गाँव नही अब
हमको जाना
कहकर हैं,चुप
बैठे नाना
प्रीत-प्यार की
बात कहां
कौन पूछता
जात वहां
खत्म हुआ
सब ताना-बाना
गाँव नही अब हमको जाना...
कोयल कागा
मौन हुए
संबंध सभी तो
गौण हुए
और सुनोगे
मेरा गाना
गाँव नही अब हमको जाना.........
बूआ-काका
नहीं-वहां
गीदड़-भभकी
हुआं-हुआं
खूब-भला
तुमने पहचाना
गाँव नही अब हमको जाना.........
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
gaon ke badalte pridrshy par lubhvna geet
ramesh singh
बहुत ही खुब्सूरत भाव और रचना...
खत्म हुआ
सब ताना-बाना
गाँव नही अब हमको जाना...
कोयल कागा
मौन हुए
संबंध सभी तो
गौण हुए
बहुत खुब्सूरत रचना!!!
बूआ-काका
नहीं-वहां
गीदड़-भभकी
हुआं-हुआं
खूब-भला
तुमने पहचाना
गाँव नही अब हमको जाना.........
कभी गावं जाने को मन कितना उतावला रहता था......कविता गावं के आज के परिवेश को सार्थक करती लगी सुन्दर
regards
thanks god, some thing pleasantly different this time.
गाँव के बदलता स्वरूप का वर्णन किया है, बहुत अच्छा बहुत बहुत बधाई
विमल कुमार हेडा
श्याम जी,
प्यारी सी कविता है. बधाई! सोचती हूँ मैं:
गाँव ना जान के
ढूँढत बहुत बहाना
अब कितने चतुर
हुइ गये हैं नाना.
'गाँव नही अब हमको जाना कहकर हैं,चुप बैठे नाना प्रीत-प्यार की बात कहां .' ह्रदय को स्पर्श करती बहुत अच्छी पंक्तियाँ हैं . हमारी संस्कृति ,सामाजिक मूल्यों के विघटन को दर्शाती है . बधाई .
तभी आँगन मे कौवे आ कर अतिथि-आगमन की सूचना नही देते..शहरों के संबंध-ह्रास से गाँव अछूते नही रहे..बहुत सरल और उम्दा रचना!
सरल शब्दों में रची गई रचना...
कोयल कागा
मौन हुए
संबंध सभी तो
गौण हुए
सरल शब्दों में रची गई रचना...
कोयल कागा
मौन हुए
संबंध सभी तो
गौण हुए
गाँव के बदलते हालात को दर्शाती सटीक रचना, सच ही कहा, अब वहां कुछ भी नहीं बचा. दिल के बहुत करीब लगी आपकी रचना, अपने गाँव की याद दिला गई मुझे. शुक्रिया
--
Regards
-Deep
गहरे भाव लिये सुन्दर अभिव्यक्ति ।
भाव सुन्दर है श्याम जी के.
गाँव नही अब
हमको जाना
कहकर हैं,चुप
बैठे नाना
कोयल कागा
मौन हुए
संबंध सभी तो
गौण हुए
kyaa baat hai shyaam ji....
kamaal likhaa hai..
गाँव... व्यंग्य है या व्यथा
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