दोहा गाथा सनातन: २४
कच्छप दोहा शांत है
परिभाषा:
दोहा परिवार का आगामी सदस्य 'कच्छप' दोहा है. इसमें ८ गुरु मात्राएँ, ३२ लघु मात्राएँ तथा ४० अक्षर होते हैं.
कच्छप दोहा शांत है, करता उछल न कूद.
जैसे ब्याज कमा रहा,'सलिल' सुरक्षित सूद..
बत्तिस लघु सँग आठ गुरु, चालिस अक्षर थाम.
कच्छप मंथर गति चले, रूप छटा अभिराम..
कच्छप दोहा के सलिल, अजब अनोखे ठाठ.
बत्तीस मात्राएँ लघु, और दीर्घ हैं आठ..
उदाहरण:
१. नहा नर्मदा नीर में, विमल सलिल कर पान.
निश-दिन हरि भज, हँस भुला, सकल स्वार्थ-अभिमान.-सलिल
२. बसे बनज बिकसे बनज, निकसे बनज निसंक.
बनज माल बिन लगति हैं, बन जमाल हरि-अंक. - अज्ञात
३. तन-मन-धन सब कुछ मिला, मिला न नेह विशाल.
पतझड़ सम जीवन दिखे, पग-पग झुलसी डाल. -आचार्य रामदेव लाल 'विभोर'
४. निज भाषा बोलहु-लिखहु, पढ़हु-गुनहु सब लोग.
करहु सकल बिषयन बिषै, निज भाषा उपजोग. -श्रीधर पाठक(१८५९-१९२०)
५. सरित समूह सवेग जिमि, सागर माहिं समाहिं.
तिमि जोधा-गन तुव मुखनि, प्रबिसि-प्रबिसि बिनसाहिं. -डॉ. राजेश दयालु 'राजेश'
६. ठौर-ठौर बृन्दा विपिन, कदम बिरिछ सब आहिं.
कदम-कदम तर सांवरे, कदम-कदम चलि जाहिं. - डॉ. राजेश दयालु 'राजेश'
७. तन बृज-रज मन जमुन-जल, श्वास मुरलिया-तान.
जीवन-धन नटवर 'सलिल', आस राधिका जान. - सलिल
८. सतगुरु भार्यो बानभरि, घर-बन कछु न सुहाय.
तन-मन बिकल सुपीडित, परसा कहिये काय. -परशुराम देव
कच्छप तथा अन्य अगले दोहा रचने का प्रयास करते समय बिना मात्रा के अक्षरों से बने शब्दों का प्रयोग अधिक से अधिक करें. प्रारंभ में कठिन प्रतीत होनेवाले ये दोहे क्रमशः सरल लगने लगते हैं. मुझे पाठकों के दोहों की प्रतीक्षा है.
९. नटखट बचपन की झलक, निज संतति में देख.
हर्षित प्रमुदित मनुज-मन, मोहक विधि का लेख. -सलिल
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
आपकी दी हुई जानकारी अनमोल है.
धन्यवाद
दोहा की व्यापक जानकारी मिल रही है. आभार.
कच्छप दोहा शांत है, करता उछल न कूद.
जैसे ब्याज कमा रहा,'सलिल' सुरक्षित सूद..
क्या बात है आचार्य....
कमाल..
उम्मीद हैं ये वाली कक्षा शन्नो जी भी अटैंड कर सकेंगे.....
(वोही...अपनी दोहा कक्षा-नायिका.....)
नटखट बचपन की झलक, निज संतति में देख.
हर्षित प्रमुदित मनुज-मन, मोहक विधि का लेख
सलिल जी आपके दोहे और आलेख पढ़कर पता चलता है कि आप दोहों कि अच्छी जानकारी रखते हैं. बधाई;
आचार्य जी
कच्छप दोहे का एक दोहा प्रस्तुत कर रही हूँ -
भटकत नयन जलद बिना
1
जलद नहीं चहुं ओर
2
तरसत धरा फटत रही
2
अब आओ इस ओर। 3
इसमें 8 गुरु और 32 लघु है। लेकिन एक शंका है कि आपने जो दोहा प्रस्तुत किया है - कच्छप दोहा शांत है. इसमें तो गुरु मात्राएं 14 हैं।
प्रणाम, आचार्य जी,
कच्छप दोहे का एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूँ |
१ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ २, १ १ १ १ २ २ २ १
अदभुत सहचर जगत के, बल इसका आधार |
पिटी लीक पर चल रहें, सब जन विधि अनुसार ||
१ २ २ १ १ १ १ १ १ २, १ १ १ १ १ १ १ १ २ १
सादर,
अम्बरीष श्रीवास्तव
प्रणाम आचार्य जी,
कच्छप दोहे को लिखने का प्रयत्न किया है, क्या यह सही है?
बरबस बरसे नयन जल, बरस नील आकाश,
शुष्क ह्रदय, थल- उपवन शुष्क, सजल होएं सब काश !!!
धन्यवाद.
सादर
पूजा अनिल
Dr.smt. ajit gupta wali shanka hamen bhi hai, kripya samaadhan karen.aapka bahut bahut aabhar.
पूजा मंजु दिशा अजित, मनु दोहा परिवार.
अम्बरीश शामिख सहित, शन्नो का आभार.
दोहा कक्षा-नायिका, ध्वज-वाहिका अनन्य.
जिसको दोहा सिद्ध हो, वह हो जाता धन्य.
परिभाषा में दिए गए तीनों दोहे 'कच्छप' के लक्षण बताते हैं पर स्वयं 'कच्छप' नहीं हैं.
उदाहरण में दिए गए सभी दोहे 'कच्छप' हैं पर वे अपने लक्षण नहीं बताते.
अजित जी और अम्बरीश जी के दोहे 'कच्छप' हैं. दोनों को बधाई.
अम्बरीश जी के दोहे में प्रयुक्त 'अदभुत' शब्द का शुद्ध रूप 'अद्भुत' है. इसे प्रयोग करने पर यह दोहा 'त्रिकल' हो जायेगा.
पूजा जी!
दोहा का दूसरा पद १५ + १२ मात्राएँ लिए है.
बरबस बरसे नयन जल, बरस नील आकाश,
शुष्क ह्रदय, थल- उपवन शुष्क, सजल होएं सब काश !!!
बरबस बरसे नयन जल, बरस नील आकाश.
शुष्क ह्रदय प्रियतम बिना, मेघदूत हरि काश.
अब यह कच्छप है.
आदरणीय गुरु जी,
प्रणाम
आज फिर आप सबसे मिलने का अवसर हाथ लगा है. कुछ समय तक काफी व्यस्त रहना होगा मुझे लेकिन कभी-कभी जरा सा भी समय मिला तो कक्षा में आकर सबसे मुलाक़ात करने का आनंद जरूर लेती रहूंगी.
मनु जी और अजित जी, अच्छा लगा जानकर की आप लोगों ने मुझे याद किया. और देखिये, आज की कक्षा में मैं प्रकट हो गयी, है ना?
कच्छप दोहे के बारे में पढ़कर हर्ष है. अभी-अभी भारत से वापस आई हूँ, बुद्धि अभी ठिकाने पर नहीं है इसलिए एक कछुआ पर लिखा दोहा प्रस्तुत करती हूँ:
भैंस बैठी पानी में, कछुआ रगडे पीठ
चोंच मारती भैंस को, सारस इतनी ढीठ.
लगातार कक्षाओं में ना आ सकने का भी दुःख है, लेकिन सोचना पड़ा फिर:
सबर करे जो भी मिले, नहीं ज्ञान का छोर
'सलिल'-सागर में डूबके, होवे भाव-बिभोर.
और गुरु जी, बारिश के अभाव ने जल की महत्ता को कितना महसूस कराया उसपर भी कुछ लिखा है:
जल से सारा जगत है, जल से ही सब सार
बिन प्राण जैसे काया, जल बिन है संसार.
गुरु जी,
प्रणाम
कच्छप दोहे की एक कामयाब या नाकामयाब कोशिश:
यह सब मतलब का जगत, जिधर देख अंधेर
बदल-बदल हर दिन कवच, चूहे बनते शेर.
आपके कमेन्ट की प्रतीक्षा में.....
शन्नो जी!
वन्दे मातरम.
आप भारत आयीं भी और चली भी गयीं...कार्यक्रम का कुछ अता-पता होता तो मुलाकात की जुगत भिडाते...खैर दोहा-लोक में तो भेंट होगी ही. आपने कच्छप को सहज ही साध लिया...बधाई. अन्य प्रकारों से भी मित्रता कर लें.
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
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