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Saturday, July 11, 2009

दर्द-5


आज कांप रहा था दर्द
पहली बारिश में
नहाया जो था !
मैनें कहा..
लेट जाओ।
फिर लगाया
चाहत का थर्मामीटर..
104 डिग्री था
यादों का बुखार!
दिल की पेटी से निकाला..
झूठी उम्मीदों का कम्बल
और यथार्थ की गोलियां देकर
सुलाने लगा उसे !
भूखा था दर्द..
बोला..खा नहीं पाउंगा खाना
जाकर ले आओ किसी से
कोई वादा या कसम
वही खाउंगा आज !
फिर करवट लेकर
गुनगुनाने लगा कुछ..
उसे देखता हुआ
सो गया मैं भी।
जब उठा..
तो गायब था दर्द
ढूंढा,
मां के कमरे में मिला!
अपने साथ,
मां को भी
रुला रहा था कम्बख्त !
मैने रसीद किये..
दो-तीन तमाचे
और चिल्लाया-
”तू अब मुझे छोडकर
मेरे अपनों को सताने लगा !”
सन्न रह गया दर्द
फिर भावुक होकर
लिपट गया मुझसे..
सिसककर बोला-
”माफ करना दोस्त
गलती हो गयी..
अब कभी भी,
कहीं नहीं जाउंगा
तुझे छोडकर !

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21 कविताप्रेमियों का कहना है :

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

इतनी अच्छी,शानदार रचना,गहरी अभिव्यक्ति के आगे मैं नत हूँ......

Disha का कहना है कि -

क्या खूबसूरती से बयाँ किया है दर्द
बहुत बढिया

manu का कहना है कि -

खा नहीं पाउंगा खाना
जाकर ले आओ किसी से
कोई वादा या कसम
वही खाउंगा आज !

क्या बात है ...
दर्द-स्पेशलिस्ट...
हमेह्सा की तरह नायाब...........
जितनी तारीफ़ की जाए ..कम है..

Anonymous का कहना है कि -

kya likha hai vipul ji.apno ka dard sahan na kar,dard ko swayam apne ander atmasat kar lena hi shivatwa hai.aur apno ka hi kya,sabhi ka dard,jab koi apne mein samet leta hai to woh shivatwa ko prapt kar leta hai-
"mod saka jo dhar samay ki,
usmein hi amratwa dhala hai.
jo samaj ka dard pee gaya-
bas usko devatwa mila hai..."

दीपा सिंह का कहना है कि -

इतनी अच्छी दर्द की परिभाशा बहुत खूबसूरत,

Divya Prakash का कहना है कि -

बहुत ही अच्छा विपुल ... दिन ब दिन और भी बेहतर ....दिन ब दिन दर्द को प्यार से सहलाते हुए ...नयी परिभाषा गढे हुई ...बेहद अच्छी रचना ....

सादर
दिव्य प्रकाश दुबे

http://www.youtube.com/watch?v=oIv1N9Wg_Kg

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

दिल की पेटी से निकाला..
झूठी उम्मीदों का कम्बल
और यथार्थ की गोलियां देकर
सुलाने लगा उसे !
भूखा था दर्द..
बोला..खा नहीं पाउंगा खाना
जाकर ले आओ किसी से
कोई वादा या कसम
वही खाउंगा आज !

वाह,दर्द की भावपूर्ण व्याख्या,
अद्भुत ..रचना..
बधाई हो!!!

singh.gari का कहना है कि -

यह तो ग़ज़ब है. क्या लिखा है. मेरे पास तो ज़्यादा शब्द नहीं बचे यह बताने के लिए की कैसी लगी यह रचना. एक एक पंक्ति के साथ भावना और गहरी होती जाती है और कविता के चरम पे आते आते भावना भी अपने चरम पे होती है. बहुत ही सुंदर. इसे सुनकर तो दर्द खुद भी रो देगा, भावुक हो जाएगा. सच. बहुत बहुत बधाई विपुल जी.
गरिमा सिंह.

कुलदीप "अंजुम" का कहना है कि -

सिसककर बोला-
”माफ करना दोस्त
गलती हो गयी..
अब कभी भी,
कहीं नहीं जाउंगा
तुझे छोडकर !

wahh kya kehne lazabab

Shamikh Faraz का कहना है कि -

कभी कभी हम inanimates (निर्जीव)को animates ( सजीव) मान लेते हैं तो कविता में एक नई जान आ जाती है. वही चीज़ मुझे आपकी इस कविता में दिखाई दी. साथ ही मुझे कविता के ये हिस्से काफी अच्छे लगे.

आज कांप रहा था दर्द
पहली बारिश में
नहाया जो था !
मैनें कहा..
लेट जाओ।
फिर लगाया
चाहत का थर्मामीटर..
104 डिग्री था
यादों का बुखार!
दिल की पेटी से निकाला..
झूठी उम्मीदों का कम्बल
और यथार्थ की गोलियां देकर
सुलाने लगा उसे !
भूखा था दर्द..
बोला..खा नहीं पाउंगा खाना
जाकर ले आओ किसी से
कोई वादा या कसम
वही खाउंगा आज !


लिपट गया मुझसे..
सिसककर बोला-
”माफ करना दोस्त
गलती हो गयी..
अब कभी भी,
कहीं नहीं जाउंगा
तुझे छोडकर !

Shamikh Faraz का कहना है कि -

मैंने तुम्हारे प्यार से जुड़े
जज्बातों के टुकड़े
दिल के कमरे में रखी
यादों की अलमारी में
वक़्त का ताला लगा के
रख दिए थे
लेकिन
न जाने बात कैसे
मेरे कलम को मालूम हो गई
और वो बता आया है
नज्मों और ग़ज़लों को
रुबाई और मसनवियों को
कविताओं और क्षणिकाओं को
और कुछ काव्यरचनाओं को

आपकी इस रचना को पढ़कर मुझे मेरी एक कविता या आ रही है जो फरवरी माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में शीर्ष दस कविताओं में शामिल थी.

Manju Gupta का कहना है कि -

दर्द जिसका था उसके पास वापस आ गया थर्मामीटर का प्रतीक अच्छा लगा . .

mohammad ahsan का कहना है कि -

भाव सब भले, शब्द सब ठीक
पर तेरी गाथा में मधुरता है कहाँ !!

दिपाली "आब" का कहना है कि -

आपकी सोच को सलाम.
बहुत खूबसूरती से दर्द से रिश्ता जोड़ा है आपने.

Ambarish Srivastava का कहना है कि -

सन्न रह गया दर्द
फिर भावुक होकर
लिपट गया मुझसे..
सिसककर बोला-
”माफ करना दोस्त
गलती हो गयी..
अब कभी भी,
कहीं नहीं जाउंगा
तुझे छोडकर !

बहुत बढिया|
आप तो बड़े बेदर्द निकले,
हुज़ूर दर्द के ही हमदर्द निकले |

Harihar का कहना है कि -

दो-तीन तमाचे
और चिल्लाया-
”तू अब मुझे छोडकर
मेरे अपनों को सताने लगा !”
सन्न रह गया दर्द
फिर भावुक होकर
लिपट गया मुझसे..

विपुल जी! अच्छा लगा कविता पढ़ कर !

abhi का कहना है कि -

bahut hi badhiya likha hai.

सदा का कहना है कि -

बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

Unknown का कहना है कि -

vakai..yatharth ki goliyaa kitni jaruri he dard ko sulane k liye..


bahut hi umda...

Kavya!! का कहना है कि -

behad achchi.....dard se milane ka shukriya...!!
bahut hi gehri abhivyakti hai aur itne alag andaaz me pesh kiya hai, shuru se ant tak kavita ki pakad kamjor nahi hui...bas bandhti gayi apne aap me!!
badhai....

yamini का कहना है कि -

utstanding vipul mujhe ye rachna behad acchi lagi

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