गोद में रख सर मैं जिसकी सो रहा था
विष वही मेरे बदन में बो रहा था .
मैने अपना प्यार जिस रिश्ते को सौंपा
मार जिंदा अब मुझे वह ढ़ो रहा था .
वह बना हैवान जिस दौलत की खातिर
अब उसी दौलत में दब कर रो रहा था .
कब्र मेरी चुपके से उसने बनाई
मैं उसे अपना समझ कर सो रहा था .
मैने अपनी जां लड़ा जिसको बचाया
मेरा खूँ कर हाथ अब वह धो रहा था .
कवि कुलवंत सिंह
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
कब्र मेरी चुपके से उसने बनाई
मैं उसे अपना समझ कर सो रहा था .
aisa hi hota hain.... kareebe hi dhokha deta hain... bahut sunder likha hain aapne
गोद में रख सर मैं जिसकी सो रहा था
विष वही मेरे बदन में बो रहा था
बढ़िया
वीनस केसरी
Balle Balle! Ghazal ke sher laajawab hai. Dard aur peedha ki teis se sarabor hai.
कब्र मेरी चुपके से उसने बनाई
मैं उसे अपना समझ कर सो रहा था .
Badhayi.
Manju Gupta.
मैने अपना प्यार जिस रिश्ते को सौंपा
मार जिंदा अब मुझे वह ढ़ो रहा था .
वाह ! क्या बात है कुलवन्त जी
आप ने बहुत सुंदर लिखा है
गोद में रख सर मैं जिसकी सो रहा था
विष वही मेरे बदन में बो रहा था .
की कहने बिष बदन में बोना सुंदर लिख है
मैने अपनी जां लड़ा जिसको बचाया
मेरा खूँ कर हाथ अब वह धो रहा था .
बहुत कुछ सच्चाई बयां करती है ये पंक्तिया
सादर
रचना
गोद में रख सर मैं जिसकी सो रहा था
विष वही मेरे बदन में बो रहा था ...
क्या बात है......
कब्र मेरी चुपके से उसने बनाई
मैं उसे अपना समझ कर सो रहा था
बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने कुलवंत जी. साथ ही हिंदी साहित्यमंच पर प्रथम आने के लिए बधाई.
गज़ल की ज्यादा परख नही है किन्तु वास्तव में बढि़या लिखा है।
ये गजल है बहर में
अच्छा लिखा ,,
बधाई हो,,
पिछली रचना की अपेक्षा अच्छी ग़ज़ल. बधाई
एकदम सच है !
वह बना हैवान जिस दौलत की खातिर
अब उसी दौलत में दब कर रो रहा था .
बधाई |
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