कितना अजीब है !
मिलना निमन्त्रण
भूतपूर्व पत्नी की
शादी पर !!
जैसे कि
याद दिला दिया उसने
कैसे कैसे स्वप्न थे मेरे !
कि पत्नी भी बन पाये प्रेमिका
पर छोड़ो यार !
कहाँ की लजाती मुस्कान और
शौख अदाये!
नहीं बन पाई थी वह
रूक्मणी से राधा !
देना पड़ा था तलाक
क्योंकि मैं उसे
कैसे संभालता
जब वह छटपटा रही थी
बीमारी से
देख कर दिमाग धुँआता था कुहरे में
कि किसी गाय की रंभाहट लगता था
उसका चिल्ल्लाना !
उलझने क्या सुलझती
जब कोई एहसास नहीं हुआ
कि हो पाये सुलह हम दोनो में
पर खबरदार ! जो मुझे मक्कार, धूर्त समझा तो
पत्नी बीमार थी तो क्या
मैं उसका साथ देता !
हाँ , उस पर किये अहसानों के बदले
मैंने अपने पास रख ली है
हमारे शिशु की मासुम हँसी
चहकना, क्रन्दन और गुंजन
किस्मत से ले लिया मैंने
प्रतिशोध ऐसा
कि उसे माँ से मिलने नहीं दिया
वह तो केवल
अपनी ऊँगलियां
फिराती रही
समय की रेती पर ।
हथकड़ी बन गये थे
हमारी शादी के बन्धन
क्योंकि वह परले दर्जे की
स्वार्थी है
यह निमन्त्रण
कोई मुझे जलाने की तरकीब नहीं
उसकी चालाकी है
कि इस बहाने
हमारे… पर अब सिर्फ़ मेरे शिशु को
साथ लाऊँगा
और वह देख लेगी उसे
जी भर कर अपनी आँखों से
लगा पायेगी कलेजे से
पकड़ा दिया है मुझे यह
निमन्त्रण !
-हरिहर झा
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27 कविताप्रेमियों का कहना है :
सचमुच अजीब निमंत्रण .. पर सुंदर भावाभिव्यक्ति !!
निमंत्रण की बढ़िया व्याख्या,
भाव से परिपूर्ण सुंदर रचना,
बधाई हो!!!
विद्रूप आधुनिकता की निर्मम वास्तविकता का तार्किक चित्रण ! साधुवाद !!
saare ikrdaaron ko nibhaane me kitni ulajh si jaati hai yah aurat ,yah to aapne bhi maan hi liya ki achchi patni n sahi wo maa to ab bhi maa hi hai .kisi bhi bahaane se apni aulad ko apne najdeek mahsoos karna chaahti hai ,
asafal v krur puruso-uvaach
aaj kaa ye sach kitanaa bhayavana hai maarmik abhivyakti aabhar
मेरे ख़याल से न यह शायरी है न किस्सागोई
-मुहम्मद अहसन
हसरतें,शौक और तन्हाईयाँ
सब मिल के
बना डाला
रच दिया
निमंत्रण
हर महिला अपने बेटे से बेपनाह मुहब्बत करती है ! तो गलत क्या हुआ?
कहाँ की लजाती मुस्कान और
शौख अदाये!
नहीं बन पाई थी वह
रूक्मणी से राधा !
Excellent thought.
नीलम जी व Anonymous जी
आपने बिल्कुल सही कहा !
इस कविता का "मैं" :
पत्नी में प्रेमिका को तो देखना चाहता है पर पत्नी की बिमारी में साथ नहीं देता उल्टा दर्द की चिल्लाहट को
"गाय की रंभाहट" की उपमा देता है।
ऐसे तो उसने पत्नी पर कौनसे "एहसान" कर दिये कि माँ को अपने शिशु से मिलने नहीं देता !
तकलिफ़ इस बात की है कि इतना क्रूर, धूर्त और
मक्कार पति भी बात इस तरह से करता है जैसे कि
वह अत्याचारी न होकर स्त्री द्वारा पीड़ित हो । वह तो
अपनी स्त्री को परले दर्जे की स्वार्थी व चालाक समझता है पर आईने में कभी नही देखता ।
radha aur rukmani ka is sandarbh me aaklan sahi nhi nhi hai ..
radha aur rukmani ka is sandarbh me aaklan sahi nhi nhi hai ..
अजीब रिश्ते,,,
सपाट तरीके से कह गये आप बात..
प्रस्तुति इससे कहीं बेहतर हो सकती थी..
विपुल जी,मुहम्मद जी, अनुपम जी
जैसा कि मैंने उपर लिखा, कविता इस अर्थ में
सीधी है कि क्रूर व्यक्ति भी अपने को गुनाहगार नहीं समझता । वह अपनी सोंच को सीधी तरह बता
रहा है पर Between the lines उसकी कुटीलता
उभरती है।
जी भर कर अपनी आँखों से
लगा पायेगी कलेजे से
पकड़ा दिया है मुझे यह
निमन्त्रण !
बहुत ही सुन्दर रचना ।
मैंने अपने पास रख ली है
हमारे शिशु की मासूम हंसी
चहकना, क्रन्दन और गुंजन
या फिर...
वह तो केवल
अपनी ऊँगलियां
फिराती रही
समय की रेती पर।
.....
स्वार्थी है
यह निमन्त्रण!
-हरिहर झा जी की कविता के माध्यम से यह अभिव्यक्ति सामाजिक विद्रूपता की और संकेत करती है. कवि के इस प्रयास के लिए बधाई! आशा है, आगे इससे भी धारदार अभिव्यक्ति पढ़ने को मिलेगी.
-सुधीर सक्सेना 'सुधि'
हरिहर जी कैसे हैं ये रिश्ते कभी खट्टे कभी मीठे
आप ने जो लिखा है कितना सोच के लिखा है
सादर
रचना
रचना जी, करण जी, सुधीर जी....
धन्यवाद । उत्साह बढ़ाने के लिये
शोभना जी
राधा व रूक्मणी क्रमश: प्रेमिका व पत्नी के प्रतीक हैँ ।
पर छोड़ो यार !
कहाँ की लजाती मुस्कान और
शौख अदाये!
नहीं बन पाई थी वह
रूक्मणी से राधा !
बड़ा ही अजीब
कविता दर्द को बताती है. बदला ले ही लिया
bahut khub .... bahut achha hai
bahut achha ... bahut khub
Wao, I m impressed. Some very well said lines. A glance into some
thoughts. Perhaps, some pain from the poet would have enhanced it.
bahut hi achha likha, bahut sunder tarike se parilakshit kara, aap badhaye ke patra hain
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