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Friday, June 05, 2009

गजल.....होता नहीं खजाना अच्छा ........


गजल

यूँ खुद को बहलाना अच्छा
गीत बना 'गम' गाना अच्छा

शक हो जाए अगर किसी पर
फिर उसको आजमाना अच्छा

सबसे हाथ मिलाकर चलता
होता अगर ज़माना अच्छा

खुद महफ़िल में आगे आकर
बिगड़ी बात बनाना अच्छा

अन्धकार से लड़ना है तो
घर घर दीप जलाना अच्छा

अगर किसी पर दिल आ जाए
उस पर जान लुटाना अच्छा

लुटा हुआ मक्तूल कहेगा
होता नहीं खजाना अच्छा

इक उसूल, इक मंजिल तो है
मुझसे तो दीवाना अच्छा

बिटिया यूँ खुश हो जायेगी
बेमतलब डर जाना अच्छा

हर इंसां से लड़ने से तो
खुद को ही समझाना अच्छा

बाद इतना कहने के 'अदभुत'
मक्ता लिख, सो जाना अच्छा

अरुण 'अद्भुत'

(मक्तूल= जिसका कत्ल हुआ हो)

बहर= फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन

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18 कविताप्रेमियों का कहना है :

Harihar का कहना है कि -

यूँ खुद को बहलाना अच्छा
गीत बना 'गम' गाना अच्छा
वाह अरुण जी
सादगी से कही गई बात दिल को भा गई ।

रोना-हँसना तो सब जानते हैं
गजल बना कर कहना अच्छा !

Shamikh Faraz का कहना है कि -

हर इंसां से लड़ने से तो
खुद को ही समझाना अच्छा

अरुण जी की ग़ज़ल वाकई काबिले तारीफ है.

manu का कहना है कि -

सबसे हाथ मिलाकर चलता
होता अगर ज़माना अच्छा

खुद महफ़िल में आगे आकर
बिगड़ी बात बनाना अच्छा

ख़ास तौर से पसंद आये,,,,एक और प्यारा शेर,,,,जिसमें हल्का वजन खटका,,,शायद एक और इक के कारण,,,,पर शेर बड़ा पसंद आया,,,, इसे मैंने यूं पढा,,,

'एक' उसूल 'इक' मंजिल तो है,
मुझसे तो दीवाना अच्छा


और ,,,गम को गीत बनाना अच्छा ,,( ज्यादा सहज लग रहा है)
हर इंसान से लड़ने से तो,,,,,वाह,,,,

मकतूल और बिटिया वाले शेर ज़रा देर से समझ पाया
::)
बाकी सुंदर गजल
मक्ता बड़ा मजेदार लगा,,,
वाकई ये अद्भुत है ........

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

भाई ग़ज़ल तो बहुत अच्छी लगी..

परन्तु एक ही चीज़ खटकी..

जब मैंने शीर्षक पढ़ा

"गजल.....होता नहीं खजाना अच्छा ........"

मुझे लगा.. इस ग़ज़ल मै ऐसा क्या कहना छह रहे हो आप की ग़ज़ल अच्छा खजाना नहीं होता..
शायद यहाँ पर ग़ज़ल शब्द आप अंत मै प्रयोग करते शीर्षक के तो ज्यादा उपयुक्त होता..

सादर
शैलेश

mohammad ahsan का कहना है कि -

फ़न के नुक़्ते से मुकम्मिल हैं तेरे अश'आर लेकिन
फ़िक्र ओ तख़य्युल की आमेज़िश बस ज़रा और होती !

rachana का कहना है कि -

पढ़ के आप कि कमाल गजल
मन में गुन्ना मुस्काना अच्छा
बिटिया वाला शेर बहुत पसंद आया
सादर
रचना

manu का कहना है कि -

क्या बात अहसान जी,,,,
आप तो यूनिपाठक बनते ही शायरी करने लग गए,,,,,
यूनिपाठक वाले शेर भी अभी तक याद हैं..... बे-बहर जरूर थे पर क्या मौके पर कहे थे,,,,
अद्भुत जी,
गौर फ़रमाएँ,,,,,
एक बड़ी बात कही है,,

Arun Mittal "Adbhut" का कहना है कि -

अरे मनु जी,

गौर तो अहसन जी को करना पड़ेगा आपने क्या मस्त कमेन्ट मारा है .........

"बे-बहर जरूर थे पर क्या मौके पर कहे थे,,,,"

वैसे मैं तो मानता हूँ कि .........मुझे अपने अशआर का वजन बढ़ाना चाहिए ......... मेरा तो बढ़कर अस्सी किलो हो गया है कमबख्त अशआर का नहीं बढ़ रहा ..........

वीनस केसरी का कहना है कि -

बहुत बढ़िया
वीनस केसरी

Chirag Jain का कहना है कि -

makte ka jawab nahi
:)

manu का कहना है कि -

अद्भुत जी.
ये सही हैके मैं कमेन्ट बड़ी ही मस्ती में बैठ कर करता हूँ,,,,, और रचना से ज्यादा ध्यान से कमेन्ट पढता हूँ..(देवनागरी में हो तो)
और कमेंट्स से ही अहसन जी का ज्ञान और तजुर्बा जाना है.....कोई बात कहने का सटीक अंदाज
सही/गलत हमें भी लगता है ..पर ...........
मुझे लगता है के आप वजन घटाने/बढाने दोनों पर और कोशिश बाखूबी कर सकते हैं..
अगर यूनी कवी वाली पोस्ट पर अहसन जी के चारों शे'र सही वजन में होते तो खुद में एक बड़ा कमाल थे,,,,, बहर से बाहर होकर भी क्या असर डाला है...
हाँ ,
ये तो हर कोई मानेगा के किसी भी गजल के सभी शेर खूबसूरत नहीं बन पाते....

मुहम्मद अहसन का कहना है कि -

अद्भुत साहब,
कीजो न तंज़ आप मेरे अश'आर बे बेह्र पे
ग़ज़ल गो नहीं हूँ मैं ,न दवा रहा कभू

मुहम्मद अहसन का कहना है कि -

अद्भुत साहब,
मु'आफ कीजिये गा ज़रा हिंदी में हिज्जे गलत हो गए , मतलब कुछ का कुछ निकल जाए गा , सही किये देता हूँ,

कीजो न तंज़ आप मेरे अश'आर बे बेह्र पे
ग़ज़ल गो नहीं हूँ मैं ,न दावा रहा कभू

Arun Mittal "Adbhut" का कहना है कि -

बे बेह्र पर तो मुझे अशोक 'अंजुम' जी का एक बड़ा ही शानदार शेर याद आ गया........... किसी के लिए नहीं कह रहा हूँ ......... बस मौके पर मन कर रहा है....... तो लीजिये पेश है

"चंद उस्ताद मिले हैं ऐसे
अब गजल बे बहर न हो जाए"

अब तो लगता है अहसन जी हिन्दयुग्म के "नामवर सिंह" हैं इनके अनुभव से हम युवाओं को बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है

मुहम्मद अहसन का कहना है कि -

अद्भुत साहब,
ख्यालों का मसीहा हूँ , बह्र का कैदी नहीं मैं
अश'आर मेरे चुन लो वक़्त ए ज़रुरत के लिए

Manju Gupta का कहना है कि -

अन्धकार से लड़ना है तो
घर घर दीप जलाना अच्छा
In shero ko aaj karyanvit karne ki jarurat hai.अद्भुत kiअद्भुत ghazal bemisal hai.Ghazal mei sandesh hai.
Bhadhai.

Manju Gupta.

गौतम राजऋषि का कहना है कि -

जितनी सुंदर ग़ज़ल, उतनी ही दिलचस्प टिप्पणियाँ भी।
एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिये अरूण जी को समस्त बधाईयाँ...
"बिटिया यूँ खुश हो जायेगी
बेमतलब डर जाना अच्छा"
इस शेर पर हम मर-मिटे हैं शायर साब...क्या लिक्खे हो!!! अहा!!!

विवश, इजरायल का कहना है कि -

बाद इतना कहने के 'अदभुत'
मक्ता लिख, सो जाना अच्छा
it's so nice ghazal. I like it most. please try to more. Thanks

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