस तरह का भी नहीं है कि शैलेश जी को कोसा जाए। और हाँ, संपादन के नाम पर "सेंसर बोर्ड" खड़ा करने से राजनीति को बल मिलता है साहित्य को नहीं। यह बात अगर माननीयजनों को समझ आ जाए तो उसी दिन सारा बखेरा निपट जाए।
अनाम बंधु,
पैसे कहाँ से आते है, आप अगर यह भी समझा देते तो मेरा(हमारा) भला हो जाता।
पाटनी जी,
मुझे आपकी रचना पसंद आई। (शायद मुझे भी कविता-लेखन का कोई ज्ञान नहीं है, इसलिए ऐसी कविताओं का मैं पक्ष लेता हूँ)
बधाई स्वीकारें।
पहले तो कविता के लिए बधाई...
फिर अरुण जी आप बताएं कि कविता में भी संपादन होता है क्या..
और अनाम बाबु आप भी कर लो न वेब डिजाईनइंग....
चाँद पर थूकने का गुनाह न करो भाई ..चेहरा तुम्हारा ही गन्दा होगा
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