छोड़ पराई आस
खुद कुछ करने की चाह में
सूरज की खिड़की बंद की
तो तपती धरती को शीतलता मिली
बादल में सेंध लगाई
प्यासे खेतों की प्यास बुझी
नदी की तरंगों को सी दिया
तो डूबे घरों ने साँस लिया
किसान की आशा फली
घर अनाथ होने से बचा
शहरी हवाओं में गांठ लगा दिया
तो बूढ़ा पीपल मुस्कुरा दिया
उन्नति की राह खुली
तो उम्मीदें लौट के घर चलीं
नम हुई बूढ़ी पलकें
ढलती उम्र ने सहारा पाया
मेरे माथे पर
कापतें हाथों ने आशीष सजाया
फैला अपने डैने
मैं जो मौज में उड़ने को था
के कुछ ज़मीनी भगवान की सोचों ने
क़तर दिए पंख मेरे
आत्मा तक नोच
मेरे उत्साह तो खुरेद डाला
बहुत चला था रामराज्य लाने
कह के धूल में पटक दिया
मैं भी जटायु सा पड़ा धरा पर
राम के आने की राह देखने लगा
कवयित्री- रचना श्रीवास्तव
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
मैं भी जटायु सा पड़ा धरा पर
राम के आने की राह देखने लगा
...बहुत ही सुन्दर भाव
रचना जी,
राम के आने की प्रतीक्षा ही विश्वास है। इसी विश्वास पर बुनियाद टिकी हुई है कि समाज में नैतिक मूल्यों का पुर्नस्थापन होगा।
अच्छी रचना के लिये बधाईयाँ।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
"मैं भी जटायु सा पड़ा धरा पर......" Bhagwan ke prati shradha, vishwas ka bhav is pankti mein dikhai deta hai. Ashawadi kavita hai.Vishwas par hi aas kayam hai.Ram hamesha hai, woh jaroor ayenge aur samaj mein punah naitik mulyon ki sthapana hogi! sundar bhavon ke liye badhayi.
Manju Gupta.
हमेशा की तरह सुंदर लिखा है रचना जी,,,,,,
एक लाजवाब कविता के लिए बधाई रचना जी
छोड़ पराई आस
खुद कुछ करने की चाह में
सूरज की खिड़की बंद की
तो तपती धरती को शीतलता मिली
बादल में सेंध लगाई
प्यासे खेतों की प्यास बुझी
नदी की तरंगों को सी दिया
तो डूबे घरों ने साँस लिया
छोड़ पराई आस
खुद कुछ करने की चाह में
सूरज की खिड़की बंद की
तो तपती धरती को शीतलता मिली
बादल में सेंध लगाई
प्यासे खेतों की प्यास बुझी
नदी की तरंगों को सी दिया
तो डूबे घरों ने साँस लिया
किसान की आशा फली
घर अनाथ होने से बचा
शहरी हवाओं में गांठ लगा दिया
तो बूढ़ा पीपल मुस्कुरा दिया
उन्नति की राह खुली
तो उम्मीदें लौट के घर चलीं
नम हुई बूढ़ी पलकें
ढलती उम्र ने सहारा पाया
मेरे माथे पर
कापतें हाथों ने आशीष सजाया ;;;;
मेरे विचार से यह कविता यहीं समाप्त हो जाना चाहिए था. इस के बाद का सब after thought है निम्न दो पंक्तियाँ अत्यंत सुन्दर हैं.
शहरी हवाओं में गांठ लगा दिया
तो बूढ़ा पीपल मुस्कुरा दिया
बहुत चला था रामराज्य लाने
कह के धूल में पटक दिया
मैं भी जटायु सा पड़ा धरा पर
राम के आने की राह देखने लगा
इन चार पंक्तियोण मे एक बहुत बडा संदेश छुपा है बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आभार्
सुन्दर भावों को समेटे एक बेह्तरीन रचना....आभार
अहसान जी आप का कहना सही होसकता है पर क्या है की कविता का सार ही अंतिम ५ पंक्तियों में है मेरे ख्याल से यदि उनको न लिखती तो कविता का सन्देश न दे पाती.हो सकता है मै आपनी बात नहीं समझा पाई.कविता में
सादर
रचना
रश्मि जी ,मुकेश जी , मंजू जी ,मनु जी ,फराज जी ,निर्मला जी ,शर्मा जी ,अहसान जी आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद के कविता को पढ़ा और समय निकाल के अपने बहुमूल्य विचारो से मुझे नवाजा .मनु जी एक लाइन में ही छुटकारा पा लिया ,
मै पुनः हृदय से आप सभी का धन्यवाद करती हूँ आप के विचार मुझे सोचने की नई दिशा देते हैं आशा है आप सभी का स्नेह इसी तरह मुझे मिलता रहेगा
रचना
rachna ji,
saundarya bodh ki drishti se jahaan kavita ka saundarya samaapt ho jaata hai, wahaan se aap ka sandesh prarambh hota hai.
dhanyawaad.
रचना जी,
ऐसा बिलकुल नहीं के मैंने एक लाईन लिख कर छुटकारा पा लिया,,,,,
ऐसा होता तो दोबारा ये पोस्ट नहीं खोलता,
या तो यर रचना पढ़ते वक्त दिमाग में कोई और रचना घूम रही थी ,,
या मैं कुछ ज्यादा ही सोच चुका था किसी और ही बारे में..
सो , ये कविता पढने की तरह से ना पढ़ पाया,,,;; मुझे इसके लिए खेद है,,,
या फिर ,,,
सानिहे, बेखुदी की रातों के,
दिन का अक्सर सवाल होते हैं,
रचना जी,
शायद दिमाग उतना फ्रेश नहीं था जितना होना चाहिए इस कविता को पढने के लिए,,,( पूरी तरह अभी भी नहीं है,,)
:(
जब दिमाग में दो चार शेर अलग अलग जमीन ,,, अलग अलग बहर के एक साथ चल रहे हों तो ,,, और किसी का भी अगला शे'र ना हो पा रहा हो,,,
-:(
ऐसे में एक असाधारण रचना पर पूरा ध्यान केन्द्रित हो पाना कम से कम मेरे लिए तो नामुमकिन है,,,,
पर ऐसा बिलकुल भी नहीं है के आप अपनी बात ठीक से ना समझा पायी हों,,,!
आप एक सशक्त कवियत्री हैं ,, हमेशा ही दमदार लिखती हैं,,,इसमें कोई दो राय नहीं,,,,
इसलिए लगभग रोज ये कविता पढता हूँ,,,पर मन में जब कोई शे'र हलचल कर जाए तो ये सच है के उस वक़्त कुछ और नहीं सूझता,,,
चलिए आप भी पढिये,,,
न पलटा वो, न ठहरा जब, मेरी आवाज़ को सुनकर,
मेरी बेबस सदा पर ये खला भी खिलखिलाई थी,
इस से आगे नहीं हो पा रहा है,,, आप कुछ हेल्प कीजिये,,,
-:(
अरे कोई बात नहीं मनु जी आप एसे ही सोचें क्यों की हम को एक सुंदर शेर पढने को मिल गया अब ग़ज़ल पूरी करिये सभी को पढने में अच्छा लगेगा
सादर
रचना
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