फटाफट (25 नई पोस्ट):

Monday, June 22, 2009

बदन उघारा दीखता, मिला पीठ में पेट


प्रतियोगिता की 15वीं कविता की ओर बढ़ते हैं। 30 जून 1965 में उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर के “सरैया-कायस्थान” गाँव में जन्मे कवि अम्बरीष श्रीवास्तव ने भारत के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान 'भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान' कानपुर से इंजीनयरिंग की पढ़ाई की है। कवि जनपद सीतापुर के प्रख्यात वास्तुशिल्प अभियंता एवं मूल्यांकक होने के साथ राष्ट्रवादी विचारधारा के कवि हैं। कई प्रतिष्ठित स्थानीय व राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं व इन्टरनेट पर अनेक रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। ये देश-विदेश की अनेक प्रतिष्ठित तकनीकी व्यवसायिक संस्थानों व तथा साहित्य संस्थाओं जैसे "हिंदी सभा", हिंदी साहित्य परिषद्" तथा "साहित्य उत्थान परिषद्" आदि के सदस्य हैं।
प्राप्त सम्मान व अवार्ड:- "इंदिरा गांधी प्रियदर्शिनी अवार्ड 2007", "अभियंत्रणश्री" सम्मान 2007 तथा "सरस्वती रत्न" सम्मान 2009 आदि |

कविता- किसान का दर्द

बदन उघारा दीखता, मिला पीठ में पेट।
भोले-भाले कृषक को, ये ही मिलती भेंट।।

खाद-बीज महँगा हुआ, मँहगा हुआ लगान।
तेल-सिंचाई सब बढा, संकट में हैं प्राण।।

महँगाई बढ़ती गयी, सब कुछ पहुँचा दूर।
सस्ते में अपनी उपज, बेचे वो मजबूर।।

रातों को भी जागता, कृषि का चौकीदार।
भूखा उसका पेट तक, साधन से लाचार।।

हमें अन्न वो दे रहा, खुद भूखा ही सोय।
लाइन में भी वो लगे, खाद वास्ते रोय।।

अदालतों के जाल में, फँस कर होता तंग।
खेत-मेंड़ महसूस हो, जैसे सरहद जंग।।

ब्याहन को पुत्री भई, कर्जा लीया लाद।
बंजर सी खेती पड़ीं , कैसे आये खाद।।

धमकी साहूकार दे, डपटे चौकीदार।
आहत लगे किसान अब, जीवन है बेकार।।

सुख-सम्पति कुछ है नहीं, ना कोई व्यापार।
कर्ज चुकाने के लिए, कर्जे की दरकार।।

गिरवीं उसका खेत है, गिरवीं सब घर-बार।
नियति उसकी मौत सी, करे कौन उद्धार।।

मजदूरी मिलती नहीं, गया आँख का नूर।
आत्महत्या वो करे, हो करके मजबूर।।

उसको ठगते हैं सभी, कृषि के ठेकेदार।
मौज मनाते बिचौलिए, शामिल सब मक्कार।।

कृषक के श्रम से जियें, शासक रंक फ़कीर।
परन्तु हाय उसी की, फूटी है तकदीर।।

हम है कितने स्वार्थी, काटें सबके कान।
मंतव्य पूरा हो रहा, क्यों दें उस पर ध्यान।।

कृषि प्रधान स्वदेश में, बढ़ता भ्रष्ठाचार।
यदि चाहो कल्याण अब, हो आचार विचार।।


प्रथम चरण मिला स्थान- प्रथम


द्वितीय चरण मिला स्थान- पंद्रहवाँ

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

30 कविताप्रेमियों का कहना है :

Ria Sharma का कहना है कि -
This comment has been removed by the author.
Ria Sharma का कहना है कि -

आज के हालात में किसान की हालत पर मार्मिक व संवेदनशील रचना !!

Awesome !!

मुहम्मद अहसन का कहना है कि -

बहुत ही सुन्दर दोहे, सीधे सरल, धरती से जुड़े हुए,
आनंद आया पढ़ कर
बधाई, अम्बरीश साहब

अर्चना तिवारी का कहना है कि -

इस कविता में तो किसानों का सारा जीवन झलक रहा है...वास्तव में आज के इस वैभव युक्त संसार में भी किसान संघर्ष झेल रहे हैं..जबकि भारत एक कृषि प्रधान देश है...अति मार्मिक

rachana का कहना है कि -

हमें अन्न वो दे रहा, खुद भूखा ही सोय।
लाइन में भी वो लगे, खाद वास्ते रोय।।

सीधे सरल शब्द दिल में उतरते हुए किसान और मजदूरों के दर्द को सही उभरा है
रचना

neelam का कहना है कि -

kisaan ki dayneey sthiti ka partibimb aapki lekhni dwara .

Harihar का कहना है कि -

गिरवीं उसका खेत है, गिरवीं सब घर-बार।
नियति उसकी मौत सी, करे कौन उद्धार।।

किसानों के दर्द को अच्छी तरह अभिव्यक्त किया है

manu का कहना है कि -

लयबद्ध कविता में मार्मिक भाव पिरोये हैं आपने,,,

anurag का कहना है कि -

आज के परिवेश में किसानों की स्थिति व्यक्त करने के लिए दोहों का उचित प्रयोग!

मजदूरी मिलती नहीं, गया आँख का नूर।
आत्महत्या वो करे, हो करके मजबूर।।

अम्बरीष जी किसानों का दर्द पढ़कर आंसू निकल पड़े |

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

खाद-बीज महँगा हुआ, मँहगा हुआ लगान।
तेल-सिंचाई सब बढा, संकट में हैं प्राण।।
अम्बरीश जी किसान के लिये सब कुछ महंगा हो रहा है किन्तु उसके द्वारा उत्पादित अनाज जरा सा महंगा होने पर ही पूरी दुनिया में शोर मच जाता है. उसका भी लाभ उसे कहां मिलता है?

Unknown का कहना है कि -

अदालतों के जाल में, फँस कर होता तंग।
खेत-मेंड़ महसूस हो, जैसे सरहद जंग।।

किसानों का दर्द बयां करते हुए वाकई तारीफ के काबिल दोहे
बधाई आपको

Unknown का कहना है कि -

सुख-सम्पति कुछ है नहीं, ना कोई व्यापार।
कर्ज चुकाने के लिए, कर्जे की दरकार।।

गिरवीं उसका खेत है, गिरवीं सब घर-बार।
नियति उसकी मौत सी, करे कौन उद्धार।।

एकदम सच !
अच्छी कविता लिखने के लिए बधाई |
अम्बरीश जी, सब चीजों के दाम बेतहाशा बढ़ रहे हैं, अगर अनाज के दाम नहीं बढ़ते तो अपने देश में किसानों की हालत सुधरना मुमकिन नहीं |

सदा का कहना है कि -

कृषक के श्रम से जियें, शासक रंक फ़कीर।
परन्तु हाय उसी की, फूटी है तकदीर।।

बहुत ही सुन्‍दर रचना रची आपने, बधाई

Sajal Ehsaas का कहना है कि -

किसानों की समस्या को बड़े तरीके से सामने लेकर आये है आप। ये कविता से कुछ अधिक है,एक चर्चा सी है।पहले चरण मे ऐसा स्थान मिलने के बाद ज़रा किस्मत का साथ नही मिला।

Ambarish Srivastava का कहना है कि -

इस रचना को पढ़कर आप सभी नें किसानों का दर्द दिल से अनुभव किया तथा टिप्पणियां प्रेषित करके मेरा उत्साहवर्धन किया | इसके लिए आप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद |
डा० राष्ट्रप्रेमी जी. व विभाजी,
कृषि प्रधान स्वदेश में, बढ़ता भ्रष्ठाचार।
यदि चाहो कल्याण अब, हो आचार विचार।।
मेरे विचार से किसानों के कल्याण हेतु हमें इस अंतिम दोहे को दिल में बसाना होगा !
पुनः आप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद |

सादर ,
अम्बरीष श्रीवास्तव

Ambarish Srivastava का कहना है कि -

आदरणीय प्यासा सजल जी
इस सुन्दर सी टिप्पणी हेतु धन्यवाद !
"किसानों की समस्या को बड़े तरीके से सामने लेकर आये है आप। ये कविता से कुछ अधिक है,एक चर्चा सी है।पहले चरण मे ऐसा स्थान मिलने के बाद ज़रा किस्मत का साथ नही मिला।"

आदरणीय प्यासा सजल जी,
इस बार प्रथम स्थान मिल कर भी पन्द्रहवें पर पहुँच गया तो क्या हुआ !
आखिर कभी तो किस्मत चमकेगी ही!

सादर ,
अम्बरीष श्रीवास्तव

Ambarish Srivastava का कहना है कि -

आदरणीय नियंत्रक जी,
इस कविता के निम्नलिखित दोहे के द्वितीय चरण में १ मात्रा की कमी रह गयी है
अर्थात ११ मात्राओं के स्थान पर १० मात्राएँ रह गयीं हैं
संभवतः मुझसे टाइपिंग में त्रुटि हो गयी होगी |
अतः आपसे अनुरोध है कि द्वितीय चरण में "कर्जा लिया लाद" के स्थान पर "कर्जा लीया लाद" संशोधन करनें की कृपा करें
ताकि मात्राओं को ठीक किया जा सके |
मूल दोहा
ब्याहन को पुत्री भई, कर्जा लिया लाद।
बंजर सी खेती पड़ीं , कैसे आये खाद।।
संशोधित दोहा
ब्याहन को पुत्री भई, कर्जा लीया लाद।
बंजर सी खेती पड़ीं , कैसे आये खाद।।
कष्ट हेतु धन्यवाद |
सादर,
अम्बरीष श्रीवास्तव

निर्मला कपिला का कहना है कि -

हम है कितने स्वार्थी, काटें सबके कान।
मंतव्य पूरा हो रहा, क्यों दें उस पर ध्यान।।

कृषि प्रधान स्वदेश में, बढ़ता भ्रष्ठाचार।
यदि चाहो कल्याण अब, हो आचार विचार।।
धरती पुत्र किसान के सच को दिखाती एक बेहतरीन रचना बधाई

Ambarish Srivastava का कहना है कि -

आदरणीय नियंत्रकजी,
संशोधन के लिए धन्यवाद !

आदरणीया निर्मलाजी,
टिप्पणी हेतु धन्यवाद !

Shamikh Faraz का कहना है कि -

बदन उघारा दीखता, मिला पीठ में पेट।
भोले-भाले कृषक को, ये ही मिलती भेंट।।

किसान के जीवन पर मार्मिक कविता.

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

कविता की बात अलग है किन्तु मुझे नहीं लगता कविताओं से किसानों व मजदूरों का कुछ भला होने वाला है. उनके पास हमारी कविताओं को पढ़ने का न समय है और न मंहगी पुस्तकें खरीदने के लिये धन.

Ambarish Srivastava का कहना है कि -

आदरणीय शमिख फ़राज़ जी,
सराहना एवं उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद |

आप सभी को आभार सहित मेरा धन्यवाद |
सादर,
अम्बरीष श्रीवास्तव

Ambarish Srivastava का कहना है कि -

आदरणीय डा० राष्ट्र प्रेमीजी,
सराहना एवं उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद |
आपकी यह टिप्पणी कि "कविता की बात अलग है किन्तु मुझे नहीं लगता कविताओं से किसानों व मजदूरों का कुछ भला होने वाला है. उनके पास हमारी कविताओं को पढ़ने का न समय है और न मंहगी पुस्तकें खरीदने के लिये धन" अपनी जगह पर सही है परन्तु अपने विचार में इस कविता के सृजन का उद्देश्य इसे किसानों को पढ़वाकर उनसे अपनी सराहना प्राप्त करना नहीं अपितु उनके जीवन के दर्द को हम जैसे प्रबुद्ध वर्ग तक पहुचाना है ताकि हम उनके दर्द को महसूस करते हुए सभी को सहानुभूतिपूर्वक उनके कल्याणकारी कार्यों हेतु प्रेरित कर सकें अब देखना यह है कि हम अपने जीवन में उनके योगदान के महत्त्व को कैसे संज्ञान में लेते हुए अपने संपूर्ण समाज सहित उनके जीवन की बेहतरी में सहयोग व उन्हें क्या-क्या सुविधाएँ दे पाते हैं ! यदि ऐसा कुछ भी हो पाया तो यही इस कविता की सार्थकता होगी | "जय किसान" |

आप को आभार सहित मेरा धन्यवाद |
सादर,
अम्बरीष श्रीवास्तव

Ambarish Srivastava का कहना है कि -

इतनी सुन्दर सी टिप्पणियों हेतु आप सभी को आभार सहित मेरा धन्यवाद |
सादर,
अम्बरीष श्रीवास्तव

Manju Gupta का कहना है कि -

Dohe kisano ki dasha ko batate hai.
Sandeshyukt hai.
Badhayi.

Ambarish Srivastava का कहना है कि -

Bahut-bahut Dhanyavaad Aadarneeya Manjoojee

Ambarish Srivastava का कहना है कि -

आदरणीया मंजूजी, उत्साहवर्धन हेतु बहुत -बहुत धन्यवाद |

Unknown का कहना है कि -

पता नहीं क्यों ! हम सब किसानों की दशा पर ध्यान नहीं दे रहे जबकि हम उन्हीं के परिश्रम से जीवित हैं किसानों को छोड़कर हममें से कोई शायद ही खेतों में हल चला पायेगा |

नील श्रीवास्तव
छात्र कक्षा आठ

Unknown का कहना है कि -

aaj desh ke kisano ki halat aisi ho gai hai, jaise koi balika bina khaye piye hi so gai hai. na tan per kapda hai , na koi kushi , keval charo aur sanata hi sanata pasra hai. lekhak ji ko badhai ho.

MAN ME AAYA का कहना है कि -

Realistic... Behad achhi kavita h.cograts.

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)