आज कांप रहा था दर्द
पहली बारिश में
नहाया जो था !
मैनें कहा..
लेट जाओ।
फिर लगाया
चाहत का थर्मामीटर..
104 डिग्री था
यादों का बुखार!
दिल की पेटी से निकाला..
झूठी उम्मीदों का कम्बल
और यथार्थ की गोलियां देकर
सुलाने लगा उसे !
भूखा था दर्द..
बोला..खा नहीं पाउंगा खाना
जाकर ले आओ किसी से
कोई वादा या कसम
वही खाउंगा आज !
फिर करवट लेकर
गुनगुनाने लगा कुछ..
उसे देखता हुआ
सो गया मैं भी।
जब उठा..
तो गायब था दर्द
ढूंढा,
मां के कमरे में मिला!
अपने साथ,
मां को भी
रुला रहा था कम्बख्त !
मैने रसीद किये..
दो-तीन तमाचे
और चिल्लाया-
”तू अब मुझे छोडकर
मेरे अपनों को सताने लगा !”
सन्न रह गया दर्द
फिर भावुक होकर
लिपट गया मुझसे..
सिसककर बोला-
”माफ करना दोस्त
गलती हो गयी..
अब कभी भी,
कहीं नहीं जाउंगा
तुझे छोडकर !
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
21 कविताप्रेमियों का कहना है :
इतनी अच्छी,शानदार रचना,गहरी अभिव्यक्ति के आगे मैं नत हूँ......
क्या खूबसूरती से बयाँ किया है दर्द
बहुत बढिया
खा नहीं पाउंगा खाना
जाकर ले आओ किसी से
कोई वादा या कसम
वही खाउंगा आज !
क्या बात है ...
दर्द-स्पेशलिस्ट...
हमेह्सा की तरह नायाब...........
जितनी तारीफ़ की जाए ..कम है..
kya likha hai vipul ji.apno ka dard sahan na kar,dard ko swayam apne ander atmasat kar lena hi shivatwa hai.aur apno ka hi kya,sabhi ka dard,jab koi apne mein samet leta hai to woh shivatwa ko prapt kar leta hai-
"mod saka jo dhar samay ki,
usmein hi amratwa dhala hai.
jo samaj ka dard pee gaya-
bas usko devatwa mila hai..."
इतनी अच्छी दर्द की परिभाशा बहुत खूबसूरत,
बहुत ही अच्छा विपुल ... दिन ब दिन और भी बेहतर ....दिन ब दिन दर्द को प्यार से सहलाते हुए ...नयी परिभाषा गढे हुई ...बेहद अच्छी रचना ....
सादर
दिव्य प्रकाश दुबे
http://www.youtube.com/watch?v=oIv1N9Wg_Kg
दिल की पेटी से निकाला..
झूठी उम्मीदों का कम्बल
और यथार्थ की गोलियां देकर
सुलाने लगा उसे !
भूखा था दर्द..
बोला..खा नहीं पाउंगा खाना
जाकर ले आओ किसी से
कोई वादा या कसम
वही खाउंगा आज !
वाह,दर्द की भावपूर्ण व्याख्या,
अद्भुत ..रचना..
बधाई हो!!!
यह तो ग़ज़ब है. क्या लिखा है. मेरे पास तो ज़्यादा शब्द नहीं बचे यह बताने के लिए की कैसी लगी यह रचना. एक एक पंक्ति के साथ भावना और गहरी होती जाती है और कविता के चरम पे आते आते भावना भी अपने चरम पे होती है. बहुत ही सुंदर. इसे सुनकर तो दर्द खुद भी रो देगा, भावुक हो जाएगा. सच. बहुत बहुत बधाई विपुल जी.
गरिमा सिंह.
सिसककर बोला-
”माफ करना दोस्त
गलती हो गयी..
अब कभी भी,
कहीं नहीं जाउंगा
तुझे छोडकर !
wahh kya kehne lazabab
कभी कभी हम inanimates (निर्जीव)को animates ( सजीव) मान लेते हैं तो कविता में एक नई जान आ जाती है. वही चीज़ मुझे आपकी इस कविता में दिखाई दी. साथ ही मुझे कविता के ये हिस्से काफी अच्छे लगे.
आज कांप रहा था दर्द
पहली बारिश में
नहाया जो था !
मैनें कहा..
लेट जाओ।
फिर लगाया
चाहत का थर्मामीटर..
104 डिग्री था
यादों का बुखार!
दिल की पेटी से निकाला..
झूठी उम्मीदों का कम्बल
और यथार्थ की गोलियां देकर
सुलाने लगा उसे !
भूखा था दर्द..
बोला..खा नहीं पाउंगा खाना
जाकर ले आओ किसी से
कोई वादा या कसम
वही खाउंगा आज !
लिपट गया मुझसे..
सिसककर बोला-
”माफ करना दोस्त
गलती हो गयी..
अब कभी भी,
कहीं नहीं जाउंगा
तुझे छोडकर !
मैंने तुम्हारे प्यार से जुड़े
जज्बातों के टुकड़े
दिल के कमरे में रखी
यादों की अलमारी में
वक़्त का ताला लगा के
रख दिए थे
लेकिन
न जाने बात कैसे
मेरे कलम को मालूम हो गई
और वो बता आया है
नज्मों और ग़ज़लों को
रुबाई और मसनवियों को
कविताओं और क्षणिकाओं को
और कुछ काव्यरचनाओं को
आपकी इस रचना को पढ़कर मुझे मेरी एक कविता या आ रही है जो फरवरी माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में शीर्ष दस कविताओं में शामिल थी.
दर्द जिसका था उसके पास वापस आ गया थर्मामीटर का प्रतीक अच्छा लगा . .
भाव सब भले, शब्द सब ठीक
पर तेरी गाथा में मधुरता है कहाँ !!
आपकी सोच को सलाम.
बहुत खूबसूरती से दर्द से रिश्ता जोड़ा है आपने.
सन्न रह गया दर्द
फिर भावुक होकर
लिपट गया मुझसे..
सिसककर बोला-
”माफ करना दोस्त
गलती हो गयी..
अब कभी भी,
कहीं नहीं जाउंगा
तुझे छोडकर !
बहुत बढिया|
आप तो बड़े बेदर्द निकले,
हुज़ूर दर्द के ही हमदर्द निकले |
दो-तीन तमाचे
और चिल्लाया-
”तू अब मुझे छोडकर
मेरे अपनों को सताने लगा !”
सन्न रह गया दर्द
फिर भावुक होकर
लिपट गया मुझसे..
विपुल जी! अच्छा लगा कविता पढ़ कर !
bahut hi badhiya likha hai.
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
vakai..yatharth ki goliyaa kitni jaruri he dard ko sulane k liye..
bahut hi umda...
behad achchi.....dard se milane ka shukriya...!!
bahut hi gehri abhivyakti hai aur itne alag andaaz me pesh kiya hai, shuru se ant tak kavita ki pakad kamjor nahi hui...bas bandhti gayi apne aap me!!
badhai....
utstanding vipul mujhe ye rachna behad acchi lagi
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